कुछ कलाकार अपनी कला की बारीकियों को अपने शिष्य-शिष्याओं को सिखाते हैं। इसके जरिए परंपरा को कायम रखने का भी काम होता है। प्रसिद्ध नृत्यांगना माया राव ने कथक को नया आयाम तो दिया ही था, उन्होंने अपने कई शिष्य-शिष्या भी तैयार किए थे। इससे कथक की विशुद्ध तकनीकी पक्ष का सुंदर हस्तांतरण हुआ। इसकी झलक अर्पिता बनर्जी के कथक नृत्य में देखने को मिली। इंडिया हैबिटाट सेंटर में हुए समारोह में अर्पिता ने कथक नृत्य पेश किया। अर्पिता ने पारंपरिक नृत्य पक्ष को बखूबी संभाला। उन्होंने पुराने गुरुओं की रचनाओं को अपने नृत्य में शामिल किया। उनके नृत्य में स्थिरता, नजाकत, ठहराव के साथ कोमलता का स्पर्श था।

अर्पिता ने शिव वंदना से नृत्य आरंभ किया। रावण रचित शिव तांडव स्त्रोत पर आधारित थी। इसमें शिव के रूप का विवेचन था। इसके अगले अंश में शुद्ध नृत्य प्रस्तुत किया। यह तीन ताल में था। विलंबित लय में थाट में नायिका के खड़े होने के कई अंदाज को अर्पिता ने पेश किया। उपज में लयकारी का अंदाज पैर के काम के जरिए पेश किया। आड़े पंजे, खड़े पैर का काम, और उत्प्लावन ने मन मोह लिया। आमद की पेशकश में रिवायती अंदाज के साथ सरस तरीके से चक्कर और पलटे का प्रयोग नजर आया। वहीं, एक टुकड़े-‘तक थुंगा दिग दा त्रक त्रक धा’ में अंगों व हस्तकों का सुंदर प्रयोग था। एक अन्य रचना ‘तत् तत् थेई दिग धा थेई’ में छह चक्कर के साथ आंखों से नजर को दिखाने का अंदाज दर्शाया। वहीं अगले अंश में मध्य लय में बोल-बांट को पैर के काम में पेश किया। यह अर्पिता ने अपने वतर्मान गुरु मुरली मनोहर से सीखा।

अगली रचना ‘तक धूम घे घेघे त धा’ में चक्कर का प्रयोग दुरुस्त था। परण ‘ता किट धा’ में आठ चक्कर का इस्तेमाल और चक्रदार रचना में ‘तक थुंगा’ में 27 चक्कर, अर्धफेरी, पलटे के साथ बैठ कर सम पर आना सुंदर प्रतीत हुआ। द्रुत लय में तिहाई, परण और उपज की पेशकश शामिल थी। वहीं उपज सोलह से एक मात्रा की तिहाई में हर मात्रा पर सम को खास अंदाज में अर्पिता ने पेश किया। अर्पिता ने द्रुत लय में जुगलबंदी से नृत्य में प्रस्तुत किया। नटवरी कथक में कृष्ण के नागनथैया, गोवर्धनधार, वंशीधर रूपों को दर्शाया। इसके अलावा मयूर की गत को पेश किया।

पंडित बिंदादीन महाराज रचित ठुमरी पर भाव-अभिनय बढ़िया था। ठुमरी के बोल थे-‘कान्हा मैं तोसे हारी रे’। राधा और कृष्ण के भावों को सुघड़, सरल और सहज तरीके से बहुत बारीकियों से दिखाया। उनके अभिनय में सरलता थी। कथक नृत्यांगना अर्पिता ने पंडित शंभू महाराज की शिष्या वंदना सेन से नृत्य सीखा है। उन्होंने कथक की विशुद्ध बारीकियों को गंभीरता से ग्रहण किया है। साथ ही, माया राव के शिष्य मुरली मनोहर से भी सीख रही हैं। आजकल ऐसे युवा कलाकार कम हैं, जो परंपरागत शास्त्रीय नृत्य को अपनाते हैं। उम्मीद है कि अर्पिता अपना यह प्रयास जारी रखेंगी। अर्पिता के साथ इस समारोह में संगत करने वाले कलाकार थे-तबले पर अजय, गायन पर जकी और सितार पर सलीम खां।