पीएम नरेंद्र मोदी आज ‘स्‍टार्ट-अप पॉलिसी’ का एलान करने वाले हैं। यह पॉलिसी स्‍टार्ट-अप एंड आंत्रप्रेन्‍योरशिप बिल के तौर पर होगी। इसके तहत, दूसरी चीजों के अलावा स्‍टार्ट-अप कंपनियों में निवेश को बढ़ावा देने के लिए आम टैक्‍सदाता के पैसों का इस्‍तेमाल किया जाएगा।

अगस्‍त 2015 में भारत सरकार ने एक ‘इंडियन एस्‍पीरेशन फंड’ का एलान किया था। शुरुआत में इसे बनाने का मकसद टैक्‍सपेयर्स के 2000 करोड़ रुपए का निवेश उद्यम के लिए पूंजी (venture-capital) के तौर पर करना था, जो विभिन्‍न स्‍टार्ट अप कंपनियों के लिए इस्‍तेमाल होता। वेंचर कैपिटल फंड्स ज्‍यादा रिस्‍क, ज्‍यादा फायदा के सिद्धांत पर काम करते हैं। इसमें निवेश किया गया या तो पूरा पैसा डूब जाता है, या कई गुना फायदा भी होता है। हमारे पैसे का जिस वेंचर कैपिटल में इस्‍तेमाल हुआ, उनमें सह निवेशक के तौर पर आइकोनिक कैपिटल कंपनी भी थी। ब्रिटेन की यह कंपनी ‘सीक्रेट बिलिनेयर फंड’ या खरबपतियों के गुप्‍त पैसे रखने वाली कंपनी के तौर पर भी जानी जाती है। ऐसी कंपनी जो फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग, टि्वटर के फाउंडर जैक डोर्से, लिंक्‍डइन के फाउंडर रेड हॉफमैन के फंड्स की देखरेख करती है। सवाल यह है कि ‘एसपिरेशनल इंडिया’ जैसी पहल के लिए जब पैसे लगाने के लिए प्राइवेट कंपनियां तैयार हैं तो सरकार को आम नागरिक के लिए रोटी, कपड़ा, शिक्षा के लिए पैसे खर्च करने के बजाए टैक्‍सदाताओं की रकम को ऐसे जोखिम वाले निवेश में क्‍यों लगाना चाहिए?

देश की अर्थव्‍यवस्‍था और नौकरियां पैदा करने के नजरिए से स्‍टार्टअप पॉलिसी एक सही कोशिश है। हालांकि, सीधे या अप्रत्‍यक्ष तौर पर सरकार का इन स्‍टार्ट अप कंपनियों में निवेश करने की सलाह नहीं दी जा सकती। ऐसा दावा किया जा रहा है कि इन पहल के लिए प्रेरणा इजराइल की ‘योजमा’ कार्यक्रम से ली गई है। योजना कार्यक्रम की मदद से ही इजराइल दुनिया में तकनीकी स्‍टार्ट अप कंपनियों के मामले में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर पहुंच गई है। इजराइल सरकार ने यह योजना 1993 में पेश की थी। बीते दस साल में भारत में विभिन्‍न नई स्‍टार्ट अप कंपनियों में 60 अरब डॉलर का निवेश किया जा चुका है। 2000 के मुकाबले साल 2015 में स्‍टार्टअप कंपनियों को 50 गुनी ज्‍यादा पूंजी मिली। 2015 में पहली बार ऐसा हुआ, जब भारत में स्‍टॉक मार्केट में विदेशी निवेश से ज्‍यादा वेंचर कैपिटल में निवेश किया गया। भारत पहले से ही दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्‍टार्ट अप इकोसिस्‍टम बन चुका है। यहां 12 हजार से ज्‍यादा सक्रिय स्‍टार्ट अप कंपनियां हैं। इसके साथ ही भारत में स्‍टार्ट अप में निवेश करने वाले प्राइवेट इंडस्‍ट्री में भी ग्रोथ हुई है। ऐसे में यह बताना मुश्‍क‍िल है कि आखिर क्‍यों सरकार को स्‍टार्ट अप इकोसिस्‍टम में टैक्‍स के रुप में मिले पैसों को झोंकना चाहिए। ऐसी हालत में जब सरकार के सामने आम जनता से जुड़ी दूसरी बड़ी समस्‍याएं हैं।

किसी भी आर्थिक गतिविधि में सरकार की दखल की जरूरत उस वक्‍त होती है, जब या तो उस कोशिश की शुरुआत करनी हो या फिर प्राइवेट सेक्‍टर नाकाम हो चुका हो। इंडियन स्‍टार्ट अप कंपनियों में निवेश के मामले में ऐसा तो बिलकुल भी नहीं है। भारत में स्‍टार्टअप कंपनियों की संख्‍या में इजाफा करने के लक्ष्‍य की तारीफ की जा सकती है, लेकिन ऐसा टैक्‍सदाताओं के पैसे पर नहीं किया जा सकता। उन पैसों को, जिन्‍हें निवेश के जोखिमों से बचाए जाने की जरूरत है। यह दलील भले ही सही हो कि विदेशी वेंचर कैपिटल पर भारत निर्भर नहीं रह सकता, लेकिन यह भी सही नहीं है कि विदेशी निवेशकों के साथ सरकार भी ऐसे जोखिम भरे निवेश की हिस्‍सेदार बने। एक ऐसी पार्टी जो ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्‍सीमम गवर्नेंस’ के वादे के साथ सत्‍ता में आई है, वो कैसे ‘पब्‍ल‍िक सेक्‍टर स्‍टार्ट अप’ जैसा एक नया वर्ग तैयार करने का इरादा रख सकती है?

(प्रवीण चक्रवर्ती आईडीएफसी इंस्‍टीट्यूट के विजिटिंग फेलो हैं, जबकि राजीव गौड़ा कांग्रेस के राज्‍यसभा सांसद हैं। गौड़ा आईआईएम बेंगलुरु के पूर्व प्रोफेसर भी हैं।)