दरअसल, यह पहली बार है जब अमेरिका में राष्ट्रपति पद पर रहे इस कद के व्यक्ति को वहां की अदालत में किसी अभियुक्त की तरह पेश होना पड़ा। हालांकि आमतौर पर यही माना जा रहा था कि कानून की तकनीकी बारीकियों का हवाला देकर उन्हें अदालत में प्रत्यक्ष पेशी से शायद बचा लिया जाए, लेकिन जब न्यूयार्क की ग्रैंड ज्यूरी की ओर से औपचारिक रूप से आरोप तय कर दिए गए, तब ट्रंप के सामने विकल्प सीमित रह गए।
यही वजह है कि मंगलवार को उन्होंने मैनहट्टन की अदालत में समर्पण कर दिया और अब इस मामले में जांच आगे चलेगी। गौरतलब है कि ट्रंप पर 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के लिए अभियान के दौरान गैरकानूनी तरीके से संबंधों को छिपाने की कोशिश के तहत अश्लील फिल्म की एक कलाकार को चुपके से पैसे दिलवाने और उसका भुगतान भी गलत तरीके से अपने अटार्नी को करने का आरोप है। उनके खिलाफ चौंतीस अपराध के मामले में आरोप तय किए गए हैं।
हालांकि आरोप तय होने और स्पष्ट रूप से कानूनी प्रक्रिया शुरू होने के बाद ट्रंप ने खुद को समूचे मामले में बेकसूर बताया, लेकिन अदालत में उनकी नाटकीय उपस्थिति और वहां न्यायाधीशों के रुख के साथ ही यह साफ हो गया है कि फिलहाल उन्हें इस मामले की कानूनी जटिलताओं से दो-चार होना पड़ेगा। अगर किन्हीं हालात में उन पर लगे आरोप साबित होते हैं और वे दोषी घोषित किए जाते हैं तो उन्हें चार साल तक की सजा हो सकती है।
यों वहां कानूनविदों का मानना है कि इस मामले में जेल की सजा अनिवार्य नहीं है। इसके पीछे कारण फिलहाल शायद इस बात को लेकर कायम अस्पष्टता हो कि दोषी होने के बावजूद एक पूर्व राष्ट्रपति होने के साथ-साथ अगले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दावेदार होने के नाते उन्हें जेल में भेजा जाएगा या नहीं। इस तरह की तकनीकी जटिलताओं के बावजूद यह सच है कि ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर रह चुके पहले शख्सियत हैं, जिन पर अपराध के आरोप तय हुए और अब इसकी छाया में ही उनके राजनीतिक भविष्य का अंजाम तय होना है।
दरअसल, अमेरिका के राजनीतिक पटल पर जब से डोनाल्ड ट्रंप का उद्भव हुआ, तब से उन्हें लेकर जिस तरह की बातें सुर्खियों में रहीं, उसमें ताजा मामला कोई नया आयाम नहीं गढ़ता है। यहां तक कि तब राष्ट्रपति पद के लिए चले अभियान के दौरान और उनके चुन लिए जाने के बावजूद उनके कई बयानों और व्यवहार को लेकर विवाद खड़े होते रहे। नीतिगत स्तर पर भी उनके विचारों को दिशाहीन बताया गया।
शायद यही वजह रही कि अगले चुनाव में वे हार गए। हालांकि उन्होंने नतीजों को स्वीकार नहीं किया। तब उनके समर्थन में अमेरिका में कैपिटल हिल्स पर हुई हिंसा ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। अब एक बार फिर अगले राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने दावेदारी जताई है। अमेरिकी चुनावों में समर्थन या विरोध के मामले में जैसी विभाजित परंपरा रही है, उसमें एक आकलन यह है कि ताजा मामले में आरोपों की प्रकृति उनके चुनाव अभियान पर प्रतिकूल असर डालेगी।
वहीं यह भी माना जा रहा है कि ट्रंप का जैसा व्यक्तित्व रहा है, उसमें वे इन आरोपों के संदर्भ में खुद को पीड़ित के रूप में पेश करके सहानुभूति पर आधारित समर्थन हासिल करने कोशिश कर सकते हैं। जो हो, इतना तय है कि अब राजनीतिक दुनिया में ट्रंप की राह पहले के मुकाबले ज्यादा मुश्किल हो गई है।