अक्किनेनी लक्ष्मी वारा प्रसाद राव यानी एलवी प्रसाद जब याद आते हैं तो भारतीय सिनेमा से जुड़ी कई दिलचस्प घटनाएं अपने आप दिमाग में चलने लगती हैं और महाकवि कालिदास पर बनी तमिल फिल्म ‘कालिदास’ बरबस याद आ जाती है। यह देश में ‘आलम आरा’ के बाद बनी दूसरी बोलती फिल्म थी और कई मानो में दिलचस्प थी। देश की पहली बोलती हिंदी फिल्म ‘आलम आरा’ (प्रदर्शन 24 मार्च, 1931) में एलवी प्रसाद ने भी अभिनय किया था। फिल्मों में आवाज की ताकत समझ चुके निर्माता-निर्देशक आर्देशीर ईरानी ने इंग्लैंड जाकर 15 दिनों की ट्रेनिंग लेने के बाद ‘आलम आरा’ बनाई थी।
‘आलम आरा’ बनने के बाद सेट खाली पड़ा था तो, ईरानी ने उसी सेट पर पहली तमिल बोलती फिल्म ‘कालिदास’ (प्रदर्शन 31 अक्तूबर, 1931) मात्र आठ दिनों में बनाई और इसका निर्देशन अपने सहायक एचएम रेड्डी (हनुमप्पा मणिअप्पा रेड्डी) से करवाया। इसी सेट पर फिर तेलुगू की पहली बोलती फिल्म ‘भक्त प्रहलाद’ बनी। एक ही सेट पर बनी इन तीनों ही फिल्मों में एलवी प्रसाद ने अभिनय किया। ‘कालिदास’ तो कई मानो में बहुत मजेदार फिल्म थी। जिस टेनोर कैमरे से ‘आलम आरा’ फिल्माई गई थी, उसी से तमिल ‘कालिदास’ का फिल्मांकन शुरू करने से पहले ईरानी को लगा कि कैमरे की रील पर तमिल संवाद दर्ज नहीं होंगे और यह कैमरा सिर्फ हिंदी संवाद ही दर्ज करता होगा। मगर तमिल ही नहीं हर तरह की ध्वनि रील पर दर्ज हो रही थी, जिससे ईरानी खूब उत्साहित थे और चाहते थे कि ‘आलम आरा’ के सेट पर जल्दी से एक फिल्म और तैयार कर ली जाए। मगर इतनी जल्दी कहानी और कलाकार कहां से लाएं, यह सवाल ईरानी के सामने था। इसका हल निकाला तेलुगूभाषी रेड्डी और सीएसआर (चिलकालापुडी सीता राम आंजनेयुलु) ने। रेड्डी ने आंध प्रदेश के एक थियेटर ग्रुप के सभी कलाकारों की सेवाएं ली। सीएसआर की देखरेख में सारे कलाकार आंध्र प्रदेश से मुंबई लाए गए और उनको साथ लेकर फिल्म की शूटिंग शुरू कर दी गई। कालिदास’ मूल तमिल फिल्म थी। नाटकों में काम कर चुकीं उसकी हीरोइन टीपी राजलक्ष्मी तो तमिल संवाद बोल रही थीं मगर हीरो पीजी वेंकटेशन का तमिल में हाथ तंग था, तो वह तेलुगू संवाद बोल रहे थे। उसमें जो किरदार हिंदी बोल रहा था उसे निभाया था एलवी प्रसाद ने।
एक तरह से यह पहली खिचड़ी या बहुभाषिक फिल्म थी। खिचड़ी इस माने में कि ‘कालिदास’ में फिल्म की कहानी के अलावा भी काफी कुछ डाला गया था। इस फिल्म में स्वतंत्रता आंदोलन और महात्मा गांधी पर बने गाने भी डाल दिए गए थे। यहां तक कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रचार के लिए बना एक गाना भी इसमें डाल दिया गया था। यह वह दौर था जब लोगों के लिए तसवीरों का हिलना और बोलना आश्चर्य का विषय था। लोग का सारा ध्यान इसी पर लगा था कि तसवीरें हिल-बोल कैसे रही हैं। चूंकि प्रसाद पृथ्वी थियेटर में काम कर चुके थे और राज कपूर से उनका परिचय हो चुका था। इसलिए जब वह ‘शारदा’ फिल्म से निर्माता बने तो राज कपूर को उसका हीरो बनाया। प्रसाद की फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ का प्रीमियर देखकर जब राज कपूर ने कहा कि तुमने तो हीरो-हीरोइन को क्लाइमैक्स में मार कर फिल्म का मर्डर कर दिया, तब प्रसाद ने कहा कि महान प्रेमकथाएं दुखांत ही होती है। इस फिल्म को देखकर प्रेमी-प्रेमिकाओं ने जब आत्महत्याएं करनी शुरू की, तो इसका क्लाइमैक्स बदला गया। मगर दर्शकों ने बदला हुआ क्लाइमैक्स पसंद नहीं किया।