उत्तर प्रदेश इन दिनों सियासी हलचल से ज्यादा नौकरशाही की उठापटक से गुलजार है। भाजपा राज में वैसे भी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की कोई खास हैसियत है नहीं। सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आंख-कान भी नौकरशाह ही बने हैं। सूबे के मुख्य सचिव राजीव कुमार का कार्यकाल तीस जून को खत्म हो जाएगा। पिछले दिनों 1981 बैच के इस अफसर को सेवा विस्तार मिलने की अटकलें लग रही थीं। पर करीबी बताते हैं कि ये जनाब खुद इच्छुक नहीं। बेदाग छवि के कारण आस लगाए हैं। तीन या छ माह का सेवा विस्तार लेने से अच्छा है कि यूपीएससी के सदस्य बन जाएं। पांच साल चैन से कटेंगे। विकल्प नीति आयोग और प्रतिस्पर्धा आयोग की सदस्यता का भी हो सकता है। सो खुसर फुसर उनके उत्तराधिकारी को लेकर चल रही है। वरिष्ठता तो अब पैमाना रही नहीं। अन्यथा 1982 बैच के दीपक सिंघल का दावा बनता है। अखिलेश यादव के राज में कुछ दिन इस कुर्सी पर रहे भी थे। कार्यकाल भी एक साल बचा है। यानी अगला लोकसभा चुनाव करा सकते हैं।

अच्छे योजनाकार और बेहतर नतीजे देने वाले माने जाते हैं। पर सपा और बसपा के बड़े नेताओं से उनकी करीबी अवरोध बन रही है। यही अड़चन 1982 बैच के दूसरे अफसर प्रवीर कुमार की राह का रोड़ा बन गई है। बात 1983 बैच की होगी तो संजीव शरण हैं पर बदनामी और जांच के दायरे में होने से वे बाहर हैं। ले-देकर बात 1984 बैच पर अटक रही है। इसी बैच में दावेदार भी ज्यादा हैं। अनंत कुमार यों योगी की बिरादरी के हैं पर वे अब भारत सरकार की सेवा में हैं। अपने कैडर में वापसी नहीं चाहते। ऊपर से डीजीपी के राजपूत होने से योगी के लिए किसी राजपूत को ही मुख्य सचिव बनाना आसान नहीं होगा। 1984 में दुर्गा शंकर मिश्र, अनूप शंकर पांडे और संजय अग्रवाल के बीच दौड़ चल रही है। मिश्र फिलहाल डेपुटेशन पर भारत सरकार की सेवा कर रहे हैं। तो अग्रवाल और पांडे दोनों अपर मुख्य सचिव हैं।

उधर, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एसपी गोयल के खिलाफ भी आइएएस अफसरों की ही एक लाबी काम कर रही है। गोयल 1989 बैच के हैं। योगी उन्हें बेदाग छवि के चलते अपने साथ रखे हैं। पर हर फाइल का गहराई से पोस्टमार्टम करने की गोयल की आदत सत्ता के दलालों को हजम नहीं हो पा रही। पेट्रोल पंप की जमीन संबंधी पत्रावली को मंजूरी दिलाने के एवज में गोयल पर पच्चीस लाख रुपए की घूस मांगने का आरोप भी उनकी विरोधी लाबी ने ही लगवाया था। पर जांच में सफेद झूठ निकला। नतीजतन गोयल अपनी कुर्सी पर कायम हैं। विरोधी लाबी तो इसी को अपनी कामयाबी बता रही है कि अब प्रमुख सचिव गोयल के साथ अकेले मृत्युंजय नारायण कुमार ही नहीं एक और सचिव मनीष चौहान भी आ गए हैं योगी के सचिवालय में।