भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर गतिरोध के शेष मुद्दों को शीघ्रता से हल करने पर सहमति बनी है, लेकिन सवाल है कि यह रास्ता मंजिल तक कब पहुंचेगा! यह जगजाहिर है कि दोनों देशों के बीच सीमा पर अगर कोई तनाव या खींचतान की स्थिति बनी हुई है तो इसके लिए चीन मुख्य रूप से जिम्मेदार है।
भारत सिर्फ अपने वाजिब हक और सवाल के साथ खड़ा है, जबकि चीन की ओर से अवांछित हस्तक्षेप की वजह से उपजी स्थितियों के चलते आज हालत यह है कि कई दौर की बातचीत के बाद भी हल का कोई उचित और आखिरी प्रारूप तय नहीं हो सका है। हालांकि कोर कमांडर स्तर की सैन्य वार्ता के उन्नीसवें दौर की बैठक के बाद मंगलवार को एक संयुक्त बयान में यह जानकारी दी गई कि दोनों पक्षों ने पश्चिमी क्षेत्र में एलएसी पर शेष मुद्दों के समाधान को लेकर सकारात्मक, रचनात्मक और गहन चर्चा की।
इससे जुड़े मसलों के हल की तलाश के साथ-साथ सैन्य और राजनयिक कड़ियों के जरिए बातचीत जारी रखने और सीमावर्ती इलाकों में जमीनी स्तर पर शांति बनाए रखने पर जो सहमति बनी है, उससे हल तक पहुंचने की उम्मीद पैदा होती है। मगर चीन का अब तक का जो रुख रहा है, आगे का रास्ता उसी की प्रतिबद्धता पर निर्भर करेगा।
यों इस बैठक का सकारात्मक संदेश यह है कि सीमा विवाद पर उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता दो दिनों तक चली और इस दौरान दोनों पक्षों के बीच कुल मिला कर करीब सत्रह घंटे तक बातचीत हुई। दरअसल, यह पहली बार है जब चीन की ओर से समस्या के हल के लिए बातचीत को लेकर थोड़ी गंभीरता दिखाई गई, अन्यथा सीमा पर दखलअंदाजी और उकसावे वाली हरकतों से लेकर गैरजरूरी दावे करके उसने समस्या को जटिल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
यह बेवजह नहीं है कि भारत को अब इस मसले पर कोई बातचीत करते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती है। पिछले तीन साल से ज्यादा वक्त से भारतीय और चीनी सैनिक पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के कुछ बिंदुओं पर टकराव की स्थिति में हैं। मगर इस बीच समाधान के लिए हुई पहल के क्रम में व्यापक राजनयिक और सैन्य वार्ता के बाद कई क्षेत्रों से दोनों पक्षों की ओर से कई बिंदुओं से सैनिकों की वापसी भी हुई है।
ताजा बातचीत इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि अगले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में भाग लेने जोहानिसबर्ग जा रहे हैं, जहां चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से उनकी मुलाकात हो सकती है। फिलहाल उम्मीद के बावजूद एक आशंका इसलिए भी बनी हुई है कि उन्नीसवें दौर की बैठक में भारतीय पक्ष ने देपसांग और डेमचोक समेत अन्य टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों की जल्द वापसी और लंबित मुद्दों को हल करने के लिए चीन पर दबाव डाला, लेकिन इस पर चीन की ओर से कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं दिया गया।
सवाल है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी सेना की ओर से अवैध दखलअंदाजी के तथ्य के बावजूद चीन टकराव वाले कुछ मुख्य बिंदुओं से अपने सैनिकों को वापस बुलाने को लेकर उदासीन क्यों दिखता है! किन वजहों से वह तनाव के कारणों को दूर करने को लेकर कोई ठोस पहल नहीं करता है? अब दोनों देशों के बीच बातचीत को जारी रखने पर बनी सहमति से यह भरोसा तो पैदा होता है कि टकराव के मसलों का हल निकलेगा। लेकिन एलएसी पर चीन ने भारतीय भूभाग में अवैध दखल दिया है तो वहां से चीनी सैनिकों की वापसी के उसके फैसले पर ही यह निर्भर करेगा कि बातचीत जारी रखने पर बनी सहमति का रास्ता कहां पहुंचेगा!