भारत में पर्यटन कई नजरिए से महत्त्वपूर्ण है। एक तरफ सरकार देश में पर्यटन को बढ़ावा देना चाहती है। इससे विदेशी मुद्रा बढ़ेगी। साथ में पर्यटन के कारोबार में रोजगार की भी बहुत संभावनाएं हैं। लेकिन, आए दिन सैलानियों के साथ होने वाले दुवर््यवहार और अपराध सरकारों के सामने एक चुनौती बने हुए हैं। भारत में जीव-जंतुओं और प्रकृति की रक्षा करने की बात बचपन से सिखाई जाती है। लेकिन, ऐसी आदर्श बातें सही मायनों में नैतिक शिक्षा की किताबों में कैद होकर रह गर्इं हैं। जमीनी हकीकत इससे काफी अलग है। बात चाहे प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा की हो या भारत आने वाले विदेशी सैलानियों की। उनकी सुरक्षा का सवाल एक गंभीर मसला है।
भारत में विदेशी पर्यटकों-खासकर महिला सैलानियों, के साथ बलात्कार, मारपीट और लूटपाट की घटनाएं अक्सर खबरों की सुर्खियां बनती हैं। इससे देश-विदेश में भारत की न सिर्फ छवि खराब बनती है, बल्कि साल-दर-साल विदेशी पर्यटकों की संख्या में कमी भी आती है। साल 2012 में नई दिल्ली में एक छात्रा के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म से वैश्विक स्तर पर भारत की साख प्रभावित हुई है। ऐसी घटनाओं का पर्यटन कारोबार पर बुरा असर पड़ता है। निर्भया बलात्कार प्रकरण के बाद आरोपियों को कड़ी सजा तो मिली। इसके बावजूद देश में आए दिन इस तरह की शर्मनाक घटनाएं सामने आती रहती हैं।
भारत में अनगिनत पर्यटन स्थल हैं। देश में कोई भी ऐसा राज्य नहीं है, जहां महत्त्वपूर्ण रमणीय स्थल न हों। देश का शायद ही कोई ऐसा पर्यटन स्थल हो, जहां पर्यटकों के साथ छेड़छाड़, बलात्कार, लूटपाट और हत्या न हुई हो। कुछ समय पहले मध्यप्रदेश में स्विट्जरलैंड की एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। पीड़ित महिला अपने पति के साथ भारत आई थी।
भारत के पर्यटन कारोबार के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए संबंधित पुलिस प्रशासन को ऐसे अपराधों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी पड़ेगी। अगर विदेशी महिला पर्यटकों के साथ दुराचार जैसी घटनाओं को नहीं रोका गया तो देश के पर्यटन कारोबार को गंभीर नुकसान झेलना पड़ सकता है। एक अध्ययन के मुताबिक भारत आने वाली महिला पर्यटकों की संख्या में निरंतर कमी आ रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह देश में महिलाओं के साथ होने वाली आपराधिक घटनाएं हैं। भारत में हर बीस मिनट में एक बलात्कार होता है, ऐसे में विदेशी सैलानियों पर इसका नकारात्मक असर पड़ना लाजिमी है।
पिछले साल एसोचैम के ‘ईयर एंड टूरिज्म ट्रेंड्स इन इंडिया’ अध्ययन में बताया गया कि दुनिया कई महत्त्वपूर्ण जगहों पर हुए आतंकी हमलों का विपरीत असर वहां के पर्यटन उद्योग पर पड़ा है। नतीजतन, विदेशी सैलानी भारत आना पसंद कर रहे हैं। लेकिन उनकी यह पसंद मजबूरियों की वजह से बनी है। एसोचैम के अनुसार अंडमान और निकोबार, गोवा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, केरल, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर राज्य, विदेशी पर्यटकों की पसंद हैं।

भारत सरकार की योजना है कि 2016 में देश में आने वाले पर्यटकों की संख्या में बारह फीसद की बढ़ोतरी की जाए। इस बारे में पर्यटन मंत्रालय ने सभी राज्यों से अनुरोध किया है कि वे अपने यहां खास पर्यटन पुलिस का गठन करें, जो देशी और विदेशी पर्यटकों की सुरक्षा कर सकें। इस तरह की कोई भी पहल तभी प्रभावी होगी जब बलात्कार और लूटपाट की घटनाएं नियंत्रित हों। टीवी चैनलों और पत्र-पत्रिकाओं में प्रसारित और प्रकाशित होने वाला एक नारा ‘अतिथि देवो भव:’ आपको जरूर याद होगा। इसके जरिए यह संदेश देने की कोशिश की जाती है कि भारत आने वाले पर्यटक हमारे अतिथि हैं। उनके मान-सम्मान की सुरक्षा करना हमारा दायित्व है। पता नहीं, सरकार ने इस मद में करोड़ों रुपए खर्च कर क्या हासिल किया? इश्तहार के नाम पर फूंके गए करोड़ों रुपए की जगह अगर पर्यटन स्थलों की सुरक्षा, यातायात की आधुनिक व्यवस्था जैसे व्यावहारिक कदम उठाए गए होते तो शायद आज परिणाम कुछ और होते। वैसे भी इस देश में अतिथि को सम्मान देने की पुरानी परंपरा रही है, लेकिन आज इसे कौन मान रहा है?
इस देश में तो महिला सम्मान की भी आदि परंपरा रही है लेकिन यहां महिलाएं कितनी महफूज और आजाद हैं? आखिर क्या वजह है कि विदेशी मेहमान भारत आने से कतराते हैं और अगर आते भी हैं तो उन्हें अपनी जान-माल चिंता रहती है। नारों और सुंदर बातों से देश की व्यवस्था नहीं सुधरती। इसके लिए जरूरी है ठोस नीतिगत कदम उठाने की।
केंद्र और राज्य सरकारें यह चाहती हैं कि उनके यहां विदेशी पर्यटकों की आमद हो। इस बाबत वे इश्तिहार भी शाया करती हैं लेकिन वे यह भूल जाती हैं कि पर्यटकों को लुभाने के लिए विज्ञापनों की बजाय बुनियादी सुविधाओं और सुरक्षा पर अधिक बल देने की जरूरत है। पर्यटन स्थलों के विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकारें अरबों रुपए खर्च करती हैं लेकिन इसका बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। ताजा मामला हरिद्वार उत्तराखंड का है। यहां पर्यटक भवन बनाने के नाम पर करोड़ों रुपए की गड़बड़ी सामने आई है।
भारत में पर्यटन एक उद्योग का रूप ले रहा है। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इसका 6.5 फीसद योगदान है। पर्यटन कारोबार से करीब चार करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ है। परोक्षरूप से भी इस व्यवसाय से काफी लोग जुड़े हुए हैं। इनकी रोजी-रोटी का जरिया विदेशी सैलानी ही हैं। पिछले तीन वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि 2015 में करीब सवा लाख पर्यटक कम आए। 2014 में 2013 की तुलना में दस फीसद सैलानी अधिक आए थे। अक्तूबर 2015 तक भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों में सबसे ज्यादा हिस्सा 15.22 फीसद बांग्लादेशी पर्यटकों का रहा। 12.99 फीसद के साथ अमेरिका दूसरे स्थान पर रहा है। वहीं ब्रिटेन से 11.31, श्रीलंका से 3.69, जर्मनी से 3.62, कनाडा से 3.58, आॅस्ट्रेलिया से 3.37, मलेशिया से 3.03, फ्रांस से 3.01, नेपाल से 2.67, चीन से 2.55, जापान से 2.42, रूस से 2.03, सिंगापुर से 1.65 और पाकिस्तान से 1.59 फीसद पर्यटक भारत आए। जनवरी से अक्तूबर 2015 के दौरान पर्यटन उद्योग से करीब 101,348 करोड़ रुपए की कमाई हुई। इसकी तुलना पिछले साल हुई कमाई से की जाए तो 2015 में सिर्फ 2.5 फीसद का ही इजाफा हुआ, जबकि उम्मीद कहीं ज्यादा थी।
दरअसल, विदेशी पर्यटक भारत में अपनी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। पुलिस-प्रशासन के उदासीन रवैए से विदेशी पर्यटकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अगर सरकार को पर्यटन से होने वाली आमदनी बढ़ानी है, तो सबसे पहले उनके लिए देश में सुरक्षा का माहौल पैदा करना होगा। सुरक्षा का भरोसा केवल भाषणों से नहीं, बल्कि व्यावहारिक रूप से देना होगा। पर्यटन मंत्रालय विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने की योजनाओं पर काम तो करते हैं लेकिन ये कोशिशें कुछ समय बाद शिथिल पड़ जाती हैं। यही वजह है कि भारत में पर्यटन की अपार संभावनाएं होने के बावजूद सरकार इस फायदे से वंचित है। जहां यातायात के पर्याप्त और बेहतर साधन न हों, जहां हमेशा सुरक्षा की चिंता सताती हो, साफ-सुथरे होटल न हों, हर चौराहे पर जहां ठग और बिचौलिए मौजूद हों, जहां भरोसेमंद गाइड न हों, वहां भला कौन विदेशी पर्यटक आना चाहेगा।

पर्यटन मंत्रालय को विदेशी सैलानियों को लुभाने के लिए ठोस कार्यनीति बनाने की जरूरत है। सबसे पहले पर्यटन का ढांचा बनाने की शुरुआत पर्यटकों के मद्देनजर करनी होगी। रेल और हवाई सेवाओं को बेहतर बनाना होगा। अलग-अलग श्रेणियों के होटल बनाने होंगे। एक अध्ययन के मुताबिक गोवा के प्रति विदेशी पर्यटकों का मोहभंग हो रहा है। यहां होने वाली आपराधिक वारदात इसकी मुख्य वजह है। कश्मीर, शिमला और नैनीताल जैसे पर्यटन स्थलों की तरह एक समय गोवा भी पर्यटकों के लिए काफी मुफीद माना जाता था। कश्मीर को तो दहशतगर्दी ने तबाह कर दिया और गोवा को अपराधियों की नजर लग गई। कभी गोवा में दुनिया भर से करीब आठ लाख विदेशी पर्यटक आते थे। यहां आने वालों में कई ऐसे थे, जो दोबारा अपने घर नहीं लौट सके। लौटे भी तो बर्बाद होकर और यहां कभी भी नहीं आने की कसम खाकर। दरअसल, गोवा आज मौत का एक शहर बन गया। गोवा में पर्यटन एजेंसियों की भरमार है, जो विदेशी पर्यटकों को गोवा के लिए बड़े-बड़े पैकेज में फंसाती हैं और उनको यहां बुलाकर उन्हें वह सुविधाएं नहीं देती हैं जिनका उन्होंने वादा किया होता है।
दुनिया के कई देशों में कानून सख्त है, जहां पर्यटकों के अपराध होने पर कड़ी कार्रवाई की जाती है। जबकि भारत में होने वाली इन घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया जाता। पहली बात अगर आप दूसरे देश जा रहे हैं घूमने के मकसद से तो कुछ जरूरी बातों का ख्याल भी रखना चाहिए। मसलन, उस देश के बारे में बुनियादी जानकारी आदि। भारत आने वाले विदेशी पर्यटक अक्सर लूटपाट और ठगी के शिकार हो जाते हैं। इसकी कई वजहें हैं, लेकिन दो अहम हैं। पहला, विदेशी सैलानियों को ड्रग की तलब और दूसरी यौनेच्छा। भारत में वेश्यावृत्ति नहीं है। जो लालबत्ती इलाके हैं, उसकी अनुज्ञप्ति नृत्य और मनोरंजन के नाम पर ली जाती है। यह अलग बात है कि यहां नृत्य-गान के नाम पर सेक्स का व्यापार भी चलता है। भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों में बहुत सारे ऐसे होते हैं, नाइट-लाइफ की तलाश में रहते हैं। अक्सर ऐसे विदेशी पर्यटक लालबत्ती इलाकों का रुख करते हैं, जहां वे ठगी के शिकार भी होते हैं और उनके साथ साथ गलत बर्ताव भी होता है। इसी तरह हेरोइन, कोकीन और अफीम जैसे नशीले पदार्थों की तलाश में कई विदेशी पर्यटक जहरखुरानों के हत्थे चढ़ जाते हैं। अक्सर भारतीय पुलिस भी ऐसे पर्यटकों को ड्रग रखने के आरोप में पकड़ लेती है। भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों को यह जरूर याद रखना चाहिए कि पर्यटन से खुशी मिलती है, लेकिन इस खुशी का रंग फीका न पड़े, इसलिए अपनी समझ-बूझ और आत्मनियंत्रण भी जरूरी है। १