मनोज मिश्र

दिल्ली में तीसरे नंबर की पार्टी बनने का खतरा झेलने वाली कांग्रेस के नेता शनिवार को मतदान के दौरान भाजपा और आम आदमी पार्टी (आप) की तरह जीत के बढ़चढ़ के दावे करते नहीं दिखे। करीब 14 महीने के भीतर हुए दिल्ली विधानसभा के 70 सीटों के लिए मध्यावधि चुनाव में मतदान औसत रहा। दिल्ली की परंपरा के हिसाब से मतदान के दिन आरोप-प्रत्यारोप तो लगे लेकिन कोई बड़ी घटना नहीं हुई। मतदान के पहले मीडिया में आए विभिन्न सर्वेक्षणों की तरह भाजपा और आप के नेता और कार्यकर्ता हर इलाके में सक्रिय दिखे। लगातार 15 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस के बस्ते तक अनेक इलाके से दोपहर बाद गायब दिखे। वैसे अपने बूते चुनाव लड़ रहे कई कांग्रेस उम्मीदवार आज भी अपने इलाके में सक्रिय दिखे। चुनाव नतीजे 10 फरवरी को आएंगे। लेकिन चुनावी सर्वेक्षणों की तरह पिछले चुनाव से हट कर लोकसभा चुनाव की तरह भाजपा और आम में ही होता दिखा।

दिल्ली की राजनीति के मिजाज को भांपकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नतीजों को जनता पर छोड़ दिया। प्रचार में आधुनिक तंत्रों के प्रयोग बढ़ने से चुनाव लड़ने वालों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। इसलिए एक भाजपा उम्मीदवार की गाड़ी से शराब मिलने की खबर या भाजपा के दो उम्मीदवारों की गाड़ी पर हमले की खबर मिनट भर में दिल्ली में फैल गई। पुलिस की चौकसी और बाकी मतदान पर असर पड़ने के खतरे से इन मामलों को तूल देने से राजनीतिक दलों के नेता बचे। पूरे दिन आप के मुख्यमंत्री पद के दावेदार अरविंद केजरीवाल और भाजपा की मुख्यमंत्री पद की दावेदार किरण बेदी बार-बार मीडिया से बात कर अपने विरोधियों पर तरह-तरह के आरोप लगाते रहे।

केजरीवाल ने जहां विरोधियों पर शराब और पैसा बांटने से लेकर झूठे वायदे करने बालों को वोट न देने की अपील की। पहले ईवीएम में छेड़छाड़ की आशंका जताने के बाद मतदान वाले दिन उन्होंने कई इलाकों में उसके धीमे होने की शिकायत की। वहीं किरण बेदी ने आप पर पैसा बांटने और लोगों को धमकाने का आरोप लगाया। कांग्रेस के दिल्ली में रहने वाले हर नेता घर से तो निकले लेकिन उनमें जीतने का उत्साह नहीं दिख रहा था। इसी का परिणाम माना जा रहा है कि कांग्रेस के कई जीतने वाले उम्मीदवारों का भी मतदान के दिन हौसला पस्त दिखा।

विधानसभा के मध्यावधि चुनाव की घोषणा 12 जनवरी को हुई और अधिसूचना 14 जनवरी को जारी हुई। 22 जनवरी तक नामांकन पत्र भरा गया और 24 जनवरी तक नाम वापसी हुई। चुनाव प्रचार के लिए गिनती के दिन मिले। बावजूद इसके चुनाव में धन का प्रयोग भरपूर हुआ। आप में तो सबसे ज्यादा सभा अरविंद केजरीवाल की हुई और उनका ही असर सबसे ज्यादा दिखा। केजरीवाल ने अपने बूते चुनाव को आप बनाम अन्य बना दिया। हालात ऐसे बने कि गैर कांग्रेस और गैर भाजपा दलों के दिल्ली भर में बस्ते ही गलती से दिखे।

बसपा जैसी पार्टी जो दिल्ली में 2008 के चुनाव तक तीसरी पार्टी बनने की दौड़ में थी इस चुनाव में उसके उम्मीदवार ज्यादातर सीटों पर गायब ही दिखे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सभा के अलावा राहुल गांधी का रोड शो हुआ। विभिन्न सर्वेक्षणों में कांग्रेस का जो खराब हाल दिखाया गया, उसके विपरीत कांग्रेस की बड़ी सभाओं में भारी भीड़ दिखी। मतदान के बाद अब यही लग रहा है कि वास्तव में कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने दिल्ली में कांग्रेस को अपने हाल पर छोड़ दिया, अन्यथा हालात कुछ और होते।

2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 33 फीसद से ज्यादा वोट लाकर नंबर एक पार्टी बनी। उसे 32 सीटें मिलीं। अगर उसे दो-तीन फीसद वोट और मिल जाते तो उसे 70 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत मिल जाता। उस चुनाव में आप को 29.50 फीसद वोट और 28 सीटें और कांग्रेस को 24.50 फीसद वोट और आठ सीटें मिली थीं।

शुरू से ही भाजपा तिकोने मुकाबले के भरोसे बैठी थी। लेकिन हड़बड़ाहट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली ही सभा में आप पर हमला बोल कर चुनाव को भाजपा बनाम आप बना दिया। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री की पांच सभा के अलावा भाजपा अध्यक्ष, केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की अनेक सभाएं दिल्ली के हर इलाके में हुईं। दिल्ली में रहने वाले विभिन्न राज्यों के लोगों को प्रभावित करने के लिए हर राज्य के नेता दिल्ली में दो महीने से डटे रहे। बावजूद भाजपा के नेता जीत का दावा खम ठोककर नहीं कर रहे हैं।

10 फरवरी को आने वाले चुनाव नतीजों का दिल्ली ही नहीं देश की राजनीति में दूरगामी असर होगा। कांग्रेस को 2013 के विधानसभा चुनाव में मिले 24.50 वोट छह महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में 15 फीसद तक हो गया था। अगर इस बार उसमें और कमी आई तो सालों कांग्रेस खड़ी नहीं हो पाएगी। उसी तरह देश में जीत का डंका बजाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी भाजपा अगर बहुमत नहीं ला पाई तो उनके लिए और उनकी पार्टी के लिए आने वाला समय कठिन होने वाला है। उसी तरह अपना सब कुछ दिल्ली के चुनाव में लगा चुकि आप अगर जीत नहीं हासिल कर पाती है तो उसके लिए अपने को कायम रख पाना कठिन होगा।