केंद्रीय खेल मंत्रालय ने जिस तरह भारतीय कुश्ती महासंघ यानी डब्लूएफआइ को निलंबित कर दिया, उससे यह पता चलता है कि इस मसले पर चल रही खींचतान के बीच कैसे एक तरह से अराजक माहौल खड़ा हो रहा था और इसके लिए सरकार के रुख पर सवाल उठ रहे थे। हालांकि डब्लूएफआइ के संदर्भ में सरकार के ताजा फैसले का आधार तकनीकी है, लेकिन इसका एक संदेश यह भी निकला है कि महिला खिलाड़ियों ने भारतीय कुश्ती महासंघ के समूचे ढांचे और कामकाज के तौर-तरीके को लेकर जो आईना दिखाया था, वास्तव में वह जमीनी हकीकत की बुनियाद पर उठाए गए ठोस सवाल थे।
इसके बावजूद बेहद विचित्र तर्कों और परिस्थितियों के बीच भारतीय राजनीति में कद्दावर माने जाने वाले कुछ खास लोगों को बचाने की कोशिशें चलती रहीं और महिला पहलवानों के आरोपों को निराधार बताया जाता रहा। अब जिस आधार पर भारतीय कुश्ती महासंघ की नई संस्था को निलंबित किया गया है, उससे यह साफ होता है कि आंतरिक ढांचे में एक विचित्र मनमानी चल रही थी, जिसका खमियाजा कुश्ती के खेल और इसके खिलाड़ियों को उठाना पड़ रहा था।
दरअसल, कुश्ती महासंघ पर जो कार्रवाई की गई है, उसकी वजह राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता को जल्द आयोजित कराने का फैसला है। सरकार के मुताबिक, हाल ही में डब्लूएफआइ के नव-निर्वाचित सदस्यों ने निर्णय लेने के क्रम में नियमों का उल्लंघन किया। चुनाव जीतने के कुछ ही देर के बाद इसके अध्यक्ष ने उत्तर प्रदेश के गोंडा में 28 दिसंबर से अंडर 15 और अंडर 20 राष्ट्रीय प्रतियोगिता कराने की घोषणा कर दी थी और पिछली तदर्थ समिति के सभी फैसलों को खारिज कर दिया था।
इसके पीछे इस वर्ष में बहुत कम समय बचने या नए पहलवानों का भविष्य बचाने जैसी दलीलें दी जा सकती हैं, मगर सवाल है कि इस क्रम में निर्धारित नियमों को ताक पर रख कर फैसला लेने को कैसे उचित ठहराया जा सकता है? डब्लूएफआइ की नई संस्था के गठन और नए पदाधिकारियों के चयन के संबंध में जो खबरें आई हैं, उनके मद्देनजर देखा जाए तो ऐसा लगता है कि चुनाव प्रक्रिया में भी नियमों का पूरी तरह पालन करना जरूरी नहीं समझा गया। ऐसे में अगर केंद्र सरकार ने भारतीय ओलंपिक संघ से कुश्ती संघ से जुड़े कार्यों की देखरेख के लिए एक तदर्थ समिति गठित करने को कहा तो उसका तकाजा समझा जा सकता है।
गौरतलब है कि पिछले काफी समय से कई महिला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर कई गंभीर सवाल उठाए थे और आंदोलन भी किया था। मगर उनकी मांगों पर सरकार ने कोई साफ रुख अख्तियार नहीं किया। हाल में जब डब्लूएफआइ का चुनाव हुआ तब भी उसके अध्यक्ष के रूप में बृजभूषण शरण सिंह के ही नजदीकी माने जाने वाले व्यक्ति की नियुक्ति हुई।
इसी से निराश साक्षी मलिक ने कुश्ती से संन्यास लेने की घोषणा कर दी और कई अन्य पहलवानों ने अपने पदक लौटा दिए। किसी भी हाल में यह कोई आदर्श स्थिति नहीं है। महिला पहलवानों ने डब्लूएफआइ के कुछ उच्चाधिकारियों के खिलाफ शिकायत उठाई थी, उसमें एक तरह से कुश्ती संघ के भीतर नियमों को ताक पर रख कर चलाई जा रही मनमानी पर रोक लगाने की भी मांग शामिल थी। डब्लूएफआइ के चुनाव के बाद जिस तरह आनन-फानन में फैसले लिए जाने लगे, उसने पहलवानों की आपत्तियों से जुड़ी कड़ियों की पुष्टि की। अब देर से सही, सरकार ने अगर इस मसले पर स्पष्ट कार्रवाई की है, तो इसे दुरुस्त कदम कहा जा सकता है।