नीतीश कुमार अपने धुर विरोधी लालू प्रसाद के बेटे तेजप्रताप यादव की शादी पर गए। वर-वधू को आशीर्वाद भी दिया। मुंहबोले बड़े भाई लालू प्रसाद से भी हाथ मिलाया। ऐसे मौके पर राजनीतिक कटुता को दरकिनार कर मेलमिलाप करना अच्छी बात मानी जाती है। पर नीतीश कुमार के हावभाव तो ऐसे थे मानो वे केवल औपचारिकता निभा रहे हैं। उनके और लालू परिवार के बीच दूरी साफ झलक रही थी। नीतीश कुमार ने खाना भी नहीं खाया। नमक नहीं खाते हैं, ऐसी भी बात नहीं थी। तो भी नीतीश ने ऐसा सोचसमझ कर ही किया होगा। भाजपा के साथ मिलकर उनके सरकार बनाने के समय से ही लालू के छोटे बेटे और उनके सियासी वारिस तेजस्वी उनके खिलाफ मुखर हैं। नीतीश को भी अब कल तक भतीजे के रिश्ते में रहे तेजस्वी पर गुस्सा आने लगा है।

कर्नाटक की राजनीतिक उठापटक को देखते हुए तेजस्वी भी नीतीश सरकार को भंग करने की मांग उठाने में जुट गए हैं। यों कहें कि उन्हें नई ताकत मिली है। नीतीश की सरकार भंग न होगी और न ही तेजस्वी को सरकार बनाने का निमंत्रण मिलेगा। तेजस्वी यह सब जानते हैं। फिर भी उन्होंने यह नई रणनीति अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपनाई है। अपने पक्ष में हवा बनाने के लिए।

दरअसल नीतीश ने कर्नाटक के चुनावी नतीजे पर प्रतिक्रिया व्यक्त की कि भाजपा को और ज्यादा सीटें लानी चाहिए थीं। अगर नीतीश भाजपा का शुभ चाहते हैं तो भला तेजस्वी उनका अशुभ क्यों न चाहें।