प्रदेश के 55 लाख मतदाता 12 नवंबर को वोट करने के लिए तैयार हैं मगर इससे पहले राजनीतिक दलों के वादों की बौछारें मतदाताओं पर डाली जा रही है, लुभावने तरीकों से मतदाताओं के मन को बदलने व अपनी तरफ करने के लिए नेताओं ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया गया है। पहाड़ में यूं तो ठंड पड़ने लगी है। ऊंची चोटियां धीरे-धीरे हिमच्छादित होने लगी हैं मगर सियासी गर्मी इसका अहसास ही नहीं होने दे रही है।

29 अक्तूबर को उम्मीदवारों ने नाम वापस ले लिए तो तस्वीर कुछ साफ होने लगी। मान मनौव्वल के बावजूद भी भाजपा-कांग्रेस के कई बागी अभी मैदान में डटकर अपने ही राजनीतिक दल के होश ठिकाने लगाने में जुट गए हैं। हिमाचल के संदर्भ में अब जो तस्वीर उभरी है, उससे यकीनन यह कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी जो दो प्रांतों दिल्ली पंजाब में दो तिहाई से भी अधिक बहुमत से सरकारें बना चुकी हैं, गुजरात जिसके लक्ष्य पर है, वह हिमाचल में बहुत पीछे चली गई है।

उसने सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, मगर मंडी जिले के द्रंग विधानसभा क्षेत्र से इसकी उम्मीदवार सुनीता देवी ने ऐन मौके पर अपना नामांकन पत्र वापस लेकर हड़कंप मचा दिया। सुनीता देवी भाजपा में शामिल हो गर्इं और उसे द्रंग से आम आदमी पार्टी का खाता बंद करवा दिया है। बाकी 67 विधानसभा क्षेत्रों में जो उम्मीदवार पार्टी ने उतारे हैं, उनमें कोई ऐसा नामचीन चेहरा अभी तक उभरा नहीं है जो भाजपा-कांग्रेस की टक्कर में मुकाबले को तिकोना बना सके।

कांग्रेस ने इस चुनाव में कर्मचारियों के रोष को सबसे बड़ा चुनावी हथियार बनाया है। भले ही महंगाई व बेरोजगारी भी दो बड़े मुद्दें हैं, प्रदेश में पढ़े लिखे पंजीकृत बेरोजगारों की तादाद नौ लाख को पार कर गई है। महंगाई की मार हर परिवार पर है मगर ये मुद्दे पहले की तरह मुखर नहीं हो पाए हैं। वर्ष 2003 से पुरानी पेंशन योजना को बंद करके नई पेंशन योजना जो देश भर में शुरू हुई है, का असर अब जाकर दिखने लगा है क्योंकि नई पेंशन योजना वाले कर्मचारी जो 2003 के बाद नौकरी लगे हैं, उनमें से कुछ रिटायर होने लगे हैं।

सेवानिवृत्ति पर जब इन्हें नाममात्र ही पेंशन मिलने लगी है जो पुरानी पेंशन के आसपास तो क्या उसका पांच दस फीसद ही है। देखते-देखते कर्मचारियों में यह एक बड़ा मुद्दा बन गया है। कांग्रेस ने इसे सबसे बड़े हथियार के तौर पर लपक लिया। लपका ही नहीं, ऐलान कर दिया कि कांग्रेस की सरकार बनेगी तो सबसे पहली कैबिनेट में सबसे पहले हस्ताक्षर से पुरानी पेंशन योजना की बहाली होगी।

इसके लिए कांग्रेस राजस्थान व छत्तीसगढ़ राज्यों, जहां उसकी सरकारें हैं, उसका हवाला दे रही है। वहां पर इसे बहाल कर दिया गया है। यह मुद्दा अंदर ही अंदर जोर पकड़ रहा है। यूं भी हिमाचल को लेकर कहा जाता है कि यहां पर कर्मचारी सरकार बदलते व बनाते हैं क्योंकि लगभग हर परिवार से कोई न कोई सरकारी कर्मचारी है जो पूरे परिवार के गणित को प्रभावित करता है। अंदरखाने कर्मचारियों ने भी इसे मुद्दा बना दिया है।

कांग्रेस ने सीधा ऐलान कर दिया है तो मुद्दा गर्म व खिलाफ होता देख कर भाजपा भी इसे लेकर गंभीर है मगर अब ऐलान कर नहीं सकती क्योंकि आचार संहिता लग गई है। यूं मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने भी साफ कर दिया है कि पुरानी पेंशन केंद्र की मोदी सरकार की मदद से ही बहाल होगी और इसे भाजपा ही करेगी।

बीते दिनों प्रचार के लिए आए बिहार के पूर्व मंत्री मंगल पांडे जो इस समय पश्चिम बंगाल के प्रभारी व हिमाचल के पूर्व प्रभारी रह चुके, ने सराज की एक चुनावी रैली में यहां तक कह दिया कि भाजपा ने पुरानी पेंशन को बहाल करने का पूरा मन बना लिया है। इसके लिए एक कमेटी का गठन कर दिया गया है। इसी बीच में 31 अक्तूबर को सोशल मीडिया पर एक खबर साझा हो गई कि केंद्र की मोदी सरकार ने हिमाचल के कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन बहाल कर दी है।

कांग्रेस ने इसे फर्जी समाचार करार देते हुए इसकी शिकायत चुनाव आयोग से कर दी है। ऐसे में प्रदेश में इस समय जहां कांग्रेस ने कर्मचारियों की दुखती रग पर हाथ रख कर इसे अपना सबसे बड़ा चुनावी हथियार बनाया है तो भाजपा चुनाव में मोदी व केंद्र सरकार के बड़े हथियार के साथ आगे बढ़ रही है।

भाजपा मतदाताओं को यह बताने का प्रयास कर रही कि केंद्र में मोदी सरकार के होते हुए ही प्रदेश का भला होने वाला है। कोई भी बड़ी योजना या फिर पुरानी पेंशन की बात हो यह तभी संभव है जब डबल इंजन की सरकार प्रदेश में हो। अब चूंकि चुनाव प्रचार में महज आठ दिन का समय ही बाकी रह गया है, 10 नवंबर शाम को पांच बजे चुनाव प्रचार थम जाएगा। ऐसे में प्रदेश में जुबानी जंग और हमले और तेज होंगे।