अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार एवं राजनीति में चल रही खींचतान और चिंता के बीच आयोजित हुई विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के प्रमुखों की बैठक पर दुनिया की निगाहें टिकी हुई थीं। जापान के ओसाका में जी 20 सम्मेलन में दो त्रिपक्षीय बैठकों में भारत शामिल हुआ। जापान-अमेरिका- भारत एवं रूस-चीन-भारत, इन दो तितरफा बैठकों का संदेश स्पष्ट रहा- भारत अपनी बड़े उपभोक्ता बाजार के कारण हर आर्थिक और सामरिक ध्रुवों के बीच स्वीकृति पा रहा है। जी 20 की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन तितरफा बैठकों के अलावा दुनिया के कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात की।
महाशक्तियों के बीच संतुलन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर और साथ गए भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने जो बैठके कीं, उनसे स्पष्ट रहा कि भारत अपनी संतुलन वाली कूटनीति में कामयाब रहा है। प्रधानमंत्री ने एक ओर चीन और रूस के राष्ट्रपतियों के साथ वार्ता की तो दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति एवं जापानी प्रधानमंत्री के अलावा ब्रिक्स देशों के राष्ट्राध्यक्षों एवं सऊदी अरब, दक्षिण कोरिया, कनाडा, इंडोनेशिया और जर्मनी के नेताओं के साथ भी। इन बैठकों के एजंडे मिलते जुलते रहे- वैश्विक कारोबार के लिए माहौल तैयार करना, वैश्विक संस्थाओं को मजबूत बनाने के लिए जरूरी बदलाव, ढांचागत विकास और क्षेत्रीय शांति एवं संतुलन। ये सारे मुद्दे ऐसे हैं, जिनमें भारत अब दुनिया के लिए जरूरी बन रहा है। चाहे वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र का मुद्दा हो या फिर अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक ढांचे में बदलाव की कवायद, जिसके तहत बहुध्रुवीय विश्व की अवधारणा जोर पकड़ रही है और इस अवधारणा को लेकर रूस ने भारत का साथ दिया।
संरक्षणवाद को लेकर बना दबाव
सम्मेलन में आने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन, जापान, जर्मनी और भारत के संबंध में जो तीखी बातें कही थीं, उससे आशंका थी कि ओसाका शिखर सम्मेलन में अमेरिका और चीन के व्यापार युद्ध अधिक सघन हो सकते है, राष्ट्रपति ट्रंप मेजबान जापान को नाराज कर सकते हैं और शुल्कों को लेकर भारत पर दबाव बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। ट्रंप ने भारत, जापान, यूरोपीय देशों आदि जैसे सहयोगियों की न केवल तारीफ की, बल्कि वे चीन और रूस जैसे परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों से भी संबंध सामान्य करने के लिए उत्साहित दिखे।
भारत के हित
जी 20 में भारत ने आर्थिक भगोड़ों की नकेल कसने के लिए मजबूत वैश्विक साझा कार्रवाई की जरूरत बताई। सम्मेलन में कारोबार से लेकर आतंकवाद तक के मुद्दों पर भारत ने कई अहम कूटनीतिक सफलताएं अर्जित कीं। इंडोनेशिया और भारत ने अगले 2025 तक दोनों देशों के बीच व्यापार 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा। प्रधानमंत्री मोदी और इंडोनेशियाई राष्ट्राध्यक्ष जोको विडोडो ने तय किया कि अर्थव्यवस्था, रक्षा और समुद्री सुरक्षा को लेकर भी आपसी सहयोग बढ़ाया जाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात में आतंकवाद का मुद्दा उठाया। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे से मुलाकात में मोदी ने उनसे आपदा के बाद पुनर्वास के लिए देशों का गठबंधन बनाने के प्रस्ताव पर समर्थन मांगा। मोदी से मुलाकात के दौरान सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने भारत का हज कोटा एक लाख 70 हजार से बढ़ाकर दो लाख करने का वादा किया। बीते कुछ महीनों में सऊदी ने भारत को किफायती दरों पर तेल बेचा है। यह जारी रहेगा। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल से मोदी की बातचीत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ई-मोबिलिटी, साइबर सुरक्षा, रेलवे आधुनिकरण और कौशल विकास पर साझेदारी तय हुई। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन ने आर्थिक संबंध, वीजा नीतियों को आसान बनाने और व्यापार बढ़ाने पर वार्ता की।
डिजिटल डेटा घोषणापत्र
भारत-जापान संबंधों की मजबूती और दोनों प्रधानमंत्रियों की नजदीकी के बावजूद भारत ने डिजिटल डेटा के निर्बाध प्रसार के घोषणापत्र पर सहमति नहीं दी, जो प्रधानमंत्री शिंजो आबे का प्रयास था। इसमें अमेरिका और अन्य विकसित देशों की सहमति भी थी। भारत का कहना है कि इस तरह के मसलों के बारे में फैसले विश्व व्यापार संगठन में लिए जाने चाहिए। सूचना तकनीक के अगले चरण 5जी पर भी भारत का ऐसा ही रुख है।
जी 20 का एजंडा
जी 20 का गठन 1999 में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता के उद्देश्य से विकसित एवं विकासशील देशों के एक मंच के रूप में किया गया था। 1997 के गंभीर एशियाई संकट के दौरान इसका गठन हुआ। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद वैश्विक समुदाय ने अपने एजंडे का विस्तार करने और इसे सरकार और राज्यों के प्रमुखों का एक शिखर सम्मेलन बनाने का फैसला किया। इसमें 19 देशों के साथ यूरोपीय संघ भी शामिल है।
यह सकारात्मक है कि विभिन्न देशों ने अपने तनाव कम किए। लेकिन देखना होगा कि अगले कुछ महीनों में कोई नया विवाद न खड़ा हो जाए। जो बातें हुईं हैं, उनसे वैश्विक कारोबार और निवेशकों का भरोसा दोबारा से बनेगा।
– मानव मजूमदार, डिप्टी सेक्रेटरी जनरल, फिक्की
जी 20 का एजंडा अब आपदा प्रबंधन से आगे बढ़ गया है। अब वैश्विक स्तर पर सूक्ष्मतर आर्थिक सहयोग की बातें हो रही हैं, जिससे दुनिया की अर्थव्यवस्था में नए तरह का संतुलन बन रहा है।
– बिश्वजीत धर, प्रोफेसर, जेएनयू
शीत युद्ध के खात्मे के बाद वैश्विक आर्थिक शासन व्यवस्था को पुनर्भाषित करना होगा। भारत जैसे विकासशील देशों की श्रेणी में डाले गए देश लगातार मजबूत हो रहे हैं और कथित महाशक्तियों को यह समझना होगा।
– पिनाक रंजन चक्रवर्ती, पूर्व आइएफएस,
विदेश मंत्रालय में पूर्व सचिव (आर्थिक मामले)