किसी भी आपराधिक वारदात के बाद पुलिस से उम्मीद होती है कि वह आरोपी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करके उसे सजा दिलाएगी। लेकिन जब खुद पुलिस महकमे में तैनात किसी महिला के सामने यौन प्रताड़ना से तंग आकर खुदकुशी की नौबत आ जाए तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्त्रियों के लिए समाज से लेकर शासन तक का कौन-सा कोना सुरक्षित है!
करनाल स्थित मधुबन की हरियाणा पुलिस अकादमी में पिछले हफ्ते एक महिला कांस्टेबल ने अपने ही अफसरों से तंग आकर जान देने की कोशिश की। सवाल है कि जब पुलिस महकमा अपनी महिला कांस्टेबल तक की सुरक्षा और उसके साथ इंसाफ सुनिश्चित नहीं कर पा रहा है तो आम महिलाओं के उत्पीड़न की शिकायतों को लेकर वह कितना गंभीर होता होगा! कांस्टेबल अनीता राष्ट्रीय एथलेटिक्स मुकाबलों में हरियाणा की अगुआई कर चुकी हैं और खेलकूद में उन्होंने काफी सुर्खियां बटोरीं।
लेकिन उनकी काबिलियत को स्वीकार करने के बजाय कुछ अधिकारियों ने उन्हें प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। आरोपों के मुताबिक अफसरों ने अनुशासन का पालन नहीं करने के बहाने अनीता का चरित्रहनन किया और फोन पर गालियां तक दीं। अकादमी में प्रशिक्षण हासिल कर रही कुछ अन्य महिला खिलाड़ियों ने भी अफसरों पर तंग करने के आरोप लगाए हैं। जाहिर है, अफसरों का रवैया अनीता की सहन-सीमा से बाहर चला गया होगा, तभी उन्होंने जहरीला पदार्थ खाकर जान देने की कोशिश की। अगर वक्त रहते इलाज नहीं मिल पाता तो शायद उनका जिंदा बचना मुश्किल था। यह उन पुलिस अधिकारियों का चेहरा है जिन पर आम नागरिकों और खासतौर पर महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी है।
अगर कोई महिला इन हालात में खुदकुशी के फैसले तक पहुंचती है, तो उसके भीतर उपजे दुख और तनाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब उसे अपने सामने विरोध और संघर्ष के सारे विकल्प खत्म हो गए लगते हैं, तभी वह ऐसा कदम उठाती है। हाल ही में पंजाब में संगरूर जिले के कालबंजारा गांव में डॉक्टर बनने की ख्वाहिश लिए दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक दलित बच्ची ने वहां की दबंग जाति के कुछ युवकों की छेड़छाड़ और प्रताड़ना से तंग आकर आग लगा कर खुदकुशी कर ली।
एक तरफ अभाव से जूझते हुए भी डॉक्टर बनने का सपना लेकर पढ़ाई करती एक दलित लड़की, दूसरी ओर खुद पुलिस महकमे में तैनात महिला के सामने भी जब ऐसी ही लाचारी के हालात हैं तो फिर उम्मीद की कौन-सी सूरत बचती है! अगर स्त्री और उसके सपनों की इस तरह मौत एक हकीकत है तो इसे किस आधार पर एक सभ्य और आधुनिक व्यवस्था कहा जाए! यह समाज से लेकर पुलिस महकमे तक में महिलाओं के खिलाफ गहरे पैठी संवेदनहीनता और पुरुषवादी सोच का एक जटिल मामला है। सख्त कानूनी कार्रवाई के साथ जब तक सामाजिक विकास नीतियों के स्तर पर भी ठोस पहल नहीं की जाएगी, तब तक ऐसी स्थितियों से पूरी तरह निपटना मुश्किल बना रहेगा।
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