संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस का यह अंदेशा कि दुनिया में कोरोना महामारी की मार से पांच करोड़ लोग और बेहद गरीबी में चले जाएंगे, एक बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना महामारी ने दुनिया के सारे अमीर और गरीब देशों की कमर तोड़ कर रख दी है। इसका परिणाम बेरोजगारी, गरीबी और भुखमरी जैसी गंभीर समस्याओं के रूप में सामने आने लगा है। अमेरिका, इटली, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे संपन्न राष्ट्रों तक को समझ नहीं आ रहा कि आखिर इन चुनौतियों का सामना किया कैसे जाए, कैसी आर्थिक नीतियां अपनाई जाएं जो देश और आबादी को गरीबी की ओर धकेले जाने से रोक सकें। पिछले तीन महीने में इन देशों में करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं। ज्यादातर देशी-विदेशी कंपनियां लड़खड़ा गई हैं। दूसरी ओर जिन देशों की अर्थव्यवस्था पहले से ही खस्ताहाल थी, वहां संकट और ज्यादा गंभीर है। ऐसे में जब अर्थव्यवस्थाएं चौपट पड़ी हैं, लोगों के पास काम-धंधा नहीं है, खाने के लाले पड़ रहे हों तो गरीब को और गरीब होने से बचा पाना सरकारों के लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती है।

सबसे बड़ा खतरा तो यह है कि गरीबी बढ़ने की वजह से कई देशों को भुखमरी जैसे हालात का सामना करना पड़ेगा। लाखों बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाएंगे और कम उम्र में ही ऐसी बीमारियों से घिर जाएंगे जिनका उनके विकास और भविष्य पर बुरा असर पड़ेगा। दुनिया में भुखमरी के आंकड़े तो पहले ही से चिंताजनक हैं। अभी भी बयासी करोड़ भुखमरी का शिकार हैं और पांच साल से कम उम्र के चौदह करोड़ बच्चे ऐसे हैं जो कुपोषण की वजह से शारीरिक विकास संबंधी समस्याओं को झेल रहे हैं। ऐसे में सरकारों के सामने बड़ा संकट महामारी के साथ-साथ भुखमरी जैसी समस्या से निपटने का भी है। वैश्विक खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम चलाने वाला विश्व खाद्य संगठन (डब्ल्यूएफओ) पहले ही यह कह चुका है कि उसे धन मुहैया कराने वाले सारे अमीर देश अमेरिका, जर्मनी, इटली, फ्रांस आदि खुद ही कोविड-19 से जूझ रहे हैं और इन देशों की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि इन्हें अपना देश चला पाना ही भारी पड़ रहा है। ऐसे में ये देश वैश्विक संगठनों को मदद दें या अपने को संभालें। अगर विकसित देशों से मदद नहीं मिली तो विश्व खाद्य संगठन कैसे गरीबों तक खाना पहुंचा पाएगा, यह बड़ा सवाल है।

भारत के संदर्भ में देखें तो गरीबों की तादाद बढ़ने का यह संकट कहीं ज्यादा बड़ा है। पिछले ढाई महीने में पूर्णबंदी की वजह से जिस तरह से करोड़ों लोगों का रोजगार चला गया है, वह कम बड़ा संकट नहीं है। लाखों प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौट चुके हैं और यह सिलसिला अभी जारी है। उद्योग जगत पहले ही खस्ताहाल है और अगर अगले कुछ महीनों में कामगार कारखानों-फैक्ट्रियों में नहीं लौटे तो मंदी और भयावह रूप धारण कर सकती है। नतीजा यह होगा कि लोगों के पास पैसा नहीं होगा, एक सीमा के बाद लोगों को मदद पहुंचाने में सरकारों का दम निकलने लगेगा और गरीब ज्यादा बुरी स्थिति में चला जाएगा। मध्यवर्ग के सामने भी पहाड़ जैसा यह संकट खड़ा है, जिसका असर थोड़े समय बाद दिखने लगेगा। केंद्र और राज्य सरकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराने की है। जब लोगों के पास काम होगा, तभी हाथ में पैसा आएगा और बाजार में मांग निकलने से अर्थव्यवस्था का चक्र चल पाएगा। वरना आबादी के बड़े हिस्से को गरीबी की तरफ जाने से रोक पाना संभव नहीं होगा।