यूरोपियन सेंटर फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन’ के अध्ययन में पाया गया है कि एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया (सुपरबग) की संख्या लगातार बढ़ रही है। ये तथाकथित सुपरबग अकेले यूरोपीय संघ में हर साल 33,000 मौत के लिए जिम्मेदार है। वैज्ञानिक नए एंटीबायोटिक विकसित करने और प्रतिरोधी बैक्टीरिया से निपटने के लिए लगातार संघर्ष करते रहे हैं। अब जाकर इसमें सफलता मिली है। वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि बैक्टीरिया जनित मौत की रफ्तार अब थामी जा सकेगी।

हाल के एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चूहों में प्रतिरोधी बैक्टीरिया को मारने में कामयाबी हासिल की है। इस तरीके पर अभी शोध जारी है। इसके तहत जीन में बदलाव करने की तकनीक ‘सीआरआइएसपीआर-केस9’ का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक को नोबल पुरस्कार भी मिल चुका है। कनाडा में शेरब्रुक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का इस्तेमाल किया है और नतीजे अच्छे रहे हैं। यह तकनीक प्रतिरोधी बैक्टीरिया के अंदर जाने और महत्त्वपूर्ण ‘अनुवांशिक तारों’ को काटने के लिए ‘जेनेटिक कैंची’ की तरह काम करती है। ऐसा करके बैक्टीरिया को निष्क्रिय कर उसे शरीर के अंदर ही मार देने में सफलता मिली है।

वर्ष 1928 में पेनिसिलिन की खोज की गई। इस खोज से पहले गले में सामान्य संक्रमण से भी लोगों की जान जाने की संभावना बनी रहती थी। तब से अब तक एंटीबायोटिक की खोज से स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी बदलाव आया। नुकसानदेह बैक्टीरिया के खिलाफ लड़ाई में एंटीबायोटिक ने लाभ हुआ, लेकिन सुपरबग की चुनौती उठ खड़ी हुई। यह चुनौती आज के समय की अहम समस्या बन गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, एंटीबायोटिक प्रतिरोध में तेजी से वृद्धि की वजह से हर साल लगभग सात लाख लोगों की मौत होती है।

अब खोजी गई ‘सीआरआइएसपीआर-केस9’ तकनीक से उम्मीद बंधी है। यह आरएनए या डीएनए अनुक्रम में खोज कर बुरे बैक्टीरिया को खत्म कर देता है। यह खोजने और काटने वाले आणविक मशीन की तरह है। आप इसे किसी खास डीएनए अनुक्रम के बारे में बताते हैं। यह सिर्फ उसी जगह पर काटता है। इस मामले में जो डीएनए अनुक्रम है वह एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन है। यह जीन स्वास् थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है।

इस आणविक मशीन को प्रतिरोधी बैक्टीरिया के अंदर पहुंचाना आसान नहीं है। शोधकर्ताओं ने ऐसा करने में कामयाबी हासिल की। दरअसल, बैक्टीरिया एक दूसरे को छूकर आनुवंशिक सामग्री को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचा सकते हैं। इस प्रक्रिया को संयुग्मन कहा जाता है। इन वैज्ञानिकों ने एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीन को निशाना बनाने के लिए ‘सीआरआइएसपीआर-केस9’ का इस्तेमाल करने के लिए इसमें इस तरह से बदलाव किया कि उसे बैक्टीरिया के बीच एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सके।

इसके बाद, उन्होंने इसे नुकसान न पहुंचाने वाले बैक्टीरिया के बीच डाल दिया और चूहों को खिला दिया। जिन एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया को निशाना बनाया गया था उनमें 99.9 फीसद से ज्यादा बैक्टीरिया चार दिनों में खत्म हो गए। कुछ शोध समूहों ने बैक्टीरिया पर हमला करने वाले वायरस, जिन्हें बैक्टीरियोफेज कहा जाता है, को इस्तेमाल कर सफलता अब रुकेगी।

बैक्टीरिया से होने वाली मौत

एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया (सुपरबग) की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस कारण हर साल लाखों लोगों की मौत होती है। इस तरह की मौत को कम करने की तकनीक इजाद कर ली गई है। इसे ‘सीआरआइएसपीआर-केस9’ नाम दिया गया है। कनाडा में शेरब्रुक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का इजाद और इस्तेमाल किया है। तकनीक का सफल परीक्षण सफल बताया गया है।