एमएसपी का मतलब न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है। एमएसपी सरकार की ओर से किसानों की कुछ फसलों के मूल्य की गारंटी होती है। राशन तंत्र के तहत जरूरतमंद और गरबी लोगों को अनाज मुहैया कराने के लिए सरकार एमएसपी पर किसानों से उनकी फसल खरीदती है।

बाजार में उस फसल का मूल्य भले ही कितना ही कम क्यों न हो, सरकार उसे तय एमएसपी पर ही खरीदती है। इससे किसानों को अपनी फसल की एक तय कीमत के बारे में पता चल जाता है कि उसकी फसल के दाम कितने चल रहे हैं। हालांकि मंडी में उसी फसल के दाम ऊपर या नीचे हो सकते हैं। यह किसान की इच्छा पर निर्भर है कि वह फसल को सरकार को एमएसपी पर बेचे या फिर व्यापारी को आपसी सहमति से तय कीमत पर बेचे।

फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) तय करता है। सीएसीपी तकरीबन सभी फसलों के लिए दाम तय करता है। आयोग समय के साथ खेती की लागत के आधार पर फसलों की कम से कम कीमत तय करके अपने सुझाव सरकार के पास भेजता है। सरकार इन सुझाव पर अध्ययन करने के बाद एमएसपी की घोषणा करती है।

रबी और खरीफ की कुछ अनाज वाली फसलों के लिए एमएसपी तय किया जाता है। एमएसपी का गणना हर साल मौसम की फसल आने से पहले तय की जाती है। फिलहाल 23 फसलों के लिए सरकार एमएसपी तय करती है। इनमें अनाज की सात, दलहन की पांच, तिलहन की सात और चार व्यवसायिक फसलों को शामिल किया गया है।

धान, गेहूं, मक्का, जौ, बाजरा, चना, तुअर, मूंग, उड़द, मसूर, सरसों, सोयाबीन, सूरजमूखी, गन्ना, कपास, जूट आदि की फसलों के दाम सरकार तय करती है। हालांकि, छोटे किसान अपनी फसल को सरकार की ओर से तय किए गए एमएसपी पर नहीं बेच पाते हैं। बिचौलिये, किसान से फसल खरीदकर एमएसपी का फायदा उठाते हैं। अभी कई फसलें एमएसपी के दायरे से बाहर हैं। केरल सरकार ने सब्जियों के लिए आधार मूल्य तय किया है। केरल ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य है।