संजीव पांडेय

जर्मनी के संघीय चुनाव में धुर वामपंथी और धुर दक्षिणपंथी दलों को जनता ने नकार दिया है। यह चुनाव संकेत दे रहा है कि भविष्य में यूरोप अति दक्षिणपंथ और अति वामपंथ को स्वीकार नहीं करेगा। लेकिन समाजवादी लोकतंत्र उसे पसंद होगा।

जर्मनी में संघीय चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। विश्व की एक शक्तिशाली महिला नेता एंजेला मर्केल की पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन आॅफ जर्मनी अपने मुख्य विरोधी द सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी से पिछड़ गई है। हालांकि चुनाव नतीजे संकेत तो यही दे रहे हैं कि जर्मनी में अगली सरकार में गठन में दोनों प्रमुख दलों को तीसरे और चौथे स्थान पर रही ग्रीन पार्टी और फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी का सहयोग लेना पड़ेगा। नई सरकार के गठन में अभी समय लग सकता है। ऐसे में जर्मनी को नया चांसलर क्रिसमस के आसपास ही मिल पाएगा।

क्रिश्चियन डेमोक्रेटक यूनियन के आर्मिन लाशेट और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के ओलाफ स्कोल्ज चांसलर पद पर दावेदारी कर रहे हैं। लेकिन सत्ता की चाभी जर्मन संसद में एक सौ अठारह सीटें पाने वाली ग्रीन पार्टी और बानवे सीटें पाने वाली फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी के हाथों में ही है। ग्रीन पार्टी और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी 1998 से 2005 तक गठबंधन में रह चुकी हैं। वैसे में एक बार फिर इनका गठबंधन हो सकता है। हालांकि दोनों दलों के बीच जलवायु परिवर्तन और आर्थिक मुद्दों सहित कई मसलों पर वैचारिक मतभेद कायम हैं, इसलिए इन्हें गठबंधन में लाने में थोड़ी मुश्किलें आ सकती हैं।

फिलहाल स्थिति यह है कि द सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी भी सरकार बनाने की कोशिशों में जुटी है। वहीं मर्केल की पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन भी आसानी से हार नहीं मानने वाली, क्योंकि मतों के प्रतिशत के हिसाब से दोनों ही दल करीब हैं। सोशल डेमोक्रेट को पच्चीस फीसद के करीब मत पड़े, तो क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन को चौबीस फीसद। सोशल डेमोक्रेट को दो सौ छह सीटें मिली हैं, तो क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन को एक सौ छियानवे। इसलिए सरकार के गठन में ग्रीन पार्टी और फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो गई है। ग्रीन पार्टी को पंद्रह फीसद वोट और एक सौ अठारह सीटें मिली हैं, जबकि फ्री डेमोक्रटिक पार्टी को ग्यारह फीसद वोट और बानवे सीटें मिली हैं।

जर्मनी के संघीय चुनाव में धुर वामपंथी और धुर दक्षिणपंथी दलों को जनता ने नकार दिया है। यह चुनाव संकेत दे रहा है कि भविष्य में यूरोप अति दक्षिणपंथ और अति वामपंथ को स्वीकार नहीं करेगा। लेकिन समाजवादी लोकतंत्र उसे पसंद होगा। हालांकि यूरोप को चीन और रूस मॉडल वाला वामपंथ पसंद नहीं है, लेकिन वह लोकतांत्रिक समाजवाद का पक्षधर है। दिलचस्प बात यह है कि सोशल डेमोक्रेट वामपंथी विचारों से प्रभावित हैं और कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों को मानते हैं। जर्मनी के लोकतंत्र में समाजवादी लोकतांत्रिक समूह लंबे समय से मजबूत स्थिति में रहे हैं। हिटलर से पहले भी जर्मनी में सोशल डेमोक्रेट प्रभावी थे।

जर्मनी में पिछले चार चुनावों में क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी। इस पार्टी ने वहां महागठबंधन बना कर शासन किया। क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन की नेता और जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल एक मजबूत वैश्विक नेता के रूप में उभरीं। उनकी खूबी यह रही कि कुछ मुद्दों पर अमेरिका जैसे देशों से भी टकराव लेने में भी जरा नहीं हिचकीं। जर्मनी को अमेरिकी प्रभाव से निकाल कर जर्मन हितों को सर्वोपरि रखा। जर्मनी विदेश नीति अमेरिकी दबाव में नहीं आई। रूस जैसे देश को लेकर भी जर्मनी स्वतंत्र फैसला लेता रहा। इसलिए अमेरिकी प्रशासन के सामने अब बड़ी समस्या यही आएगी कि अगर जर्मनी में सोशल डेमोक्रेट सरकार बनाएंगे तो वे भी अमेरिकी दबाव में नहीं आएंगे।

मर्केल के कार्यकाल का जायजा लें तो साफ नजर आता है कि सारे दलों ने मिल कर जर्मनी को मजबूत करने का काम किया। मर्केल ने गठबंधन बनाया और जर्मनी की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया। जर्मनी की अर्थव्यवस्था ने मर्केल के कार्यकाल में ब्रिटेन, फ्रांस और इटली से बेहतर प्रदर्शन किया। जर्मनी का निर्यात सिर्फ चीन और अमेरिका से पीछे रहा। मर्केल के कार्यकाल में बेरोजगारी पर काबू पाया गया और पचास लाख अतिरिक्त रोजगार उपलब्ध करवाया गया। दरअसल, पिछले कुछ सालों में मर्केल की विदेश नीति ने जर्मनी को अमेरिकी प्रभाव से मुक्त रखने में कामयाब रही है। अगर जर्मनी में सोशल डेमोक्रेट सरकार बनाते हैं तो जर्मन विदेश नीति पूरी तरह से अमेरिकी प्रभाव से मुक्त होगी। यूरोपीय संघ की राजनीति पर भी इसका असर पड़ना तय है। वैसे भी यूरोप में सोशल डेमोक्रेट का प्रभाव बढ़ रहा है।

इसने दुनिया भर में दक्षिणपंथियों की चिंता बढ़ा दी है। यूरोप में भी सक्रिय दक्षिणपंथी सोशल डेमोक्रेट के बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं। जर्मनी में सोशल डेमोक्रट की सरकार अगर बनेगी तो दक्षिणपंथियों की चिंता भी बढ़ेगी। फिर, मर्केल ने अमेरिका की इच्छा के खिलाफ जाकर रूस और जर्मनी के बीच गैस पाइप लाइन नार्ड स्ट्रीम-2 का निर्माण कार्य पूरा करवाया। अमेरिका ने इस गैस पाइप लाइन का जोरदार विरोध किया। लेकिन जर्मनी अमेरिकी दबाव में नहीं आया। रूस के साथ जर्मनी ने अपने हितों को देखते हुए अपनी कूटनीति तय की थी। नार्ड स्ट्रीम 2 को अमेरिका ने रूसी विस्तारवाद बताया था। जबकि जर्मनी ने इसका जवाब देते हुए कहा कि यह विशुद्ध रूप से व्यावसायिक योजना है।

बाल्टिक सागर के रास्ते रूस से जर्मनी तक पहुंचने वाली यह पाइप लाइन यूरोप को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करेगी। नार्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइप लाइन उन एशियाई मुल्कों के लिए सीख है जो आपस में भाईचारा बनाने और आपसी सहयोग बनाने में विफल रहे हैं। ये मुल्क पिछले चालीस सालों में एक गैस पाइप लाइन तक नहीं बना पाए। इसका उदाहरण प्रस्तावित ईरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइप लाइन और तुकेर्मेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइप लाइन है जो कभी अमेरिकी दबाव में तो कभी आपसी तनाव के कारण अधर में लटकती रह गईं।

मर्केल के कार्यकाल में जर्मनी वैश्विक पटल पर काफी मजबूत होकर उभरा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आने वाले समय में यह देश वैश्विक राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। जर्मनी में सोशल डेमोक्रेट और ग्रीन पार्टी का मजबूत होना दुनिया के लिए बड़ा संदेश है। इससे यूरोप की राजनीति भी अछूती नहीं रहने वाली। क्योंकि यूरोपीय संघ में भी सोशल डेमोक्रेट से वैचारिक साम्यता रखने वाले समूह और पार्टियां अच्छी स्थिति में हैं। इस समय विश्व में दक्षिणपंथ उभार पर है। मानवाधिकारों का उल्लंघन एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आया है। फिर, वैश्विक पटल पर लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण भी गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। कारपोरेट प्रभावित लोकतंत्र ने चिंताएं बढ़ा दी हैं।

इसके साथ ही सीरिया और अफगानिस्तान सहित कई देशों हिंसा और गृहयुद्ध के हालात विश्व में शरणार्थियों की समस्या भी बढाई है। शरणार्थियों को लेकर मर्केल ने हमेशा उदारवादी नीति अपनाई। हालांकि यूरोप में सक्रिय दक्षिणपंथी गुट इसका जोरदार विरोध करते रहे। लेकिन जर्मनी ने मानवीय आधार पर सबके लिए दरवाजे खुले रखे। ऐसे में जर्मनी में सोशल डेमोक्रेट भी सत्ता में आते हैं तो वे भी शरणार्थियों के प्रति मर्केल की तरह ही उदारवादी रवैया अपनाएंगे।

जर्मनी में सोशल डेमोक्रेट का मजबूत होना यह भी संकेत देता है कि बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर यूरोप में संवेदनशीलता बढ़ रही है। हालांकि मर्केल ने बेरोजगारी से निपटने की दिशा में अच्छा काम किया। लेकिन बावजूद इसके बेरोजगार युवाओं की पसंद सोशल डेमोक्रेट रहे हैं। वहीं जलवायु परिवर्तन जैसा मुद्दा भी जर्मनी में छाया रहा। हाल ही में जर्मनी में बाढ़ आई थी। ग्रीन पार्टी को पंद्रह फीसद वोट मिलना संकेत देता है कि जर्मन नागरिक जलवायु परिवर्तन को भी गंभीरता से ले रहे हैं। यूरोप की प्रमुख अर्थव्यवस्था जर्मनी में सोशल डेमोक्रेट का मजबूत होना उन दक्षिण एशियाई देशो के लिए आंख खोलने वाला है, जहां कट्टरपंथी विचारधारा और घोर पूंजीवादी व्यवस्था मजबूत हो रही है।