तीन दिन तक चली अटकलों पर विराम लगाते हुए आखिरकार भाजपा नेतृत्व ने गुजरात के नए मुख्यमंत्री के तौर पर विजय रूपाणी के नाम की घोषणा कर दी। बीते शुक्रवार को पार्टी के विधायक दल ने उन्हें अपना नेता मान लिया और रविवार को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इससे पहले वे प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभा रहे थे। आनंदी बेन पटेल के उत्तराधिकारी के तौर पर उनका चयन किया जाना बहुतों के लिए हैरानी का विषय रहा। क्योंकि मुख्यमंत्री पद के नए दावेदार के रूप में स्वास्थ्यमंत्री नितिन पटेल का नाम सबसे आगे चल रहा था। उनकी मजबूत दावेदारी के पीछे कई कारण थे। एक तो यह कि वे पटेल समुदाय से आते हैं जिसका राज्य की राजनीति पर काफी दबदबा रहा है। फिर, नितिन पटेल पूर्व सरकार में दूसरे नंबर पर थे। तीसरे, यह माना जा रहा था कि पाटीदारों की नाराजगी दूर करने के लिहाज से भी गुजरात की कमान उनके हाथ में सौंपी जा सकती है।

नितिन पटेल अपनी दावेदारी के बारे में खुद इतने आश्वस्त थे कि उनके घर पर मिठाइयां बांटी जा रही थीं और उन्होंने अपने को भावी मुख्यमंत्री मान कर नई जिम्मेदारी को कांटों भरा ताज बता दिया था। पर ताज उन्हें नहीं मिला। अलबत्ता उन्हें पदोन्नत कर उपमुख्यमंत्री बना दिया गया। रूपाणी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की पसंद थे। शाह की मर्जी चलने से पार्टी के भीतर उनका दबदबा जाहिर है। यह इस बात का भी संकेत है कि अब गुजरात की सत्ता पर परोक्ष नियंत्रण शाह का ही होगा। पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन से शाह की नाराजगी पार्टी के भीतर छिपी नहीं थी। दरअसल, चाहे नौकरशाहों की तैनाती और तबादले जैसे प्रशासनिक मामले हों, या नीतिगत, शाह की सहमति से चलना आनंदी बेन जरूरी नहीं समझती थीं। जबकि नए मुख्यमंत्री शाह की मर्जी से चलने में शायद ही कोई कसर रखें।

भाजपा भले कांग्रेस-मुक्त भारत की बात करती हो, पर नए मुख्यमंत्री का चुनाव कांग्रेसी पद्धति से हुआ। मुख्यमंत्री के बारे में फैसला केंद्रीय नेतृत्व ने किया और बाद में उस पर विधायक दल की मुहर लगवा ली गई। रूपाणी में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने जो भी खूबियां देखी हों, उनकी राह आसान नहीं है। पाटीदारों के आंदोलन ने बता दिया कि कई चुनावों से समर्थन करता आया एक बड़ा समुदाय पार्टी से नाराज है। पंचायत चुनावों के नतीजों से भी इसकी पुष्टि हुई और यह जाहिर हुआ कि दो दशक बाद खासकर ग्रामीण गुजरात में कांग्रेस की पकड़ मजबूत हो रही है। इसके अलावा, ऊना कांड के कारण भाजपा के प्रति दलितों में आक्रोश पनपा है और पार्टी को भय है कि कहीं इसका खमियाजा उसे पंजाब और उत्तर प्रदेश में भी न भुगतना पड़े।

खुद गुजरात में अगले साल के आखीर में चुनाव होने हैं। विजय रूपाणी को पाटीदारों का भरोसा जीतने और दलितों की नाराजगी दूर करने समेत कई बड़ी चुनौतियों से पार पाना है। आनंदी बेन ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में नितिन पटेल के न चुने जाने पर जिस तरह नाखुशी जाहिर की और शाह पर भी निशाना साधने में संकोच नहीं किया, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि रूपाणी को राज्य में पार्टी के भीतर सुगबुगाते मतभेदों से भी पार पाना होगा। गुजरात मोदी का गृहराज्य है। अगर रूपाणी उम्मीदों पर खरे साबित नहीं हुए, तो गुजरात के बाहर भी मोदी का गणित गड़बड़ा सकता है।