उत्तराखंड में भले ही भाजपा ने 47 सीटें जीतकर फिर से सत्ता हासिल कर ली और उत्तराखंड की राजनीति में 20 सालों के रेकार्ड को ध्वस्त करते हुए एक नया रेकार्ड बनाया। भाजपा ने उत्तराखंड में युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था और धामी खुद ही खटीमा विधानसभा सीट से कांग्रेस के युवा उम्मीदवार पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष भुवन चंद कापड़ी से चुनाव हार गए। धामी खुद हारे और उनके दाहिने हाथ कैबिनेट मंत्री स्वामी यतिस्वरानंद हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा सीट से हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत से चुनाव हार गए।
अनुपमा रावत ने 2017 के विधानसभा चुनाव में हरिद्वार ग्रामीण सीट से अपने पिता हरीश रावत की हार का बदला स्वामी से चुकता किया। वहीं हरीश रावत की भी खासी किरकिरी हुई। उनके नेतृत्व में कांग्रेस उत्तराखंड में चुनाव लड़ रही थी। रावत खुद लाल कुआं विधानसभा सीट से चुनाव हार गए और रावत के कट्टर समर्थक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल भी विधानसभा चुनाव हार गए। कांग्रेस की लाज बचाई नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने चकराता विधानसभा सीट से लगातार पांचवीं बार जीत दर्ज करके।
कांग्रेस हाईकमान ने हरीश रावत के दबाव में प्रीतम सिंह को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाकर गणेश गोदियाल को पार्टी का अध्यक्ष बनाया था और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह को इस तरह हरीश रावत के दबाव में पार्टी ने प्रीतम सिंह को किनारे लगाया। कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि रावत की जगह यदि कांग्रेस प्रीतम सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ती तो पार्टी फिर से सत्ता हासिल कर सकती थी।
कांग्रेस के नेताओं का आरोप है कि हरीश रावत ने अपनी बेटी अनुपमा रावत को हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा सीट से चुनाव जिताने के लिए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक से हाथ मिला लिया था। इसलिए कांग्रेस पार्टी हरिद्वार शहर की सीट हारी क्योंकि हरीश रावत किसी भी सूरत में अपनी बेटी के लिए चुनाव में जीत चाहते थे और उन्होंने सतपाल कर्मचारी की बली चढ़ा दी। जो भी हो, इस बार के चुनावी नतीजों ने सूबे में भाजपा और कांग्रेस दोनों के दिग्गजों को हार का मुंह दिखाकर साबित कर दिया कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है। जिस ब्रांडिंग वाली राजनीति की तहत धामी को लाया गया था वहां उनका चेहरा नाकाम हो गया।
सन्नाटे का साया
चार राज्यों के हुए चुनावों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने के बाद हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में भी सन्नाटा पसर गया है। प्रदेश के कांग्रेस नेताओं को उम्मीद थी कि कम से कम पंजाब में कांग्रेस सरकार बना ही लेगी। लेकिन जिस तरह पंजाब की जनता ने आम आदमी पार्टी पर भरोसा जताया और कांग्रेस का बुरा हाल हो गया, उससे प्रदेश के कांग्रेसी सदमे में आ गए हैं। उपचुनावों में हिमाचल में तीन विधानसभा और एक संसदीय हलके के उपचुनाव हुए थे और चारों सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल कर पार्टी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जोश भर दिया था।
जुब्बल-कोटखाई हलके में तो भाजपा उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गई थी। लेकिन पांच राज्यों के हुए चुनावों के नतीजों ने प्रदेश के कांग्रेस नेताओं की नींद उड़ा दी है। उपचुनावों में जीत के बाद कांग्रेस के नेता मुख्यमंत्री की दौड़ के लिए जोड़-घटाव करने में लग गए थे। लेकिन पांच राज्यों के चुनाव आने के बाद अब ये नेता कहने लगे हैं कि मुख्यमंत्री कोई भी बने, पहले एकजुट होकर सत्ता में आना है। उसके बाद मुख्यमंत्री की लड़ाई लड़नी होगी अन्यथा पंजाब की तरह हाल होते देर नहीं लगेगी।
गुरुवार से ही कांग्रेस नेता अब अलग रणनीति के तहत आगे बढ़ने की जद्दोजहद में लग गए हैं। ताजा चुनावी नतीजों के बाद तो कांग्रेस में सांगठनिक तौर पर हालात और बिगड़ने के आसार हैं। पहले ही पार्टी छोड़ने वालों और सवाल उठाने वालों की कतार लंबी थी। हिमाचल प्रदेश में साल के आखिर में चुनाव होने हैं। अब देखना है तब तक कांग्रेस कितनी एकजुट रह पाती है।
नतीजों की नसीहत
चुनावी नतीजों ने वसुंधरा राजे को भी संदेश दे दिया है। प्रधानमंत्री के पहले शपथ समारोह से नदारद रहने वाली भाजपा की वे इकलौती मुख्यमंत्री थीं। वे अपने समर्थकों के साथ किसी न किसी बहाने पार्टी के समानांतर गतिविधि चलाती रहती हैं। इसी आठ मार्च को अपना जन्मदिन मनाया। दक्षिणी राजस्थान के बूंदी जिले के केशोराज पाटन मंदिर में मत्था टेकने के बाद, समर्थकों को संबोधित करते हुए याद दिलाया कि राजनीति में 1989 में उतरी थीं। सियासत की डगर कांटों भरी है। पर वे हार नहीं मानेंगी। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में गहलोत सरकार को उखाड़ फेकेंगी।
यह जिक्र भी कर दिया कि तीन की संख्या पार्टी के लिए शुभ है। 2003 में 120 और 2013 में 163 सीटें जीती थीं। इस रेकार्ड को 2023 में तोड़ देंगी। समारोह में प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा और सतीश पूनिया के पोस्टर लगे थे। पर पूनिया मौजूद नहीं थे। हालांकि खुद प्रधानमंत्री ने ट्विटर पर उन्हें जन्मदिन की बधाई दी। पिछले साल भी उन्होंने अपना जन्मदिन पूर्वी राजस्थान के भरतपुर से धार्मिक यात्रा शुरू करके मनाया था। पार्टी की तरफ से कोई अधिकृत बयान तो नहीं आया पर एक दिन पहले अलवर के पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने वीडियो संदेश से पार्टी हित में उन्हें सलाह जरूर दे डाली कि उन्हें मुख्यमंत्री पद का ख्वाब देखना छोड़ देना चाहिए।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)