नए विमानन नियम, नई सहूलियतें, आधुनिक तामझाम, यात्रा में सुगमता की गारंटी समेत और भी दावे उस समय धरे के धरे रह जाते हैं जब विमान के उड़ने से पहले ही अव्यवस्था सामने आ जाती है। ताजा उदाहरण है, दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के सपाट रनवे पर दो विमानों का आमने-सामने आ जाना। इसे एटीसी (एअर ट्रैफिक कंट्रोल) की गलती कहें या विमानन कंपनियों की तकनीकी नाकामी, या फिर पायलटों की लापरवाही! 28 दिसंबर को देश में दो बड़े विमान हादसे होते-होते बचे। एक दिल्ली में और दूसरा गोवा में। दोनों घटनाओं ने हवाई यात्रा के सुरक्षा-प्रबंधों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर दिया है।

गोवा में जिस तरह से विमान उतरने के दौरान अपना संतुलन खोकर धरती पर गिरा और हादसा होने से बचा, उसे कुदरत का करिश्मा ही कहेंगे। अंदर बैठे यात्रियों ने बाहर निकल कर बताया कि जब विमान रनवे पर फिसल रहा था तो धड़ाम-धड़ाम की तेज आवाजें उन्हें सुनाई दे रही थीं। विमान तेजी से अचानक मुड़ा और आगे की तरफ तेज आवाज करता हुआ एकदम झुक गया। थोड़ी देर के लिए सभी यात्रियों की सांसें थम-सी गर्इं।

विमान का लैंडिंग गियर जिस तरह से क्षतिग्रस्त हुआ है उससे हादसा होने की परिकल्पना की जा सकती है। लैंडिंग गियर पूरी तरह से चकनाचूर हो गया है। जेट एयरवेज के इस विमान में 161 यात्री थे। घटना के वक्त थोड़ी देर के लिए अफरातफरी का माहौल बन गया। विमान में सवार चालक दल के लोग यात्रियों को छोड़ खुद की जान बचाने के लिए तेजी से उतरते दिखाई दिए। इसकेचलते आपाधापी में बारह यात्री जख्मी हो गए। सवाल उठता है कि यात्रियों की सुरक्षा आखिर कौन करेगा? दोनों घटनाओं में विमानन कंपनियों की नाकामी प्रत्यक्ष रूप से सामने आ रही है। उनकी तकनीकी खामी जाहिर है। हालांकि अपना गलती न विमानन कंपनी स्वीकार करेंगी और न ही सरकारी तंत्र स्वीकार करेगा!

जिस तरह से विमान का अगला हिस्सा रनवे को पार करता हुआ दूसरी तरफ जाकर जमीन को छूआ उससे लगता है कि इसमें सिर्फ पायलट की गलती रही होगी। विमान के अंदर लोग दहशत में आ गए, क्योंकि उस वक्त जोरदार झटका लगा। घटना की प्रारंभिक जांच करते हुए प्रशासन ने फिलहाल दोनों पायलटों के लाइसेंस अस्थायी रूप रद््द कर दिए हैं। सवाल उठता है कि क्या यह सब करने से हादसों को रोकने का हल निकल आएगा? घटना की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए, और दोषी कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

हरियाणा का चरखी विमान हादसे को भारत में अब तक के सबसे बड़े हवाई हादसों में गिना जाता है। उस हादसे को याद करते ही रूह कांप उठती है। दिल्ली में चरखी हादसे की पुनरावृत्ति होते-होते बची। दो विमान आमने-सामने टक्कर खाने से बच गए। बताने की जरूरत नहीं कि अगर टक्कर हो जाती तो क्या होता? 12 नवंबर, 1996 को चरखी दादरी में दो विमान हवा में टकरा गए थे। एक विमान सऊदी अरब का था तो दूसरा कजाखिस्तान का। उस हादसे में दोनों विमानों में सवार सभी 349 यात्रियों में से कोई जिंदा नहीं बचा।

चरखी हादसे में रूसी विमान के पायलट की गलती सामने आई थी। उसको एटीसी के दिशा-निर्देश ठीक से समझ नहीं आ रहे थे। एटीसी उसे बता रहा था कि वह गलत रूट पर जा रहा है। दरअसल, रूसी पायलट को अंग्रेजी नहीं आती थी। वह रूसी भाषा ही जानता था। अंग्रेजी में निर्देश न समझ पाने के कारण पायलट ने सामने आ रहे दूसरे विमान को टक्कर मार दी। उस हादसे में दोनों विमानों के मुसाफिर मारे गए। इस हादसे के बाद विमानन संहिता में एक संसोधन किया गया। हर देश में एटीसी और पायलट को अंग्रेजी जरूर आनी चाहिए। इस हादसे के बाद एटीसी के लोग अंग्रेजी तो सीख गए लेकिन हादसे नहीं थमे। विमान हादसों में अधिकतर खराब मौसम होने की दुहाई दी जाती है। लेकिन ऐसे हादसों में मानवीय चूक भी बहुत बड़ी भूमिका अदा करती है, जिस पर एकाएक किसी का ध्यान नहीं जाता। या, फिर ध्यान जान-बूझकर नहीं दिया जाता?

अक्सर कहा जाता है कि भारत का हवाई क्षेत्र अब भी विश्वस्तरीय नहीं है। भारत में महज दिल्ली, मुंबई जैसे दो-तीन ही अंतरराष्ट्रीय मानक के हवाई अड््डे हैं। जबकि देश में हवाई यातायात उद्योग क्षेत्र में भारी संभावनाएं हैं। यह क्षेत्र सालाना चौदह फीसद की दर से बढ़ रहा है। हालांकि दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों को तो हवाई मार्ग से अभी जोड़ा ही नहीं गया है। जबकि आर्थिक तरक्की के साथ इन शहरों में हवाई यात्री बढ़े हैं।

दिल्ली-गोवा की इन दोनों घटनाओं ने विमान यात्रियों के मन में अंदेशे पैदा किए हैं। क्योंकि हाल ही में विमान संबंधी की भयावह घटनाएं घटी हैं। पिछले सप्ताह ही रूस का एक विमान समुद्र में समा गया था। भारत में घटी ताजा घटनाओं ने यात्रियों में हवाई सफर को लेकर नए अंदेशे पैदा किए हैं। तकनीकी खामियों से विमान दुर्घटनाएं होती रही हैं। अब विमानन कंपनियों द्वारा सुरक्षा संबंधी लापरवाही और अशांत क्षेत्रों के ऊपर से उड़ान भरने को लेकर नए सवाल खड़े होने लगे हैं। आखिर कैसे हो सुगम हवाई यात्रा? हालांकि उक्त घटनाओं पर केंद्र सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं। प्रशासन को ऐसे सभी पायलटों को अयोग्य करार देना चाहिए जो यात्रा के दौरान लापरवाही दिखाते हैं। क्योंकि उनकी थोड़ी-सी चूक कइयों की जान ले सकती है।

खराब मौसम, पायलट की चूक या फिर किसी तकनीकी समस्या से अब तक हवाई हादसों में अनगिनत यात्रियों ने अपनी जान गंवाई है। जनवरी 1978 में पहली बार एअर इंडिया का विमान अरब सागर में क्रैश हुआ था। उस विमान में दो सौ तेरह यात्री सफर कर रहे थे, जिनकी जिंदगी का वह आखिरी सफर साबित हुआ। विमान में सवार सभी लोग मारे गए। इसके बाद 21 जून 1982 को एअर इंडिया का एक और विमान मुंबई हवाई अड््डे पर क्रैश हुआ। विमान में सवार एक सौ ग्यारह लोगों में से सत्रह लोगों की मौत हो गई। जांच में पाया गया कि पायलट की गलती से यह हादसा हुआ था।

वर्ष 1988 में एक बार फिर एयर इंडिया का एक विमान अमदाबाद में क्रैश हुआ। यह हादसा इतना भयंकर था कि विमान में सवार एक सौ चौबीस लोग मारे गए थे, जबकि पांच यात्रियों को बचा लिया गया था। दो साल बाद, 1990 में फिर एक विमान हादसा बंगलोर में हुआ। विमान में एक सौ छियालीस मुसाफिर थे जिनमें से बानवे की मौत हो गई। इसके अगले साल यानी 1991 में एअर इंडिया का विमान इंफाल में क्रैश हुआ, जिसमें उनहत्तर लोग मारे गए। साल 2000 में एलायंस एयर फ्लाइट सीडी-7412 पटना हवाई अड्डे पर हादसे का शिकार हो गया। इसमें साठ लोगों की जान चली गई। इसके अलावा कई चार्टर विमान और हेलीकॉप्टर भी क्रैश हुए। अधिकतर घटनाओं की जांच में यही पाया गया कि खराब रखरखाव व अन्य तकनीकी खराबियों की वजह से हादसे हुए। कुछ में पायलटों की नाकामी भी सामने आई थी।

भारत के सभी रनवे को और स्तरीय बनाने की जरूरत है। दक्ष पायलटों को ही विमान उड़ाने की इजाजत होनी चाहिए। विमानों का रखरखाव ठीक से हो और सबकी समय पर तकनीकी जांच की जाए, ताकि यात्री भयमुक्त होकर विमानों में सफर कर सकें। नई उड््डयन नीति के तहत सरकार ने देश में हवाई यातायात की सुविधा का विस्तार करने का इरादा जताया है। मगर पहली प्राथमिकता सुरक्षा की होनी चाहिए।