अमेरिकी राष्ट्रपति को अब शायद यह बात समझ आने लगी है कि उनकी रणनीति बहुत कारगर साबित नहीं होने वाली। शायद इसीलिए अब बातचीत की संभावना भी खोजी जाने लगी है। सत्ता की बागडोर संभालते ही जिस तरह उन्होंने दुनिया के तमाम देशों को पहले धमकाया और फिर पारस्परिक शुल्क लगा दिया, उससे उन्हें शायद यकीन था कि सारे देश उनके आगे घुटने टेक देंगे और अमेरिका की अर्थव्यवस्था कुलांचे भरनी शुरू कर देगी। मगर पारस्परिक शुल्क लगाने के साथ ही दुनिया भर में उनका विरोध शुरू हो गया।
खुद अमेरिका में ट्रंप को अभूतपूर्व विरोध का सामना करना पड़ा
बाजार नीचे की तरफ लुढ़कने शुरू हो गए। खुद अमेरिका में ट्रंप को अभूतपूर्व विरोध का सामना करना पड़ा। ऐसे में, उन्होंने अपनी शुल्क नीति पर विराम लगाना पड़ा। कुछ देशों पर उन्होंने नब्बे दिनों के लिए अपनी शुल्क नीति पर रोक लगा दी। हालांकि चीन के साथ उनका शुल्क युद्ध रोज एक नया मोड़ लेता दिख रहा है। अब चीन ने भी अमेरिका पर सवा सौ फीसद का जवाबी शुल्क लगा दिया है। फिर भी अमेरिका को लगता है कि चीन जल्दी ही घुटने टेक देगा और वह ट्रंप से बातचीत की मेज पर आएगा। पर चीन ने दूसरे देशों को अमेरिका के खिलाफ अपने पक्ष में एकजुट करना शुरू कर दिया है।
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डोनाल्ड ट्रंप की पारस्परिक शुल्क नीति से सबसे अधिक नुकसान खुद अमेरिका को होता नजर आ रहा है। चीन ने दूसरे देशों को कुछ रियायत के साथ अपने उत्पाद बेचने की पेशकश शुरू कर दी है। उसके बाजार पर बहुत प्रतिकूल असर नजर नहीं आ रहा। चीन का निर्यात प्रभावित होने से अमेरिकी बाजार में जरूर सुस्ती पसरनी शुरू हो गई है। हालांकि ट्रंप ने माना कि कुछ बड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए दवाएं देनी पड़ती हैं। मगर अमेरिकी नागरिक महंगाई की मार को बहुत देर तक झेलने की स्थिति में नहीं हैं। जिन देशों पर पारस्परिक शुल्क लगाने की तिथि नब्बे दिनों के लिए टाल दी गई है, उनमें भी आधार शुल्क दस फीसद लागू है। इसी से वहां महंगाई बढ़ गई है। अगर ट्रंप अपनी जिद पर अड़े रहते हैं और नब्बे दिन बाद पारस्परिक शुल्क लागू करते हैं, तो दूसरे देश भी वैसा करने को तैयार हैं। यहां तक कि यूरोपीय संघ भी उनके इस फैसले के विरोध में है और उसने अपने जवाबी शुल्क की तारीख नब्बे दिन के लिए टाल दी है। इस तरह ट्रंप को अपने ही सहयोगियों का कड़ा विरोध झेलना पड़ रहा है।
ट्रंप की पारस्परिक शुल्क नीति से सबसे अधिक विश्व व्यापार संगठन की नीतियों का उल्लंघन हो रहा है। उचित ही उसने भी ट्रंप के इस कदम पर कड़ा एतराज जाहिर किया है। विश्व व्यापार संगठन का गठन ही इस इरादे से किया गया था कि दुनिया के देश आसान नियम-शर्तों के साथ वाणिज्य-व्यापार कर सकें। उसमें गरीब देशों को शुल्कों में रियायत देने और अमीर देशों से कुछ शुल्क वहन करने की अपेक्षा की गई थी। उसी नीति के तहत अमेरिका को गरीब देशों से आयात होने वाली वस्तुओं पर शुल्क देना पड़ता था। ट्रंप ने उस नियम को दरकिनार कर दिया है। इस तरह पूरी दुनिया की आपूर्ति शृंखलाएं प्रभावित होंगी और वाणिज्य-व्यापार के नए समीकरण बनेंगे, जिससे व्यापार युद्ध का खतरा गहराता जाएगा। मगर आर्थिक विशेषज्ञों को यकीन है कि जिस तरह ट्रंप के कदम ठिठकने लगे हैं, वे फिर से इस नीति पर विचार करेंगे।