किसी भी धार्मिक यात्रा का उद्देश्य और परिणाम सौहार्द का विस्तार होना चाहिए। लेकिन आए दिन यह देखने में आता है कि अलग-अलग समुदायों की ओर से किसी पर्व-त्योहार के मौके पर निकाली जाने वाली यात्राओं के तय मार्ग से अलग रास्ते पर चल पड़ने या फिर किसी अन्य वजह से खड़े होने वाले विवाद के बाद लोग उग्र हो जाते हैं।

फिर पुलिस को स्थिति नियंत्रित करने के लिए जरूरी कदम उठाने पड़ते हैं तो उस पर भी सवाल उठते हैं। इसी क्रम में कई बार भीड़ अराजक और हिंसक हो जाती है, जिसमें नाहक ही लोगों की जान चली जाती है। हरियाणा के नूंह में सोमवार को निकाली गई एक धार्मिक यात्रा के दौरान अचानक कुछ लोगों ने पत्थरबाजी कर दी।

इसके बाद टकराव इस कदर हिंसक हो गया कि उसमें होमगार्ड के दो जवानों सहित पांच लोगों की जान चली गई, कई बुरी तरह घायल हो गए। हालात को काबू में करने के लिए वहां अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजे गए, कुछ जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई और आसपास के इलाकों में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं। यानी धार्मिक आयोजन के रूप में जिस यात्रा का हासिल सद्भाव का संदेश होना चाहिए था, वह हिंसक संघर्ष के रूप में तब्दील हो गया।

सवाल है कि आखिर वे कौन लोग होते हैं, जिन्हें ऐसे आयोजनों में अचानक दिक्कत हो जाती है या कोई अपनी मंशा के मुताबिक चलने के लिए कानून तक को ताक पर रखने से नहीं हिचकता। विडंबना यह है कि किसी धर्म से जुड़े ऐसे जुलूसों का अराजक हो जाना आम होता जा रहा है। पिछले हफ्ते शनिवार को राजधानी दिल्ली के नांगलोई इलाके में मुहर्रम के जुलूस के दौरान जब एक समूह को तय मार्ग से अलग रास्ते पर जाने से रोका गया तो उसमें शामिल लोगों ने तोड़फोड़ मचा दी और हिंसा पर उतर आए।

किसी तरह पुलिस को स्थिति संभालनी पड़ी। इसी तरह, रविवार को बरेली में निर्धारित मार्ग से अलग कांवड़ यात्रा निकालने के सवाल पर लोगों की पुलिस से झड़प हो गई। ऐसे जुलूस निकालने वाले लोगों को आखिर किन वजहों से प्रशासन की ओर से तय मार्ग से अलग किसी और रास्ते पर जाना जरूरी लगने लगता है? क्या इसके पीछे कोई अन्य मंशा काम कर रही होती है?

यह किसी से छिपा नहीं है कि किसी भी धार्मिक यात्रा या जुलूस के दौरान सरकार या प्रशासन को सुरक्षा और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कई बार भारी संख्या में पुलिस को तैनात करना पड़ता है। मगर पुलिस की मौजूदगी के बावजूद कुछ लोगों के भीतर यह विचित्र जिद पैदा हो जाती है कि वे निर्धारित मार्ग से इतर किसी और रास्ते से जुलूस को लेकर जाएंगे।

जबकि विवाद की आशंका के मद्देनजर ही प्रशासन की ओर से धार्मिक यात्राओं या जुलूसों का मार्ग तय किया जाता है। हालांकि धर्म का मर्म जो कहता है, उसके मुताबिक किसी पर्व-त्योहार के मौके पर सभी समुदायों के बीच माहौल में अपने आप ही सौहार्द घुलना चाहिए और इसके लिए सबको अपनी ओर से सजग रहना चाहिए। लेकिन हालत यह है कि ऐसे मौकों पर भारी तादाद में पुलिस बल को तैनात किया जाता है, ताकि कानून व्यवस्था को बनाए रखा जा सके।

जरूरत इस बात की है कि आयोजन चाहे किसी भी समुदाय की ओर से हो, धार्मिक जुलूसों के दौरान प्रशासन की ओर से निर्धारित मार्ग के बजाय अगर लोग अन्य रास्ते पर जाने की जिद करने लगें तो इसके लिए आयोजकों की जिम्मेदारी तय की जाए। किसी भी धार्मिक यात्रा की खूबसूरती उसके जरिए सद्भाव का संदेश फैलाने में है।