पांच राज्य सरकारों ने नई पेंशन के बजाय पुरानी पेंशन योजना पर वापस लौटने का फैसला कर तो लिया, मगर इसके लिए धन जुटाने को लेकर मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। सबसे पहले राजस्थान सरकार ने इस योजना की घोषणा की थी। इस साल वहां विधानसभा के चुनाव हैं, इसलिए वह चाहती है कि यह योजना चुनाव से पहले सिरे चढ़ जाए। मगर सवाल है कि इसके लिए पैसा कहां से आए।
राज्य सरकारों ने सोचा था कि नई पेंशन योजना के तहत जो पैसा कर्मचारियों के वेतन से काट कर पेंशन खाते में जमा है, वह वापस मिल जाएगा, तो उसमें कुछ और धन जोड़ कर पुरानी पेंशन का भुगतान किया जा सकेगा। मगर केंद्र सरकार ने फिर से जोर देकर कहा है कि वह पैसा राज्य सरकारों को नहीं मिल सकता।
इस पर राजस्थान सरकार ने कहा है कि वह इसके लिए उच्चतम न्यायालय में गुहार लगाएगी और अपने कर्मचारियों का पैसा लेकर रहेगी। मगर हकीकत यह है कि नई पेंशन योजना के तहत जमा रकम को वापस लेना इतना आसान नहीं होगा। फिर भी राजस्थान सरकार केंद्र के इस रवैए को भुनाने का प्रयास जरूर करेगी। वह दिखाने की कोशिश करेगी कि केंद्र सरकार की अड़ंगेबाजी की वजह से वह पुरानी पेंशन योजना लागू नहीं कर पा रही है।
पुरानी पेंशन योजना पर लौटना निस्संदेह कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से सराहनीय फैसला है। मगर हकीकत यह है कि जिन राज्यों ने इस योजना में लौटने का वादा किया, वे इसका राजनीतिक लाभ उठाना चाहती थीं। राजस्थान सरकार ने भी आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ही यह फैसला किया था। फिर छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और पंजाब की सरकारों ने भी उसकी देखादेखी ऐसा ही फैसला किया।
तब भी यह सवाल उठा था कि इसके लिए धन का प्रबंध कहां से होगा। इन राज्य सरकारों ने कहा कि पुरानी पेंशन योजना का बहुत अधिक उन पर बोझ नहीं पड़ेगा। जो पैसा नई पेंशन योजना में जमा है, उसमें कुछ और धन अपनी तरफ से मिला कर भुगतान किया जा सकता है। जबकि सच्चाई यह है कि इन राज्य सरकारों ने इस पहलू पर बहुत गंभीरता से विचार नहीं किया कि नई पेंशन योजना के तहत जमा राशि को अपने खाते में लेना तकनीकी रूप से आसान नहीं है।
दरअसल, कर्मचारियों के वेतन से जो रकम पेंशन के मद में काटी जाती है, उसका पचासी फीसद हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश कर दिया जाता है और बाकी पंद्रह फीसद को निजी क्षेत्र में निवेश किया जाता है। इसके लिए बाकायदा केंद्र और राज्य सरकारों के बीच करार है। वह करार कैसे भंग होगा, इस पर विचार नहीं किया गया। फिर यह कि जो रकम प्रतिभूतियों में निवेश की गई है, उसे वापस लेने की प्रक्रिया भी आसान नहीं होगी।
अब राजस्थान सरकार भयादोहन कर रही है कि जिस तरह अडाणी समूह के शेयर लगातार गिर रहे हैं, उसमें कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई के डूबने की आशंका बनी हुई है। जाहिर है, इससे पुरानी पेंशन को लेकर उत्साहित कर्मचारियों के मन में अपनी जमा राशि की सुरक्षा को लेकर भय बना रहेगा और वे केंद्र के फैसले को उचित नहीं मानेंगे। इस तरह पुरानी पेंशन योजना को लेकर एक नई राजनीति शुरू होगी। विडंबना है कि चुनावी लाभ के लिए सरकारें लुभावनी योजनाएं तो घोषित कर देती हैं, पर उनके व्यावहारिक पक्ष पर गंभीरता से विचार नहीं करतीं।