सुरेश कौशिक

महिला फुटबाल में न तो पैसा है और न ही खिलाड़ियों के लिए नौकरियां, राज्य फुटबाल संघों की प्राथमिकता में भी यह खेल नहीं है। इतने बड़े हिंदुस्तान में पांच-छह राज्यों को छोड़ दीजिए तो महिला फुटबाल की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। राष्ट्रीय महिला फुटबाल चैंपियनशिप में भाग लेने की अनिवार्यता के चलते राज्य संघों को औपचारिकता के लिए लीग आयोजित करनी पड़ती है। खेल के लिए यह स्थिति किसी भी मायने में आदर्श नहीं कही जा सकती। पर उम्मीद की एक किरण जगी है। पुरुष वर्ग की तर्ज पर अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन महिला फुटबाल लीग आयोजित करने की तैयारी में है। अगर सब ठीक रहा तो इसी साल अक्तूबर में महिलाएं अपने खेल कौशल का रंग जमा सकती हैं। इससे खेल का अंदाज पेशेवर हो सकता है और पैसा भी बरस सकता है। खिलाड़ियों का रुझान भी बढेÞगा।

इस सकारात्मक कदम से महिला फुटबाल विकास की नई राह पर चलेगी। फुटबाल की संचालन संस्था अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन भी इसके प्रति गंभीर है। 17 दिसंबर 2014 को अंतराष्ट्रीय फुटबाल महासंघ की बैठक में सचिव कुशाल दास ने 2017 तक भारतीय महिला टीम को विश्व में 40वें और एशिया में टाप आठ में लाने का भरोसा दिलाया था। जो मौजूदा परिस्थितियां हैं, उसे देखते हुए यह काम आसान नहीं है। रैंकिंग में उड़़ान भरने के लिए भारतीय महिलाओं को खेल स्तर तो उठाना होगा, साथ ही प्रदर्शन में निरंतरता भी लानी होगी। फिलहाल भारतीय महिलाएं विश्व रैंकिंग में 58 वें स्थान पर हैं। रैंकिंग सुधारने के लिए भारतीय महिला फुटबाल टीम को ज्यादा मैच खेलने होंगे और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए प्रतिद्वंद्वी टीमों को हारना भी होगा। इसके लिए ऊंची रैंकिंग की टीमों से खेलना होगा।

खेल विकास के लिए जरूरी है बुनियादी ढांचे की मजबूती। लेकिन महिला फुटबाल में ऐसा अभी नहीं है। स्थिति में सुधार की कोशिश हो रही है, लेकिन मंजिल अभी काफी दूर है। अभी लड़कियों को मैदान में लाना और उनके खेल में जुनून भरना बड़ी चुनौती है। इस समय तो लड़कियों के लिए आकर्षण है ‘स्टेट कलर’ या ‘इंडिया कलर’ हासिल करना। खेल में पैसा आने से उनका रुझान बढ़ सकता है।

महिला फुटबालरों के लिए सुरक्षित वातावरण मुहैया करवाना भी राज्य फुटबाल संघों के लिए चुनौती है। टेÑनिंग हो या कंपटीशन, हर अभिभावक चाहता है कि उनकी बेटी अगर मैदान पर जाए तो उसे किसी भी प्रकार की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़े। उन्हें खेलने के लिए अच्छी सुविधाएं मिलें। दिल्ली सॉकर एसोसिएशन ने अपने स्तर पर कदम उठाए हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय ने दो कालेजों-जानकी देवी महाविद्यालय और जीसस एंड मैरी कालेज को अपने साथ जोड़ा है। इससे खिलाड़ियों की सुरक्षा को लेकर चिंता थोड़ी कम हुई है।
पर अगर विकास की रफ्तार को पकड़ना है तो बड़े औद्योगिक घरानों को साथ में जोड़ना होगा। सरकारी स्तर पर रेलवे ने महिला खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने की दिशा में पहल कर दी है। रेलवे ने महिला फुटबालरों को नौकरी देकर टीम बनाई है। इसका नतीजा भी सामने आया है और टीम ने मणिपुर के राष्ट्रीय महिला फुटबाल चैंपियनशिप में चले आ रहे प्रभुत्व को खत्म कर दिया है। रेलवे ने पहली बार राष्ट्रीय महिला फुटबाल चैंपियनशिप को जीता है। मणिपुर 17 बार चैंपियन टीम थी।

लेकिन जूनियर स्तर पर आयु वर्ग की चैंपियनशिप और सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप के आयोजन से ही महिला फुटबाल में सुधार नहीं हो सकता। अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन को निचले स्तर पर ढांचा मजबूत बनाए जाने की जरूरत है। पहले आपको राज्यों में स्तरीय प्रतिभाओं को खोजने और उन्हें मौका उपलब्ध करवाए जाने की पहल करनी होगी। जब तक राज्यों के पास कौशल और दमखम वाली प्रतिभाएं ही नहीं होगी तो पांच-छह टीमों से महिला फुटबाल लीग आयोजित करने का औचित्य क्या है?

बड़े तामझाम वाली लीग आयोजित करने से फुटबाल का भला नहीं होगा। जरूरी है ग्रासरूट पर खेल को मजबूत बनाने की दिशा में काम किया जाए। आयु वर्ग यानी सब जूनियर और जूनियर स्तर पर अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन राष्ट्रीय चैंपियनशिप जरूर करता रहा है। पर स्कूली स्तर पर ज्यादा काम करना होगा स्कूल गेम्स फेडरेशन आॅफ इंडिया को भी लड़कियों की फुटबाल चैंपियनशिप का आयोजन करने के लिए मनाना होगा।
यों तो स्कूली स्तर पर खेल को बढ़़ावा दे रही सुब्रत मुखर्जी स्पोर्ट्स एजुकेशन सोसायटी ने करीब पांच साल पहले नई पहल करते हुए लडकियों के लिए अंडर-14 और अंडर-17 वर्ग में फुटबाल टूर्नामेंट की शुरुआत की है। भविष्य में इसका फायदा महिला फुटबाल में दिखेगा। विदेशी टीमों को भी इसमें लाया जा रहा है। इससे भारतीय लड़कियों को अंतरराष्ट्रीय अनुभव मिलेगा। यह टूर्नामेंट इनामी राशि वाला है। उम्मीद की जाती है कि इससे देश भर के स्कूल प्रतियोगिता में भाग लेने की उत्सुकता दिखाएंगे।
सुब्रत फुटबाल टूर्नामेंट का आयोजन भारतीय वायुसेना की देखरेख में होता है। सुब्रत सोसायटी 1960 से स्कूली टूर्नामेंट का आयोजन कर रही है। इस टूर्नामेंट की खासियत यह है कि जिला स्तर तक के स्कूलों की इसमें भागीदारी होती है। इससे दूर-दराज के इलाकों तक खेल पहुंचा है और प्रतिभाएं सामने आने लगी हैं।
महिला फुटबाल ने लंबा सफर तय किया है। सत्तर के दशक में तो खेल वूमेन फुटबाल फेडरेशन आॅफ इंडिया के तत्वावधान में चलता था। लखनऊ से सफ्दर जैदी इसकी कमान संभालते थे। बाद में प्रियरंजन दास मुंशी की पत्नी दीपा दासमुंशी भी इसकी अध्यक्ष रहीं। अंतराष्ट्रीय फुटबाल महासंघ ने 2000 के आसपास महिला संघों को पुरुष संघ के साथ विलय को मजबूर किया। तब से देश में खेल अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन की देखरेख में चल रहा है।

सत्तर के दशक में तो महिला फुटबाल में बंगाल की खिलाड़ियों की तूती बोलती थी। शांति मल्लिक और कुंतलता घोष दास्तीदार जैसी खिलाड़ियों के योगदान पर सरकार ने अर्जुन पुरस्कार देकर उन्हें सम्मानित भी किया। बाद में मणिपुर ने इस खेल में दबदबा बनाया। बेमबेम देवी ने करीब दो दशक तक अपने कौशल का रंग जमाया और 2015 के अंत में खेल को अलविदा किया। मणिपुर की यह चर्चित खिलाड़ी भी अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी है।
बाला देवी, कमला देवी और अदिति चौहान जैसी खिलाड़ियों ने महिला फुटबाल को नई ऊंचाइयां दी हैं। एक टीम के रूप में भारत का प्रदर्शन भले ही शानदार नहीं रहा हो लेकिन उसकी खिलाड़ियों की विदेशों में भी मांग बढ़ रही है। गोलकीपर अदिति चौहान, जो दिल्ली से हैं, के साथ टॉप इंगलिश फुटबाल क्लब वेस्ट हैम युनाइटेड ने करार किया है। वह पहली भारतीय खिलाड़ी है जिसे यह गौरव मिला है। आजकल वह मालदीव में लीग खेल रही हैं। अदिति को ‘एशियाई महिला फुटबालर आॅफ द ईयर पुरस्कार’ से भी नवाजा जा चुका है। अदिति ही नहीं कई दूसरी भारतीय महिला फुटबाल खिलाड़़ी भी मालदीव की फुटबाल लीग में खेल चुकी हैं। इनमें हाल ही में रिटायर हुई मणिपुर की बेमबेम देवी और डिफेंडर आशा भी शामिल हैं।
हाल ही में, भारतीय महिला फुटबाल टीम ने असम में संपन्न हुए सैफ खेलों में दूसरी बार स्वर्णपदक जीता। टीम सैफ कप चैंपियनशिप में तीन बार विजेता रह चुकी है। भारतीय महिला फुटबाल टीम ने काफी समय बाद 2014 के इंचियोन एशियाई खेलों में भी भाग लिया था। पर पूर्व अंतरराष्ट्रज्ीय खिलाड़ी तरुण राय द्वारा प्रशिक्षित यह टीम लीग स्टेज से आगे नहीं बढ़ पाई। दिल्ली के एक और पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी अनादि बरुआ की कोचिंग में टीम ने नीदरलैंड जैसी सशक्त टीम को हराया। 1979 और 1983 में एएफसी महिला एशिया कप में भारतीय महिला टीम उपविजेता रह चुकी है।
महिला फुटबाल में धीरे-धीरे दिलचस्पी बढ़ रही है। अब संपन्न घरों की लड़कियां भी मैदान में पसीना बहाने को तत्पर हैं, चाहे वह डॉक्टर की बेटी हो या किसी प्रधानाचार्य की। भाजपा नेता राजीव प्रताप रूडी की पुत्री आतिशा प्रताप सिंह भी अंडर-16 में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।
दिल्ली की पहली अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी नेहा कपूर का मानना है कि साल में एक बार महिला फुटबाल लीग के आयोजन से कुछ नहीं होने वाला। जरूरत है जमीनी स्तर पर काम करने की। छोटे-छोटे टूर्नामेंट भी आयोजित होने चाहिए ताकि प्रतिभाओं को तलाशने में मदद मिले। नए खिलाड़ियों को बराबर मौका देते रहना चाहिए। पुरुष-महिला टीमों के बीच भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। पुरुषों के लिए अंतरराष्ट्रीय कोच है तो महिला टीम की जिम्मेदारी स्थानीय कोच को सौंप दी जाती है। राष्ट्रीय स्तर पर तो दूर, अगर राज्य की टीम के लिए भी अच्छा प्रदर्शन करो तो कोई सराहना या सम्मान नहीं मिलता। दो साल से दिल्ली में महिला फुटबाल लीग नहीं हुई, यह शर्मनाक है। टीम भेजनी हो तो पंद्रह दिन का शिविर लगा दिया जाता है। ऐसे में खिलाड़ी के चोटिल होने का खतरा रहता है। सच तो यह है कि देश में महिला फुटबाल का माहौल बनाने में समय लगेगा। ०