पिछले हफ्ते कमानी सभागार में आयोजित ‘भीलवाड़ा सुर संगम’ कार्यक्रम में दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ी। युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए इस बार युवा सरोदवादक अर्णव चक्रवर्ती भी कार्यक्रम में शामिल हुए। भारतीय संस्कृति और उसके उदात्त मूल्यों में विश्वास रखने वाले भीलवाड़ा उद्योग समूह ने शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से इस कार्यक्रम की शुरुआत की थी जोकि वर्तमान समय में खासा लोकप्रिय हो चुका है।

कार्यक्रम की उद्घाटन संध्या की शुरुआत जयपुर गायकी की प्रामाणिक और सुरीली गायिका विदुषी अश्विनी भिड़े ने की। तिलक कामोद जैसे मीठे लेकिन सीमित संभावनाओं वाले राग से उन्होंने श्रोताओं को विस्मित कर दिया। आमतौर पर गायक इसे मुख्य राग के बाद दूसरे राग के तौर पर पेश करते हैं, लेकिन अश्विनी ने इसे मुख्य राग की तरह लेते हुए झपताल की एक पारंपरिक बंदिश ‘सकल दु:ख हरण’ सविस्तार मध्य विलंबित लय में गाकर इस राग का लोकप्रिय छोटा खयाल ‘कोयलिया बोले अमवां की डालरिया’ और एक तराना क्रमश: मध्य और द्रुत तीनताल में गाते हुए विविध तानों की बौछार से श्रोताओं को अंदर तक भिगो डाला। इसके बाद एक होरी ठुमरी के अंदाज में और अंतिम भैरवी भजन दादरा शैली में प्रस्तुत करते हुए अश्विनी ने अपना मोहक गायन संपन्न किया। हारमोनियम पर विनय मिश्र और तबले पर विनोद लेले ने उनका साथ दिया।

समारोह की शुरुआत अर्णव चक्रवर्ती के सरोद वादन से हुई, जिन्होंने पंडित बृज नारायण और पं बुद्धदेव दासगुप्ता सरीखे गुरुओं से तालीम पाई है। तबले पर उनका साथ देने अनीश प्रधान जैसे मंझे हुए संगतकार थे। समारोह की दूसरी शाम उस्ताद शाहिद परवेज के सुरीले सितार और उस्ताद राशिद खां के लाजवाब गायन के सम्मोहक संगम ने सुर संगम का नाम सार्थक कर दिया। उस्ताद राशिद खां ने शाम के बेहद संजीदा राग श्री से अपने एकल गायन की शुरुआत की तो उस्ताद शाहिद परवेज ने सितार पर यमन जैसे श्रुतिमधुर राग से उनका प्रत्युत्तर दिया। इस आमफहम राग में भी एकदम नए रास्ते खोजते हुए आलाप जोड़ से राग का सुरीला माहौल रच कर सात मात्रा के रूपक ताल में विलंबित गत और मध्य व द्रुत तीनताल में दो अन्य बंदिशें बजाकर तैयार झाले से उन्होंने अपना एकल सितारवादन संपन्न किया तो सभागार तालियों से गूंज उठा।

इसके बाद बारी आई उस जुगलबंदी की जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था। रागों की क्या तासीर होती है इसकी गवाह थी वह अनूठी बागेश्री जो जुगलबंदी के तौर पर पेश की गई। बेहद मीठे आलाप से दोनों फनकारों ने बारी-बारी से गा-बजा कर राग का सुरीला माहौल बनाया। इसके बाद राशिद खां ने इस राग का मशहूर छोटा खयाल तीनताल में शुरू किया तो शाहिद के सितार ने उनके तराशे गले की हर बारीकी को ज्यों त्यों खुद में उतार दिया। अमूमन गले की बात सितार में कह पाना मुश्किल होता है लेकिन शाहिद का इस मामले में कोई जवाब नहीं था। मध्य लय के इस खयाल के बाद द्रुत लय के तराने में दोनों की पैंतरेबाजी अपने चरम पर थी। साथी कलाकारों में शुभंकर चटर्जी के तबले, मुराद अली की सारंगी और विनय मिश्र के हारमोनियम ने और गजब ढाया। ठुमरी पहाड़ी ‘बातों बातों में बीत गई रात…’ की रूहदारी में डूबे श्रोताओं को भी पता नहीं चला कि कब ये सुरीली शाम बीत गई और इसके साथ ही इस साल का ‘सुर संगम’ भी। अब उन्हें इंतजार है अगली संगीतमयी शाम का।