इन दिनों राजधानी में एक नया चलन है, युवा कलाकारों के लिए समारोह किया जाना। इस क्रम में कथक नृत्यांगना अदिति मंगलदास कुछ अलग नजर आती हैं। उन्होंने एक ओर अपनी नृत्य कंपनी में युवा कलाकारों को स्थान दिया है, वहीं दूसरी ओर अपने वरिष्ठ शिष्य-शिष्याओं को भी जोड़े रखा है। वे उनका मार्गदर्शन करती रहती हैं। इसकी झलक एलटीजी आॅडिटोरियम में हुए ‘डांस दृष्टिकोण-दस गुणा दस’ में देखने को मिली। समारोह में उनकी शिष्य-शिष्याओं ने कथक को परंपरागत दायरे में रहकर, नए आयाम में पेश किया। जबकि, कुछ कलाकारों ने समकालीन नृत्य भी पेश किया। एक से दस अंकों को शामिल किया गया था। संख्या एक-सांस को इंगित कर रही थी। यह पहली प्रस्तुति कथक नृत्यांगना गौरी दिवाकर की थी। उन्होंने नृत्य रचना ‘ब्रीद’ पेश की। श्वास, सांस, प्राण के पर्यायवाची शब्द जीवन की गति है। सांस मां से शिशु की, नायक की नायिका से, जीवन से भी जुड़ी होती है। इसे शिशिर वाद्य बांसुरी की लय और घुंघरू की ताल पर गौरी ने मोहक अंदाज में पेश किया। उनके नृत्य में कथक की श्वास की गति को प्रयोग खासतौर पर नजर आया। दूसरी प्रस्तुति में संख्या-दो को निरूपित कर रही थी। कथक नृत्यांगना रश्मि उप्पल और नर्तक धीरेंद्र तिवारी ने युगल नृत्य के काल के बोध को सुंदर अंदाज में पिरोया।

नृत्य में इक्कीस चक्कर का प्रयोग सुंदर था। वहीं, उन्होंने रचना ‘धा-धा-धा-तक-थुंगा’ को शामिल किया। इसके अलावा, काव्यांश-‘कल आज की स्मृतियां या आज का सपना’ को संवाद के रूप में बखूबी रूपायित किया। त्रिवेणी में तिवरट पेश किया गया। यह पखावज व तबले के बोल और गीत पर आधारित थी। इसे आशीष गंगानी, फराज अहमद, मोहित गंगानी पेश किया।
अगली पेशकश में संख्या चार का कमाल ‘चारावली’ थी। यह रचना ‘चार कलाएं चांद के’ पर आधारित थी। सामूहिक नृत्य प्रस्तुति में कवित्त-‘छिन-छिन कमल मरकत झर-झर झलकत’ का प्रयोग था। इसमें शिरकत करने वाली नृत्यांगनाएं थीं-रचना यादव, आनंदिता आचार्जी, तृप्ति गुप्ता और दीक्षा त्रिपाठी। कथक नृत्य शैली में प्रस्तुत नृत्य रचना सूर्यवंश थी, अंक सात की प्रतिनिधि थी। सूर्य के उगने से अस्त होने तक की यात्रा और सूर्य के रथ के सात घोड़े प्रतीक स्वरूप हैं सात स्वरों के। इसी भाव को नृत्य में दर्शाया गया। इसमें शिरकत करने वाले कलाकार थे-सन्नी सिसोदिया, मिन्हाज खान, अंजना, तृप्ति गुप्ता, मनोज, गौरव और दीक्षा।

प्रस्तुति में आठ अंक में जीवन की निरंतरता, पांच में पंच तत्व, छह में पांच ज्ञानेंद्रियों का वर्णन कथक व समकालीन नृत्य शैली में पेश किया गया। अंक नौ में उर्दू के नौ खेज यानी युवा के मनोभावों को नृत्य में दर्शाया। इसकी परिकल्पना नृत्यांगना गौरी दिवाकर ने की थी। विष्णु के दशावतार को अंक दस के प्रतिरूप में पेश किया गया। इन सभी नृत्य रचनाओं की परिकल्पना वरिष्ठ कथक नृत्यांगना अदिति मंगलदास ने की थी। गौरतलब है, कथक में नए सोच को कम ही कलाकार बढ़ावा दे पाते हैं।अदिति मंगलदास की खूबी है। उनकी यह पहल सराहनीय है।