पिछले कुछ समय से बाजार में लगातार महंगाई के बढ़ते रुख ने समाज के सभी तबकों को प्रभावित किया है। मगर निम्न आय वर्ग के लोगों के सामने ज्यादा मुश्किल आई, जिन्हें अपने रोजमर्रा के खर्चों में कई स्तरों पर कटौती करनी पड़ी। खासकर खाने-पीने की चीजों की कीमतों ने आम लोगों से लेकर सरकार तक के माथे पर शिकन पैदा कर दी थी।
इस मुश्किल से निपटने के लिए सरकार की ओर से कई स्तर पर प्रयास किए गए, लेकिन महंगाई के आंकड़े आंख-मिचौली खेलते रहे। हालांकि बाजार में उथल-पुथल के बीच कीमतों में तेजी के लिए कई कारक जिम्मेदार रहे और उसका सीधा असर जरूरी वस्तुओं की खुदरा कीमतों पर पड़ा। अब वाणिज्य मंत्रालय की ओर से जारी ताजा आंकड़ों में थोक महंगाई का रुख नीचे की तरफ हुआ है।
इसके मुताबिक, जून लगातार तीसरा महीना है, जब थोक महंगाई शून्य से नीचे आ गई। खाने-पीने की वस्तुओं, र्इंधन, वस्त्रों और निर्मित उत्पादों की कीमतों में गिरावट की वजह से थोक महंगाई में यह गिरावट शून्य से 4.12 फीसद नीचे पहुंच गई है। इसे पिछले आठ साल में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई का सबसे निचला स्तर बताया जा रहा है। इससे पहले मई में यह शून्य से 3.38 फीसद और अप्रैल में शून्य से 0.92 फीसद नीचे रहा था।
थोक महंगाई की दर में कमी होने के बाद यह उम्मीद स्वाभाविक है कि अब बाजार में वस्तुओं की खुदरा कीमतों में भी नरमी आएगी। मगर कई बार थोक महंगाई में गिरावट के बावजूद खुदरा मूल्य पर उसका ज्यादा असर नहीं पड़ता है। मसलन, थोक महंगाई में तो नरमी का रुख देखा गया, लेकिन बाजार में खुदरा कीमतें ऊंची बनी रहीं। खाने-पीने के सामान और खासकर सब्जियों के दाम की वजह से सभी घरों का बजट बिगड़ा रहा।
हालत यह है कि टमाटर जैसी ज्यादातर सब्जियां साधारण आमदनी के लोगों की खरीदने क्षमता से दूर हैं। खाना-पीना चूंकि रोजमर्रा की अनिवार्य आवश्यकता है, इसलिए इसकी वजह से लोगों के सामने अपने अन्य खर्चों में कटौती तक की नौबत है। ऐसे में थोक महंगाई में कमी का असर अगर जरूरी सामान की खुदरा कीमतों पर भी पड़े, तभी इसे आम लोगों के लिए राहत के तौर पर देखा जा सकेगा। गौरतलब है कि जून में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बढ़ कर 4.81 फीसद पर पहुंच गया था। तब भी सबसे ज्यादा उछाल सब्जियों की कीमतों में ही आई थी।
खाने-पीने की चीजों की कीमतों में तेजी को इस मौसम में एक स्वाभाविक चक्र माना जाता है। लेकिन इसी दौरान सब्जियों के दाम में बढ़ोतरी मौसमी रुझान से इतर है। हालांकि इसका कारण भी मौसम में उतार-चढ़ाव की वजह से आपूर्ति शृंखला पर पड़ने वाले असर को माना जा सकता है। लेकिन इस समस्या का हल निकालना संबंधित सरकारी महकमों की जिम्मेदारी होती है। यों, जरूरी चीजों में महंगाई का यह रुख अकेले भारत में नहीं है।
दुनिया के कई देश इस समस्या से जूझ रहे हैं। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के लंबा खिंचने का सबसे ज्यादा असर खाने-पीने की चीजों की आपूर्ति पर पड़ा है। जाहिर है, मौसम की वजह से पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव के साथ आपूर्ति में बाधा से जुड़ी हुई कड़ियां ही थोक और फिर खुदरा बाजार को प्रभावित करती हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इन मसलों का व्यावहारिक हल निकालेगी और महंगाई को लेकर संतुलन बनाने का प्रयास करेगी।