महानगरों में बढ़ते वायु प्रदूषण और उससे पैदा होने वाली परेशानियों के मद्देनजर वाहनों के संचालन को नियंत्रित करने की सलाह लंबे समय से दी जाती रही है। अब तो जलवायु संकट से पार पाने के लिए तमाम देशों पर कार्बन उत्सर्जन में कटौती का दबाव है। इसलिए भी पेट्रोल-डीजल जेसे जीवाश्म र्इंधन की जगह बिजली और सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों को प्रोत्साहन देने पर जोर है।

ऐसे में भारतीय पेट्रोलियम मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में डीजल से चलने वाले वाहनों पर रोक लगा देनी चाहिए। अगले बारह सालों में आंतरिक दहन वाले इंजन से चलने वाले दुपहिया और तिपहिया वाहनों को भी बंद कर देना चाहिए। अगले दस सालों में शहरी क्षेत्रों में एक भी डीजल चालित वाहन नहीं होना चाहिए।

हालांकि मंत्रालय ने वाहनों के संचालन से संबंधित अपनी यह रिपोर्ट फरवरी में ही सौंप दी थी। अब इन सुझावों पर सरकार किस तरह अमल करती है, देखने की बात है। यह छिपी बात नहीं है कि डीजल से चलने वाले भारी वाहनों की वजह से शहरों की आबोहवा सबसे अधिक खराब होती है। उसके बाद दुपहिया वाहन वायु प्रदूषण फैलाने का बड़ा जरिया साबित होते हैं। अगर इन पर नियंत्रण कर लिया गया, तो निस्संदेह काफी हद तक कार्बन उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है।

शहरों में डीजल से चलने वाले निजी वाहनों पर रोक लगाने का सुझाव पुराना है। मगर हकीकत यह है कि आजकल जिस तरह बड़े वाहनों का आकर्षण बढ़ रहा है, उसमें डीजल से चलने वाली गाड़ियों का निर्माण भारी संख्या में होने लगा है। फिर सार्वजनिक वाहनों के रूप में बसों और माल ढुलाई के लिए उपयोग होने वाले भारी ट्रकों की वजह से भी वायु प्रदूषण की दर पर काबू पाना कठिन बना हुआ है।

हालांकि महानगरों में मालवाहक वाहनों का प्रवेश निश्चित समय के लिए ही खुला रखा जाता है, फिर बाहर से आने वाले वाहनों को शहर में प्रवेश करने के बजाय बाहरी मार्गों से निकाल दिया जाता है, फिर भी वायु गुणवत्ता में सुधार दर्ज नहीं हो पाता। भारत के कुछ शहर दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार हैं। ऐसे में विद्युत चालित वाहनों के चलन पर जोर दिया जा रहा है। पेट्रोल और डीजल में एथेनाल आदि मिला कर कार्बन उत्सर्जन पर काबू पाने का प्रयास किया जा रहा है। मगर इन उपायों का भी कोई उल्लेखनीय प्रभाव नजर नहीं आता।

वायु गुणवत्ता में सुधार बड़ी चुनौती है और इससे पार पाने के लिए कुछ कठोर कदम उठाने को बुरा नहीं कहा जा सकता। मगर पहले वैकल्पिक व्यवस्था तैयार करना बहुत जरूरी है। आजकल वाहन हर किसी की जरूरत बन चुके हैं। दुपहिया वाहन सामान्य आयवर्ग के लोगों के लिए जरूरी साधन हैं। ऐसे में उन्हें एकदम से खत्म करना बड़ी असुविधा पैदा कर सकता है।

हालांकि बैट्री से चलने वाले दुपहिया वाहनों को बढ़ावा दिया जा रहा है, मगर अभी उनके लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं और उनका उपयोग उस तरह लंबी दूरी के लिए नहीं किया जा सकता, जिस तरह जीवाश्म र्इंधन से चलने वाले वाहनों का किया जाता है। अब कारें भी विद्युत चालित आने लगी हैं, पर उनके सामने भी वही समस्या है। सार्वजनिक वाहन और मालवाहकों में डीजल की जगह कैसा इंजन लगाया जाएगा, जो भारी वजन उठा सके, यह देखने की बात है।