मतदाता सूची में फर्जी नामों की शिकायतें आने के बाद उन्हें हटाने के लिए चुनाव आयोग अपनी ओर से हर संभव कोशिश करता है। पर ऐसी कवायदों में लापरवाही के चलते कई बार गलत तरीके से अनेक नागरिकों के नाम मतदाता सूची से बाहर कर दिए जाते हैं, जिससे वे मतदान से वंचित रह जाते हैं। दिल्ली के नांगलोई इलाके के निवासी सुमित का नाम मतदाता सूची से बिना उन्हें जानकारी दिए हटा दिया गया था। इसके चलते वे फरवरी में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में मतदान नहीं कर सके थे।
इसके बाद उन्होंने सूचनाधिकार कानून के तहत चुनाव आयोग से जानकारी मांगी कि उनका नाम मतदाता सूची से क्यों हटा दिया गया। चुनाव आयोग की ओर से बिना किसी आधार के न सिर्फ सूची से किसी मतदाता का नाम हटाने में मनमानी की गई, बल्कि कानून के तहत इससे संबंधित जानकारी मांगे जाने पर भी मुहैया नहीं कराई गई। जाहिर है, यह एक व्यक्ति को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी और मतदान के अधिकार का प्रयोग करने से वंचित करने के अलावा अपनी ड्यूटी में लापरवाही और एक नागरिक की उपेक्षा का मामला भी है।
इसलिए केंद्रीय सूचना आयोग ने चुनाव आयोग को ठीक ही यह निर्देश दिया है कि वह सुमित को दस हजार रुपए मुआवजा दे। इसके अलावा, इस मामले में मांगे जाने पर संबंधित सूचना न मुहैया करा कर जिस तरह आरटीआइ कानून का उल्लंघन किया गया, उसके लिए सूचना आयोग ने चुनाव आयोग से जुर्माना वसूलने की बात कही।
सूचना आयोग के इस निर्देश के बाद अब नागरिकों के सामने यह रास्ता खुल गया है कि मतदाता सूची में से उनका नाम गलत तरीके से हट जाने की वजह से अगर वे मतदान से वंचित रह जाते हैं तो न सिर्फ मुख्य चुनाव अधिकारी से इसकी शिकायत कर सकते हैं, बल्कि हर्जाने की मांग भी कर सकते हैं। मतदाता सूची में नए नाम जोड़ने या उसमें संशोधन आदि का काम चुनाव आयोग के जिम्मे है। उम्मीद की जाती है कि वह इस काम में लापरवाही नहीं बरतेगा और अधिकतम स्तर तक त्रुटिहीन बनाएगा।
पर यह छिपा नहीं है कि किसी इलाके की मतदाता सूची में हजारों फर्जी मतदाता पाए गए, तो कहीं वास्तविक मतदाताओं के नाम सूची से गायब मिले। सही है कि कई बार आम नागरिकों में भी यह जागरूकता नहीं देखी जाती कि अगर वे कभी रिहाइश बदलते हैं तो पुरानी मतदाता सूची में से अपना नाम हटवा लें। लेकिन अगर चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची का नवीकरण करने के क्रम में किन्हीं वजहों से किसी खास वक्त पर कोई मतदाता अपने दर्ज पते पर उपलब्ध नहीं है, तो उसका नाम हटाने से पहले क्या वास्तविक स्थिति की पड़ताल फिर से नहीं की जानी चाहिए! यों भी, किसी का नाम संबंधित क्षेत्र की मतदाता सूची से तभी हटाया जाता है जब उसका पता बदल गया हो या उसकी मौत हो चुकी हो।
मतदान को नागरिक का लोकतांत्रिक कर्तव्य बताते हुए वोट डालने के लिए संदेश प्रसारित किए जाते हैं। लेकिन जरूरत इस बात की भी है कि मतदाता सूची तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि न केवल फर्जी नाम उसमें न दर्ज हों, बल्कि कोई भी वास्तविक मतदाता वोट देने के अधिकार से वंचित न हो।
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