त्रावणकोर के महाराजा स्वाति तिरुनाल को बचपन से ही शास्त्रीय संगीत सीखने का अवसर मिला। उन्होंने हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत सीखा और उसमें करीब चार सौ रचनाओं को लिपिबद्ध किया। उनकी रचनाएं मलयालम, संस्कृत, हिंदुस्तानी, मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में संग्रहित हैं। उनकी रचनाएं पद्मनाभ षट्कम, कुचेला उपाख्यानम, अजामिल जैसे ग्रंथों में प्रकाशित हैं। आज भी शास्त्रीय नृत्य और संगीत के कलाकार उनकी रचनाओं को बहुत प्रेम से पेश करते हैं। शायद, इसी अनुराग की परिणति महाराजा स्वाति तिरुनाल नृत्य उत्सव है। इसकी परिकल्पना मोहिनीअट्टम नृत्यांगना जयप्रभा मेनन ने की।
महाराजा स्वाति तिरुनाल नृत्य उत्सव का आयोजन इंडिया हैबिटाट सेंटर में किया गया। इस समारोह में भरतनाट्यम नृत्य के वरिष्ठ गुरु व कलाकार जस्टिन मैकार्थे ने नृत्य पेश किया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का आगाज महाकवि कालिदास की रचना ‘रघुवंशम’ के काव्यांश से की। इसमें विष्णु के सौंदर्य का वर्णन था। विष्णु जिनके हाथ में पारिजात वृक्ष, कौस्तुभ मणि, कानों में कुंडल सुशोभित हैं और व आदिशेष पर विराजित हैं। इसके अगले अंश में, महाराजा स्वाति तिरुनाल की रचना ‘सुमासायका’ पर आधारित नृत्य उन्होंने पेश किया। वरणम शैली में प्रस्तुत इस नृत्य में कामदेव के पुष्पवाण से आहत नायिका के भावों का वर्णन था। भक्ति शृंगार का सुंदर समावेश था। यह राग कपि और आदि ताल में निबद्ध था। उनके साथ गायन पर सुधा रघुरामन, बांसुरी पर जी रघुरामन, मृदंगम पर एमवी चंद्रशेखर, नटुवंगम पर लोकेश ने संगत किया। समारोह के दूसरे कलाकार जयपुर घराने के नर्तक व गुरु पंडित राजेंद्र गंगानी थे। राजेंद्र गंगानी ने शिव स्तुति से नृत्य आरंभ किया। उन्होंने तीन ताल में उपज से नृत्य आरंभ किया।
पैर के काम के बाद, तिहाई, परण, परमेलु, टुकड़े को नृत्य में पिरोया। सवाल-जवाब और जुगलबंदी उनकी प्रस्तुति में खास रही। मोहिनीअट्टम नृत्यांगना जयप्रभा मेनन ने गणपति स्तुति पेश की। यह स्वाति तिरुनाल की रचना पर आधारित थी। यह राग कावेरी में निबद्ध था। इसमें गणपति को पद्मनाभ की बहन पार्वती के पुत्र और सुब्रम्णय के भाई के रूप में चित्रित किया गया था। उनकी दूसरी प्रस्तुति पद्म थी। यह राग पंतुवराली और मिश्र चापू में थी। इसमें भगवान पद्मनाभ से नायिका अपने प्रेम का निवेदन करती है। वह कहती है कि मेरे स्वामी आप मेरे प्रति उदासीन क्यों हैं? इन भावों का अांगिक व मुखाभिनय के जरिए जयप्रभा ने विवेचित किया।

