सेंटर फॉर इंडियन क्लासिकल डांसेज के 42वें स्थापना दिवस के मौके पर कलायात्रा समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पांचवां जीवन रत्न सम्मान कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज को प्रदान किया गया। पंडित बिरजू महाराज ने कहा कि हमारा लक्ष्य नृत्य के जरिए ईश्वर के दिए अंगों-प्रत्यांगों से उनको ही भजना है। एक कलाकार स्वर, लय और ताल की नैया पर सवार होकर चलता है। हम अपनी आंगिक कला से दर्शकों को सुंदरता, आनंद, शांति की अनुभूति देना चाहते हैं। कमानी सभागार में इस अवसर पर संस्कृति विदुषी डॉ सोनल मानसिंह के शिष्य-शिष्याओं ने नृत्य पेश किया। इस प्रस्तुति में गणेश वंदना, शिव तांडव स्त्रोत, देवी महात्म्य व नवरस शामिल थे। देवी महात्म्य नृत्य रचना के संदर्भ में डॉ सोनल मानसिंह ने कहा कि देवी पुराण मेरे जीवन की प्रेरणा है। देवी महात्म्य को समझ जीवन के रहस्य को साधना है। जिस देश में कलाकार सम्मानित हैं, वही देश सभ्य, सुसंस्कृत, समृद्ध कहलाने लायक है।
समारोह में श्रीकामाख्या पीठ की नन्हीं कलाकारों ने गणेश वंदना पेश किया। इसमें योग के विभिन्न आसनों को ओडिशी नृत्य की विभिन्न भंगिमाओं के साथ संयोजन सुंदर है। ओडिशी नृत्य और छऊ नृत्य को समागम शिव तांडव स्त्रोत में दिखा। नर्तक चंद्रकात सुनार की यह एकल प्रस्तुति सुंदर थी। इसकी शुरुआत शृंगार रस से हुई। अगले अंश में वीर रस का निरूपण देवी महिषासुरमर्दिर्नी रूप के जरिए किया गया। करुण रस को दर्शाने के लिए रचना कारूंण्यं भक्त जन संकटे का प्रयोग किया गया। देवी पार्वर्ती को खुश करने के लिए शिव के गण तरह-तरह का प्रयास करते हैं। इसके जरिए हास्य रस का प्रदर्शित किया गया। अंतिम प्रसंग के लिए रचना देवी भगवती वरासने प्रस्तुति को सुंदर पराकाष्ठा प्रदान करने में सहायक प्रतीत हुआ। नृत्य रचना में ओडिशी और छऊ नृत्य शैलियों के साथ नृत्य अभिनय का समायोजन मोहक था। सामूहिक प्रस्तुति में कलाकारों का आपसी तालमेल और संतुलन सधा हुआ था। उनकी तैयारी अच्छी थी, यह स्पष्ट दिख रही थी।
नृत्य में अद्भुत रस का निरूपण वरिष्ठ नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने किया। प्रसंग के अनुरूप उन्होंने आंगिक अभिनय, मुख व नेत्रों के भावों व हस्तकों के जरिए गणपति के अवतरण की कथा को दर्शाया। उनके नृत्य में एक ओज, तेज और स्फूर्ति अब भी कायम है, यह बड़ी बात है। दरअसल, प्रतिष्ठित नृत्यांगना सोनल मानसिंह मंच पर आती हैं, तो वहां सहज ही एक आॅरा बन जाता है। इसके लिए दर्शक के मन में सिर्फ अनुभूति होनी चाहिए। क्योंकि कुछ पल में ही अपने नृत्य से वह गागर में सागर भर देती हैं। पचहत्तर बसंत देख चुकीं, डॉ सोनल मानसिंह का उस रोज जन्मदिन भी था। इसलिए बड़ी संख्या में उनके प्रशंसक उनको बधाई देने भी पहुंचे थे। इसके अलावा, उनके शिष्य-शिष्याओं ने उनको यथोचित सम्मान देते हुए, जन्मदिन को खास अवसर व यादगार बना दिया।

