गुरुवार (19 जनवरी) से जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल का दसवां आयोजन शुरू हो गया है। राजस्थान की राजधानी जयपुर में पांच दिनों (19 जनवरी- 23 जनवरी) तक चलने वाला ये साहित्य समारोह दिग्गी पैलेस होटल में आयोजित किया जाता है। जेएलएफ नाम से मशहूर ये समारोह आम तौर पर इसमें शामिल होने वाले देश-विदेश के कला-साहित्य-जनसंचार इत्यादि क्षेत्रों के दिग्गज हस्तियों की भागीदारी के लिए चर्चा में रहता है लेकिन कई बार ये अन्य कारणों से भी विवादो में भी घिरता रहा है। इस बार समारोह शुरू होने से पहले ही इस पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) और नरेंद्र मोदी सरकार की “गहरी छाया” दिखने को लेकर विवाद होने लगा। आइए देखते हैं कि पांच दिनों के इस समारोह में आरएसएस या मोदी सरकार से सीधे तौर पर जुड़े हुए कौन से पांच प्रमुख चेहरे शामिल हो रहे हैं।

1- मनमोहन वैद्य, आरएसएस-  मनमोहन वैद्य राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख हैं। उन्हें संगठन के शीर्ष नेताओं में शुमार किया जाता है। अक्टूबर 2014 ने वैद्य ने कह दिया था कि भारत में कोई अल्पसंख्यक नहीं है, सभी हिन्दू हैं जिस पर काफी विवाद हुआ था। वैद्य न्यूक्लियर केमिस्ट्री में पीएचडी हैं। वो 1983 में संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए थे। वैद्य आरएसएस की अमेरिका और वेस्टइंडीज में गतिविधियों के भी प्रमुख रह चुके हैं।

2- दत्तात्रेय होसबोले, आरएसएस- दत्तात्रेय होसबोले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सह-सरकार्यवाह (संयुक्त महासचिव) हैं। होसबाले अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। होसबोले आरएसएस की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के संगठन सचिव भी रह चुके हैं। पिछले साल होसबोले ने यह कहकर विवाद पैदा कर दिया था कि आरएसएस समलैंगिकता को अपराध नहीं मानती। उनका ये बयान बीजेपी और आरएसएस के तमाम नेताओं के बयान के उलट था जिनमें समलैंगिकता को बीमारी बताया जाता रहा है।

3- अमिताभ कांत, सीईओ, नीति आयोग- वरिष्ठ नौकरशाह योजना आयोग की जगह लेने वाले नीति आयोग का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) हैं। नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए “अच्छे दिनों” के वादे की रूपरेखा बनाने का जिम्मा नीति आयोग के पास ही है। ऐसे में अमिताभ कांत को नरेंद्र मोदी सरकार के अहम लोगों में माना जा सकता है। कांत नीति आयोग के सीईओ बनने से पहले भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन के सचिव रह चुके हैं। इस विभाग के पास ही मोदी सरकार की दो महत्वाकांक्षी योजनाओं “मेक इन इंडिया” और “स्टार्ट अप इंडिया” के लिए निवेश जुटाने के लिए कैंपेन करने का जिम्मा था।

4- बिबेक देबरॉय, सदस्य नीति आयोग- नीति आयोग के सदस्य अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के प्रमुख निर्धारकों में गिने जाते हैं। देबरॉय लंबे समय से शिक्षण से जुडे़ रहे हैं। कई किताबों के लेखक देबरॉय देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। देबरॉय को संस्कृत शिक्षण के अहम पैरोकारों में भी गिना जाता है।

5- स्वप्न दासगुप्ता, राज्य सभा सांसद- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक अपना मीडिया सलाहकार नहीं घोषित किया है लेकिन जिन पत्रकारों को उनका सबसे करीबी माना जाता है उनमें एक हैं स्वप्न दासगुप्ता। दासगुप्ता मीडिया में बीजेपी और नरेंद्र मोदी सरकार का पत्र रखने वाले प्रमुख चेहरा हैं। देश के कई प्रमुख अखबारों और पत्रिकाओं में काम कर चुके दासगुप्ता को बीजेपी ने अप्रैल 2016 में राज्य सभा भेजा। उन्हें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मनोनित किया। साल 2015 में मोदी सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया।

गौरतबल है कि जेएलएफ 2017 में कई ऐसे लेखकों और बुद्धिजीवियो नहीं शामिल हो रहे हैं जो “अवार्ड वापसी” अभियान से जुड़े रहे थे। ऐसे लेखकों में साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाकर अवार्ड वापसी का आगाज करने वाले हिन्दी कथाकार उदय प्रकाश, हिन्दी कवि अशोक वाजपेयी, मलयाली साहित्यकार के सच्चितानंदन, अंग्रेजी लेखिका नयनतारा सहगल और आशीष नंदी के नाम शामिल हैं।