एक चैनल लाइन लगाता है- तेरा हंगामा बेहतर कि मेरा हंगामा? दूसरा चैनल लाइन लगाता है कि सरकार बड़ी कि मेरी निजता की आजादी?
उधर राधे मां उर्फ सुखविंदर कौर पहले एबीपी पर देर तक नाचते-गाते दिखती रहती हैं, उन पर बड़ी बहस भी हो जाती है। फिर बाकी हिंदी चैनलों पर बहसें आने लगती हैं। उसके बाद अंगरेजी चैनलों पर राधे मां चर्चा का मुद्दा बन जाती हैं।
सब खबरों और बहसों में लगभग एक-से दृश्य, एक-सी बातें, एक-से दावे और एक जैसे तर्क!
और राधे मां को भी अपने हितैषी मिल जाते हैं। एक चैनल पर सुभाष घई राधे मां के साथ एक चित्र में खड़े दिखते हैं, तो दूसरा चैनल कहीं से विवादग्रस्त गजेंद्र चौहानजी का राधे मां से मिलने का चित्र दिखाता है। एक चैनल राधे मां के भक्त अनूप जलोटा को बहस में ले आता है। आखिर बहस में ऋषि कपूर राधे मां के बहाने बाबाडम, उनके पाखंड और ढोंग का उपहास उड़ाते दिखते हैं।
यों बाकी के चैनल भी संसद के अवरुद्ध किए जाने को अपनी चिंता का दैनिक विषय बनाते रहे, लेकिन जैसा टाइम्स नाउ ने बनाया वैसा किसी अन्य ने नहीं। वही है, जो इस राष्ट्र के हिताहित की सर्वाधिक चिंता करता लगता है! कहने को तो इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाईजी चिंता करते अक्सर दिखते हंै, लेकिन जिस तरह अपने अर्णवजी संसद को ठप्प करने के लिए कांग्रेस पर बरसते दिखे, उस तरह राजदीप बरसते नहीं दिखे!
टाइम्स के आनंद नरसिंहन एकदम ‘सिंहम’ वाली शैली में कितने भी नाराज दिखें, तब भी वे अपने तूफानी एंकर अर्णव की पांच मिनट की रोषपूर्ण शैली के आसपास भी नहीं पहुंच पाते! अर्णव का आना एक न एक को ठिकाने लगा देना है, लेकिन इन दिनों संसद ठप्पीकरण के प्रकरण में अर्णव कांग्रेस के प्रवक्ता अजय कुमारजी का कुछ नहीं बिगाड़ पाते। बातें रह-रह कर वहीं आ जाती हंै कि जब यूपीए सत्ता में थी तो भाजपा ने कितने दिन तक संसद को नहीं चलने दिया था!
तब उनकी बारी थी अब अपनी बारी है! कांग्रेस के प्रवक्ता प्रत्यक्ष या परोक्ष तरीके से कहते रहते हंै कि संसद को तब तक काम नहीं करने देना है यानी जब तक आरोपित विदेशमंत्री और दो मुख्यमंत्री इस्तीफा नहीं देते या पीएम संसद में आकर सरकार का पक्ष नहीं रखते, तब तक संसद नहीं चलेगी! यह है: जैसे को तैसा! जनतंत्र जाए भाड़ में!
वित्तमंत्री अरुण जेटली के बयान का वह टुकड़ा हर चैनल पर आता है, जिसमें वे कांग्रेस को विकास-विरोधी बताते हैं। लेकिन परवाह किसे है इस हंगामे में।
एक-दो ऐसे चर्चाकार भी सामने आते हैं, जो कहते हैं कि ऐसी ‘जिच’ को खत्म करने के लिए कुछ लोग बीच बचाव करें, लेकिन इस लाइन का कोई लेवाल नहीं। चौवालीस, चार सौ चालीस पर भारी दिखते हैं! चैनल एक हद तक ही कांग्रेस को कोने में डाल पाते हैं, क्योंकि उधर सरकार की जिम्मेदारी गिनाई जाने लगती है कि संसद चलाना सरकार की जिम्मेदारी है! हमें लगता है कि संसद चलाना भी भगवान के हाथ है!
मुलायम सिंह कांग्रेस के ‘विरोध के लिए विरोध’ के व्यवहार से आजिज आकर संसद रोकने पर आपत्ति कर देते हंै। कई चैनल इसे उठाते हैं, लेकिन कांग्रेस के हठ के आगे मुलायम की लाइन दबाव नहीं बना पाती!
टाइम्स नाउ का एंकर एक दिन संसद के ‘अगंभीर व्यवहार’ पर तीखी टिप्पणी करता और बताता है कि भूटान से संसद में एक दल आता है कि तभी कुछ सांसद किसी बात पर (चैनल स्पष्ट नहीं करता कि किस बात पर) खिलखिला कर हंसने लगते हंै! एंकर कहता है कि विदेशी मेहमानों के आगे ऐसा व्यवहार शोभनीय नहीं दिखता!
यह पूरे राष्ट्र का अपमान है!
सप्ताह की सबसे मनोरंजक खबर ‘राधे मां’ ही रहीं। वे हर चैनल के लिए जरूरी बन गर्इं। हर चर्चाकार राधे मां के भक्तों को अंधभक्त कहता रहा। उन पर दहेज प्रताड़ना, धर्मांधता फैलाने और अश्लीलता प्रदर्शित करने के आरोप लगते रहे, लेकिन राधे मां नाचती दिखती रहीं। एक शॉट में वे एक फिल्मी गाने पर (जो साफ सुनाई नहीं पड़ता था, लेकिन ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ टाइप लगता था) लाल जैकेट और लाल स्कर्ट में नृत्य करती नजर आती थीं, लेकिन उनकी सबसे टिकाऊ मुद्रा वही थी, जो बार-बार दुहराई जाती थी: सजी-धजी मुकुट पहने राधे मां दाएं हाथ में एक छोटा-सा त्रिशूल लिए हैं, उनके भक्त उनके चारों ओर हैं और पहले एक भक्तिन उनको भीड़ से बचाने के लिए कंधे पर उठा लेती है, लेकिन फिर एक भक्त उनको अपने कंधे पर उठा कर कार तक ले जाता है। चैनलों के ढेर कैमरे उनका पीछा करते हंै, लेकिन वे कुछ नहीं बोलतीं! जो एकाध वाक्य बोलती हैं, वह पंजाबी टच वाली हिंदी में बोलती हैं कि मेरा भगवान मेरा न्याय करेगा!
राधे मां के सौजन्य से लगभग हर एंकर अपनी आधुनिकता और धर्मांधता के बीच बहस कराने को मजबूर हो जाता है और एंकरों का दो मिनट का आधुनिकतावाद राधे मां के अवतारवाद की आलोचना करने लगता है और अंगरेजी का एंकर जनता को सावधान करता रहता है कि अंधता से बच कर रहें! इस तरह के बाबावाद के फरेब में न आएं और ऐसे लोगों पर सरकार मुकदमा करे!
अपने एंकरों को कहां फुर्सत यह देखने की कि सीवीओ नाम से एक चैनल लगभग हर शाम चमत्कार ही चमत्कार दिखाता रहता है कि जिसमें ईसाई भक्त चमत्कार की ऐसी-ऐसी कहानियां पेश करते हैं कि अंधविश्वासी भी पनाह मांगे! एक गरीब-सी औरत अचानक खड़ी-खड़ी जमीन पर गिर पड़ती है, हाथ-पैर फेंकने लगती है कि चमत्कार होता है और उसका रोग दूर हो जाता है। ऐसे ही कई युवक-युवती-बालक अचानक तकलीफ से गुजरने लगते हंै कि तभी चमत्कार होता है और वे चंगे हो जाते हैं, उनके व्याख्याता बताते रहते हैं कि किस तरह यह ‘चंगाई चमत्कार’ हुआ!
एंकर इसे नहीं देखते, न हनुमानजी के उस ताबीज को बेचने वालों को देखते हैं, जो तीन-चार चैनलों पर लगातार दिखते हैं, न वे उन बादल बाबाओं के बारे में टिप्पणी करते हैं, जो अलख निरंजन कह कर सबके दिन का राशिफल निकाल कर बताते हंै कि किस तरह के रंग का वस्त्र धारण करें और क्या दान दें और क्या मंत्र
पढ़ें कि मनोकामना पूरी हो जाए!
कहना न होगा कि इस सप्ताह ‘पोर्न प्रतिबंध विचार’ अंगरेजी चैनलों का सबसे प्रिय विषय रहा! एनडीटीवी ने इस विषय पर अलख-सा जगाए रखा! निधि राजदान से लेकर बरखाजी के ‘वी द पीपल’ पर ‘पोर्न प्रतिबंध विचार’ जमे रहे! अधकचरे ‘प्रतिबंध’ के बाद उल्टे ‘पोर्न का पुण्य’ बढ़ा ही!