दुनिया के सबसे बड़े कोरल रीफ- ग्रेट बैरियर रीफ की सुरक्षा के लिए आस्ट्रेलिया की सरकार ने एक अरब डालर की योजना की घोषणा की है। रीफ की सुरक्षा के लिए यह अब तक का सबसे बड़ा निवेश है, जिसका ऐलान प्रधानमंत्री स्काट मारिसन ने हाल में क्वींसलैंड केयर्न्स शहर में किया था। इस योजना में ऐसी तकनीक और जल प्रबंधन व्यवस्था के विकास पर ध्यान दिया जाएगा, जो रीफ की सुरक्षा के लिए जरूरी हैं।

नई योजना में ज्यादातर निवेश जल प्रदूषण को कम करने और जल प्रबंधन बेहतर बनाने में किया जाएगा। आस्ट्रेलिया और विश्व स्तर पर पर्यावरण व रीफ संरक्षण के लिए काम करने वाली कई संस्थाओं ने संघीय सरकार की इस योजना का स्वागत किया है। ‘वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड’ – आस्ट्रेलिया के महासागर प्रमुख रिचर्ड लेक ने कहा, रीफ के लिए धन की उपलब्धता लगभग मौजूदा स्तर पर बनी रहेगी।

रीफ की सुरक्षा के लिए जल प्रदूषण को कम करने में सरकार अपने लक्ष्य से चूक गई है। इसलिए यह जरूरी है कि यह निवेश इस तरह से लागू हो कि पानी की गुणवत्ता को सुधारे। साथ ही जल प्रदूषण के खिलाफ ज्यादा सख्त कानून और उनके पालन में सख्ती की भी जरूरत है। आस्ट्रेलिया के समुद्र संरक्षण संस्थान ने मारिसन सरकार की घोषणा का स्वागत किया है। संस्था के जल गुणवत्ता विशेषज्ञ जेमी वेबस्टर के मुताबिक, जल प्रदूषण से निपटने के लिए निवेश बढ़ाना रीफ को मौसम परिवर्तन से लड़ने में सक्षम बनाने के लिए जरूरी है।

जिस तरह के संकट से रीफ इस वक्त जूझ रही है, और जल प्रदूषण को कम करने में जिस तरह की धीमी प्रगति हुई है, यह जरूरी हो गया है कि अगले तीन साल में जल प्रबंधन में निवेश को तेजी से इस्तेमाल किया जाए। दूसरी ओर, कई विशेषज्ञ इस योजना को नाकाफी मानते हैं और सरकार के ऐलान से खुश नहीं हैं। क्वींसलैंड स्थित जेम्स कुक यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर जोडी रमर का कहना है कि मौसम परिवर्तन का जिक्र किए बिना यह घोषणा कोई खास नहीं लगती। हमें अपने संसाधन और धन 2035 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने की ओर व हमारे उत्सर्जन को इस दशक में 75 फीसद तक कम करने की ओर खर्च करना चाहिए। उनके मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग में 1-1.2 डिग्री की बढ़ोतरी होने से पांच साल में 30 लाख ग्रीष्म-लहरें आईं और दुनियाभर के रीफ में 98 फीसद क्षरण हुआ।

दरअसल, आस्ट्रेलिया के पर्यावरण परिवर्तन को लेकर वहां की सरकार के रुख की लगातार आलोचना होती रही है। स्थानीय राजनेता और कार्यकर्ता ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणविद भी कहते रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने में आस्ट्रेलिया को जितना योगदान करना चाहिए, उतना वह नहीं कर रहा है। देश के मौसम विभाग के अनुसार, वर्ष 1910 में आंकड़े जमा किए जाने के वक्त से अब तक आस्ट्रेलिया के तापमान में 1.44 (+- 0.24 ) डिग्री की वृद्धि हो चुकी है और देश में अत्याधिक गर्मी पड़ने की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं।

विभाग कहता है कि 1970 से अब तक देश के दक्षिण पश्चिमी हिस्से में अप्रैल से अक्तूबर के बीच होने वाली बारिश में 16 फीसद की कमी हो चुकी है, जबकि मई-जुलाई की बारिश 20 फीसद तक घट चुकी है। वर्ष 1950 से अब तक आस्ट्रेलिया में आग लगने की घटनाएं, अत्याधिक गर्मी पड़ने की घटनाएं और आग लगने के खतरे वाले मौसम की समयावधि में भी वृद्धि दर्ज की गई है। 1982 से अब तक चक्रवातीय तूफानों की संख्या घटी है, लेकिन 1910 से अब तक के आंकड़े दिखाते हैं कि देश के आसपास के महासागरों का तापमान एक डिग्री तक बढ़ चुका है और उनका अम्लीयकण भी बढ़ा है, जिससे समुद्री हीटवेव में वृद्धि हुई है।