दुविधा में दिख रही है राजस्थान में भाजपा। अमित शाह की छवि चुनावी शतरंज के बादशाह की है। पर वे भी तय नहीं कर पा रहे कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का क्या करें। उन्हें चुनाव के मौके पर छेड़ना खतरे से खाली नहीं होगा। सो चुनाव तो उन्हीं के चेहरे पर लड़ने की मजबूरी ठहरी। हां, इस बार उनकी मनमानी शायद ही चले। अमित शाह आकलन कर चुके हैं कि भाजपा से कम, वसुंधरा से ज्यादा है लोगों की नाराजगी। आम जनता तो खैर अलग है, यहां तो पार्टी के कार्यकर्ता ही नाराज हैं। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को चुनाव प्रभारी बनाया है आलाकमान ने। जावड़ेकर ने कह दिया कि मुख्यमंत्री के रूप में पार्टी का चेहरा तो वसुंधरा ही होंगी। पर टिकट हम बांटेंगे। इससे चहलकदमी बढ़ी है।
आलाकमान ने अपने करीब सौ विधायकों के टिकट काटने की तैयारी कर ली थी। उसी हिसाब से पूर्व सूबेदार अशोक परनामी ने नए लोगों की सूची बना उन्हें चुनाव की तैयारी करने की हरी झंडी भी दिखा दी थी। भनक आलाकमान को लगी तो टिकट वितरण की प्रक्रिया से वसुंधरा को अलग कर दिया। परनामी ठहरे कारोबारी। जो टिकट की आस में भेंट पूजा कर चुके थे अब उनकी भीड़ परनामी के घर पर दिख रही है। बेचारे क्या सफाई दें। मुख्यमंत्री को ठहरा रहे हैं जिम्मेदार। आलाकमान ने चालाकी दिखाई। हर सीट पर कार्यकर्ताओं से फीडबैक ले लिया। वसुंधरा और परनामी की भूमिका एक दर्जन सीटों तक सीमित होकर रह गई। पाली जिले के रणकपुर में की 102 सीटों के बारे में रायशुमारी। एक दर्जन से ज्यादा नेताओं के समूह बना उन्हें सौंप दिया हर सीट पर उम्मीदवारों के पैनल बनाने का जिम्मा। दो नेताओं का एक समूह।
वसुंधरा खेमा भी जान गया कि अब टिकट आलाकमान की मर्जी से ही मिलेंगे। जहां तक राजस्थान को लेकर पार्टी नेतृत्व की चिंता का सवाल है, हार तय मानकर बन रही है रणनीति। कम से कम अपमानजनक हार से तो बच जाएं। मुख्यमंत्री की गौरव यात्रा तो अधूरी रही ही, आलाकमान के दौरे भी कार्यकर्ताओं में अपेक्षित जोश नहीं भर पाए। आलकमान के करीबी लोगों ने डाल दिया है जयपुर में डेरा। कार्यकर्ताओं को एक ही पहाड़ा पढ़ा रहे हैं कि व्यक्ति को मत देखो, सिर्फ कमल को देखो। जाहिर है कि चेहरे के बजाए पार्टी के नाम पर होगी अब वोट की याचना।