संजय कुमार डे

इनमें से चार लोग रांची में मंगलवार को मारे गए। वन अधिकारियों ने यह जानकारी दी। रांची के संभागीय वन अधिकारी श्रीकांत वर्मा ने बताया कि इटकी प्रखंड में धारा 144 के तहत प्रशासन ने निषेधाज्ञा लगा दी है एवं एक स्थान पर पांच से अधिक लोगों जुटने पर रोक लगा दी है, ताकि हाथी के हमले में और लोग हताहत न हों। उन्होंने कहा कि इस प्रखंड के ग्रामीणों को खासकर सुबह और शाम को घरों के अंदर ही रहने को कहा गया है, उन्हें किसी हाथी के करीब नहीं जाने की भी सलाह दी गई है।

वर्मा नेकहा, ‘ग्रामीण उस हाथी के पास भीड़ लगा रहे हैं जिसकी वजह से आज एक व्यक्ति की मौत हुई। उन्हें भीड़ लगाने से रोकने की कोशिश के तहत इटकी प्रखंड में आज धारा 144 लगा दी गई।’ प्रधान मुख्य वन संरक्षक शशिकार सामंत ने बताया कि वन विभाग उस हाथी को काबू में लाने के लिए पश्चिम बंगाल के एक विशेषज्ञ दल की मदद लेने समेत सभी संभावित कदम उठा रहा है जिस पर 12 दिनों में हजारीबाग, रामगढ़, चतरा, लोहरदगा और रांची जिलों में 16 लोगों को मार डालने का संदेह है।

उन्होंने कहा, ‘हमने रांची के वन संरक्षक की अगुआई में चार संभागों के वन अधिकारियों की एक समिति बनाई है। समिति तय करेगी कि क्या उसी हाथी के हमले में सभी 16 लोगों की मौत हुई है । यदि समिति यह निष्कर्ष निकालती है तो हम एक -दो दिन में निर्णय लेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि हाथी मतवाले की तरह व्यवहार कर रहा है। समिति यह पता लगाएगी कि क्या हाथी जानबूझकर लोगों पर हमला कर रहा है या लोग अपनी मौत के लिए के लिए खुद ही जिम्मेदार हैं।’

हाथियों के रहने का सिकुड़ता दायरा

बड़े पैमाने पर निर्माण गतिविधियों के बीच झारखंड में जानवरों के आवास सिकुड़ने और उनके गलियारों के तेजी से गायब होने के साथ , राज्य में मानव-हाथी संघर्ष की घटनाओं में वृद्धि हुई है। पिछले वित्त वर्ष में हाथी के हमलों में 133 लोगों की मौत हुई है, जो कि इससे एक साल पहले मारे गए लोगों की तुलना में 84 ज्यादा है।

22 जनवरी को रांची के तामार इलाके में 65 वर्षीय व्यक्ति को एक हाथी ने कुचल कर मार डाला था और दो वर्षीय लड़के को एक झुंड ने कुचल कर मार डाला था। अधिकारियों ने बताया कि जनवरी में ही झारखंड में हाथियों के हमले में पांच लोगों की मौत हुई है। केंद्र केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय ने अधिवक्ता सत्य प्रकाश ने पिछले दिनों एक आरटीआई के जवाब में कहा था कि 2017 के बाद से पांच साल की अवधि में मानव-हाथी संघर्ष में राज्य में 462 लोग मारे गए हैं। पिछले वित्त वर्ष में 133 लोग मारे गए थे।

पांच साल में पड़ोसी ओड़ीशा राज्य में 499, असम और पश्चिम बंगाल में क्रमश: 385 और 358 लोगों मौत हुई। वन्यजीव विशेषज्ञों के साथ-साथ वन अधिकारियों का कहना है कि अतिक्रमित गलियारों, वन भोजन की कमी और आवास विखंडन मानव-हाथी संघर्ष को बढ़ाने वाले कारण हैं। इंडिया स्टेट आफ फारेस्ट रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड का वन क्षेत्र 243 वर्ग किलोमीटर बढ़ गया है। 2015 में 23,478 वर्ग किमी से बढ़कर 2021 में 23,716 वर्ग किमी हो गया – लेकिन, इससे किसी भी तरह से खतरे पर अंकुश नहीं लगा।

प्रोजेक्ट एलीफेंट के लिए भारत सरकार की संचालन समिति के पूर्व सदस्य डीएस श्रीवास्तव ने पिछले दिनों बताया था कि अनियोजित विकास कार्य, खनन गतिविधियों, अनियमित चराई, जंगल की आग और माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ों ने जानवरों के रहवासों को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा था कि राज्य में भले ही वन क्षेत्र में वृद्धि हुई हो, लेकिन एक दशक में जानवरों के आवास में कमी आई है।

हाथियों को बांस और घास की छतरी के पतले होने के कारण भोजन की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा, हाथी तेजी से अपने पारंपरिक मार्गों को खो रहे हैं। गलियारे में से एक – झारखंड में सारंडा जंगलों से ओड़ीशा में सुंदरगढ़ तक – खनन के कारण नष्ट हो गया। इसी तरह, बंगाल में एक राष्ट्रीय राजमार्ग विस्तार परियोजना के कारण झारखंड के रामगढ़ से पुरुलिया तक हाथियों के लिए कई बाधाएं आई हैं। राज्य वन्यजीव बोर्ड के एक पूर्व सदस्य ने कहा कि संघर्ष समय के साथ बढ़ सकता है क्योंकि भोजन की तलाश में हाथी गांवों में जा सकते हैं, जिससे मानव जीवन, संपत्ति और फसलों को नुकसान हो सकता है।