आखिरकार सोमवार की दोपहर, जासूसी तथा आतंकवाद के आरोप में पाकिस्तान में कैद कुलभूषण जाधव को उनकी मां और पत्नी से मिलने दिया गया। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय में आयोजित यह मुलाकात कोई चालीस मिनट की रही। पाकिस्तान ने मानवीय आधार पर इस मुलाकात की इजाजत दी थी। लेकिन इसके लिए भारत को बार-बार आग्रह करना पड़ा था। फिर, मुलाकात हुई तो बीच में शीशे की दीवार थी। उन्हें इंटरकॉम के जरिए बातचीत करनी पड़ी। मिलने के लिए ले जाए जाने से पहले जाधव की मां और पत्नी की कड़ी सुरक्षा-जांच हुई थी। मुलाकात के स्थान से लेकर विदेश मंत्रालय की इमारत और बाहर की सड़कों तक, कदम-कदम पर कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था और बेहद सख्त निगरानी थी। तब, शीशे का परदा क्यों? वे इस परदे के बिना क्यों नहीं मिल सकते थे? मानवीय आधार में मानवीयता की यह कसर क्यों? जाधव की मां और पत्नी के साथ पाकिस्तान में भारत के उपउच्चायुक्त जेपी सिंह भी थे। मौके पर उनके मौजूद रहने की इजाजत और उनकी मौजूदगी का हवाला देते हुए पाकिस्तान ने कहा है कि उसने कुलभूषण जाधव को ‘राजनयिक पहुंच’ मुहैया कराने का अपना आश्वासन पूरा कर दिया है। क्या इसे ही राजनयिक पहुंच कहेंगे, जिसकी मांग भारत ने बार-बार की थी, और पाकिस्तान ने हर बार मना कर दिया था?
हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत में सुनवाई से पहले, पाकिस्तान ने जाधव को राजनयिक पहुंच मुहैया कराने की भारत की मांग एक बार भी नहीं मानी थी, और जो चीजें अंतरराष्ट्रीय अदालत में पाकिस्तान के खिलाफ गर्इं उनमें एक यह बात भी थी। बहरहाल, पाकिस्तान ने इस मुलाकात को अपनी तरफ से दिखाए गए सौहार्द का संकेत भी कहा है। तो क्या इस मुलाकात का मतलब यह भी है कि भारत और पाकिस्तान के बीच समग्र वार्ता जैसी बातचीत फिर से शुरू हो सकती है? इसमें दो राय नहीं कि दुनिया भारत और पाकिस्तान को बातचीत की मेज पर देखना चाहती है। लेकिन यह आसान नहीं है। शुरुआत हो भी जाए, तो उसे जारी रख पाना और कठिन है। दरअसल, वार्ता का दौर शुरू होने पर, या शुरू होने के पहले ही, पाकिस्तान कश्मीर मसले को ले आता है, और फिर वहीं से बातचीत के पटरी से उतर जाने का अंदेशा पैदा हो जाता है। जब तक आपसी व्यापार और नगारिकों के स्तर पर संपर्क की सहूलियतों पर बातचीत होती है, प्रगति दिखती है। यह कई बार का अनुभव है।
लेकिन पाकिस्तान की फौज को यह रास नहीं आता कि कश्मीर मसले को छोड़, दूसरे मुद््दों को अहमियत दी जाए। और भारत से जुड़े मामलों में पाकिस्तान की फौज की राय की अनदेखी कर पाना वहां की सरकार के लिए संभव नहीं होता। फिर, आतंकवादी गुट हैं जो दोनों देशों के बीच वार्ता शुरू होते ही, या उसकी संभावना दिखते ही, भारत के खिलाफ कोई न कोई वारदात कर बैठते हैं, और इसके बाद बातचीत टूट जाती है या गतिरोध आ जाता है। पिछले दिनों पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने कहा कि अगर दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू होती है तो वे इसका स्वागत करेंगे। पर दोनों तरफ की घरेलू राजनीति में ऐसे काफी लोग हैं जो बातचीत न होने देने या हो तो उसके खिलाफ माहौल बनाने में सक्रिय हो जाते हैं। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में यह जटिलता न होती, तो कुलभूषण जाधव से उनकी मां और पत्नी की मुलाकात शायद और पहले ही हो जाती।