एक तरफ यमुना को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए कई अभियान चलाए जा रहे हैं, करोड़ों रुपए बहाए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ धर्म और संस्कृति के नाम पर इस नदी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश हो रही है। करीब ढाई महीने पहले यमुना किनारे एक बड़े भूखंड पर श्रीश्री रविशंकर के आर्ट आॅफ लिविंग की ओर से आयोजित ‘विश्व सांस्कृतिक महोत्सव’ के दौरान नदी की जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंचने के मद्देनजर राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने संगठन पर पांच करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था। तब एनजीटी के निर्देश पर गठित समिति ने आयोजन-स्थल का निरीक्षण कर पाया था कि यमुना के जलग्रहण क्षेत्र और जैव व्वििधता को भारी क्षति होगी। हालांकि बाद में इस आयोजन के चलते यमुना को हुए नुकसान के आकलन में यह रकम बहुत कम तय की गई, पर उतना जुर्माना देना भी श्रीश्री रविशंकर को नागवार गुजरा।
उन्होंने जुर्माना चुकाने के बजाय जेल जाने की बात कही थी। इस जिद का आधार क्या था, यह पता नहीं चल सका। हैरानी की बात यह है कि उस रकम को भी माफ करने के लिए आर्ट आॅफ लिविंग की ओर से हरित पंचाट में अर्जी डाली गई थी। लेकिन अब राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने जिस तरह इस याचिका को खारिज करते हुए पांच हजार रुपए का जुर्माना लगाया है, वह ऐसे संगठनों के लिए सबक होना चाहिए जो यमुना को प्रदूषित करने या नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं और जब उन्हें दंडित किया जाता है तो इसके खिलाफ अदालतों का रुख कर लेते हैं। पंचाट ने जुर्माने की बची हुई पौने पांच करोड़ रुपए रकम का भुगतान एक हफ्ते में करने का निर्देश दिया है।
मार्च में आयोजित ‘विश्व सांस्कृतिक महोत्सव’ के लिए नियम-कायदों को ताक पर रख कर यमुना के जीवन की घनघोर अनदेखी की गई थी और आयोजन के बाद वहां बड़े पैमाने पर गंदगी को यों ही छोड़ दिया गया था। सवाल है कि जिन नदियों को सभ्यता को जीवन देने वाली और आस्था के ठौर के रूप में देखा जाता है, धर्म और संस्कृति के नाम पर ही उन्हें नुकसान क्यों पहुचाया जाता है। खासकर धर्म या आस्था के साथ जन-भावना का मुद्दा जुड़ा होता है, इसलिए इन्हें भुनाने वाले लोग कानून का पालन करने के बजाय जेल जाना मंजूर होने की बात करने लगते हैं, ताकि अनुयायियों के बीच उनके प्रति सहानुभूति उमड़े। विश्व सांस्कृतिक महोत्सव के दौरान जल ग्रहण क्षेत्र तक में निर्माण की अनुमति दे दी गई थी।
जबकि जलग्रहण क्षेत्र एक तरह से नदी के पाट का विस्तार होता है। यह वर्षाजल को समाने और फिर से भरने के साथ-साथ बाढ़ जैसी आपदाओं से भी बचाता है। लेकिन इन सब तकाजों को धता बता कर एक बड़े दायरे में अक्षरधाम मंदिर बना और राष्ट्रमंडल खेलों के लिए हुए निर्माण कार्यों के दौरान तमाम पर्यावरणीय नियम-कायदों की व्यापक अनदेखी हुई। लेकिन इस सबका यमुना के जीवन पर क्या असर पड़ा है, यह सभी जानते हैं। इसके जलग्रहण क्षेत्र में निर्माण कार्यों से लेकर शहर भर की गंदगी और औद्योगिक कचरों को इसमें बहाए जाने की वजह से यमुना आज किसी नदी के बजाय नाला ज्यादा दिखती है। अगर धर्म या आस्था के नाम पर सांस्कृतिक गतिविधियों या किसी तरह के निर्माण कार्यों को इसी तरह छूट मिलती रही, तो यमुना के लिए आने वाला वक्त और बुरा होगा।