पड़ोसी देश श्रीलंका में जो कुछ भी घटित हो रहा है, वह चिंताजनक है। प्रधानमंत्री पद से महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे के बाद देश में भयानक हिंसा और आगजनी की घटनाएं लोगों के गुस्से का नतीजा हैं। गुस्साए लोगों ने हंबनटोटा में महिंदा राजपक्षे का पुश्तैनी घर तो फूंक ही डाला, दूसरे राजनेताओं को भी निशाना बनाया। एक सांसद को उसकी कार सहित नदी में फेंक दिया।

ये सारी घटनाएं हिला देने वाली तो हैं, पर इन्हें लेकर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। श्रीलंका जिस रास्ते पर जा रहा है, उसमें यह सब होना ही था। दो-तीन महीने से देश जिस आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है, उससे यह लग ही रहा था कि एक न एक दिन लोग सड़कों पर उतरेंगे और राजनेताओं को भी नहीं बख्शेंगे। जिस तरह के हालात हैं, उनमें इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले दिनों में ऐसा और नहीं होगा। इसलिए आने वाला वक्त इस मुल्क के लिए और मुश्किलों भरा होगा। इस हकीकत से भी कैसे मुंह फेरा जा सकता है कि श्रीलंका आज हिंसा की जिस आग में जल रहा है, वह सरकार की ही लगाई हुई है।

श्रीलंका में इस वक्त आपातकाल लगा है। देशव्यापी कर्फ्यू भी लागू है। सेना और सुरक्षा बलों ने मोर्चा संभाल रखा है। इसके बावजूद अगर लोग सड़कों पर उतरे हुए हैं। यह गुस्सा बता रहा है कि लोग अब किसी भी कीमत पर राजपक्षे सरकार को सत्ता में नहीं देखना चाहते। जनता की यह लड़ाई अब सरकार बनाम विपक्ष की नहीं रह गई है, बल्कि यह लड़ाई उस राजपक्षे खानदान के खिलाफ है जिसने श्रीलंका को इस बदतर हालात में पहुंचा दिया है। राजपक्षे कुनबा वर्षों से सत्ता पर काबिज है। महिंदा राजपक्षे पहले राष्ट्रपति थे, फिर प्रधानमंत्री बन गए।

राष्ट्रपति गोटाबाया उनके छोटे भाई हैं। पहले वे रक्षा मामलों के प्रमुख हुआ करते थे। महिंदा राजपक्षे का बेटा नमाल राजपक्षे और एक भाई बासिल सरकार में मंत्री थे। इसका ही नतीजा था कि लोकतंत्र की आड़ में सत्ता पर यह कुनबा हावी हो गया और ऐसे मनमाने फैसले करता रहा जो देश के लिए काल साबित हुए। श्रीलंका आज जिस तरह चीन के कर्ज बोझ तले दब गया है, वह राजपक्षे सरकार की ही देन है।

सवाल है कि श्रीलंका मौजूदा हालात से बाहर कैसे आए? एक बात तो साफ है कि जब तक वहां राजनीतिक स्थिरता नहीं आती, तब तक अशांति का दौर बना रहेगा। इसलिए राष्ट्रपति को अब विपक्ष को साथ लेकर चलना ही होगा। राजनीतिक और आर्थिक संकट के कारण देश गंभीर समस्याओं से घिर गया है। देश का खजाना तो लगभग खाली ही है। ऐसे में कोई भी सरकार कर्ज चुकाने की तो सोच भी नहीं सकती। आम आदमी महंगाई से त्रस्त है।

लोगों के पास पैसा है नहीं। वे कहां से खाने-पीने का सामान और दवाइयां आदि खरीदेंगे? जिस तरह के हालात हैं, उनमें देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में लंबा वक्त लगेगा। श्रीलंका अब जिस गर्त में चला गया है, उसमें यही चारा रह जाता है कि वैश्विक समुदाय और वित्तीय संस्थान उसकी मदद के लिए दरवाजे खोलें और लोगों को भुखमरी से बचाएं, ताकि गंभीर मानवीय संकट खड़ा न हो।

हर तरह से मदद देकर भारत तो अपनी दरियादिली दिखा ही रहा है। एक परिवार की सत्ता लोलुपता, सरकार का आर्थिक कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार, देश पर भारी कर्ज, सत्ता पर पकड़ बनाने के लिए लोगों को बांटने, राष्ट्रवाद के नाम पर उनमें जहर भरने जैसे हथकंडे देश को किस तरह रसातल में पहुंचा देते हैं, श्रीलंका इसकी मिसाल है।