राजधानी दिल्ली के गाजीपुर इलाके में वर्षों से मौजूद कचरे का पहाड़ सोमवार को फिर धधक उठा। चौबीस घंटे बाद भी आग नहीं बुझाई जा सकी। इसकी लपटों की गर्मी और धुएं का गुबार सरकार तक भले न पहुंचा हो, पर आसपास के कई किलोमीटर के दायरे में लोगों का दम जरूर घुट रहा है। वैसे यह घटना कोई पहली बार नहीं हुई। हर साल यहां आग लगती रहती है। तीन-चार दिन तक लपटें उठती हैं और जहरीला धुआं आसमान में छाया रहता है।
सोमवार को इस घटना के बाद दमकल विभाग ने बताया कि इस साल यानी 2022 में अब तक कचरे के पहाड़ों पर आग लगने की कुल चार घटनाएं हुर्इं, जबकि पिछले साल इसी अवधि में आग लगने की सोलह घटनाएं हुर्इं थीं। साल 2020 में पंद्रह और 2019 में ऐसी सैंतीस घटनाएं हुर्इं। लेकिन यह सवाल सालों से बना हुआ है कि हर साल ऐसी घटनाओं के बावजूद इसे रोकने के लिए सरकार आखिर कर क्या रही है? अगर राजधानी दिल्ली में कचरे के पहाड़ इसी तरह जलते रहे, तो दिल्ली को दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी का तमगा मिलता ही रहेगा।
सवाल सिर्फ कचरे के पहाड़ में आग तक ही सीमित नहीं है। प्रशासन की निगाह में तो आग लगी और उस पर जल्द काबू पा लिया गया। अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज कर ली गई। पर जो लाखों लोग इस आग के धुएं की चपेट में आ गए, उनके बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा! सोमवार को कचरे के इस पहाड़ में लगी आग का धुआं कई किलोमीटर तक फैल गया। आसपास के रिहाइशी इलाकों के लोगों ने तो दम फूलने की शिकायत भी की।
इस पहाड़ के सामने ही बड़ा रिहाइशी इलाका है, जो पूरी तरह धुएं में ढंक गया। नोएडा और गाजियाबाद तक के इलाकों में हवा खराब हुई। सवाल है कि इस धुएं की मार से जिन लोगों की हालत बिगड़ी होगी, उसके लिए दोषी किसको ठहराया जाए? वैसे भी सामान्य दिनों में इस पहाड़ से जितनी बदबू उठती है, उसका आसपास के इलाकों में घातक प्रभाव पड़ रहा है। अगर यहां रहने वालों की स्वास्थ्य जांच करवाई जाए तो निश्चित ही लोग सांस और फेफड़ों की गंभीर बीमारियों से ग्रस्त निकलेंगे।
गौरतलब है कि कचरे के ये पहाड़ कोई दो-चार साल की देन नहीं है, बल्कि तीन-चार दशक पुराने हैं। लेकिन हैरत की बात यह है कि अब जब यहां बड़े रिहाइशी इलाके बस गए हैं, उसके बावजूद इन्हें हटाने के लिए कोई बड़े प्रयास होते दिख नहीं रहे। गाजीपुर के इस पहाड़ में करीब पांच साल पहले जब बड़ा हादसा हुआ था, तब लगा था कि सरकार की नींद टूटी है। उसके बाद कुछ समय तक नगर निगम, दिल्ली के उपराज्यपाल से लेकर सरकार तक ने सक्रियता दिखाने का दावा भी किया। पर हुआ क्या? आज भी कचरे का यह पहाड़ बना हुआ है, आग भी लग रही है और जहरीले धुएं के बीच लोग रहने को मजबूर हैं।
इससे भी ज्यादा दुखद यह कि कचरे के पहाड़ों को खत्म करने का काम राजनीति में उलझा पड़ा है। सरकार नगर निगम पर ठीकरे फोड़ती है, तो निगमों की दशा किसी से छिपी नहीं है। यह हाल तब है जब कचरे के इन पहाड़ों को हटाने के लिए देश की शीर्ष अदालत तक सुनवाई कर चुकी है। ऐसे पहाड़ों का बना रहना बताता है कि कचरा प्रबंधन के मामले में प्रशासनिक तंत्र न सिर्फ विफल साबित हुआ है, बल्कि लोगों को जहरीली गैसों के बीच मरने को छोड़ दिया है। क्या एक कचरे का पहाड़ हटाने में इतना लंबा वक्त लगना चाहिए?