किसी भी हादसे का सबसे बड़ा सबक यह होना चाहिए कि ऐसे उपाय किए जाएं, ताकि दोबारा उसी तरह के हालात पैदा न हों। मगर धार्मिक स्थलों पर या ऐसे आयोजनों में जमा होने वाली भीड़ और उसके प्रबंधन को लेकर अक्सर इस हद तक लापरवाही बरती जाती है कि बार-बार भगदड़ की वजह से लोगों की जान जाने की घटनाएं सामने आ रही हैं। गौरतलब है कि तिरुपति के भगवान वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर परिसर में बुधवार को मची भगदड़ ने पुराने जख्मों को कुरेद दिया है।
यह आमतौर पर देखा गया है कि किसी खास आयोजन की तैयारी तो कर ली जाती है, लेकिन भीड़ नियंत्रण और प्रबंधन के उपाय पहले से नहीं किए जाते। तिरुपति में भी ऐसा ही हुआ। वहां टोकन लेने के लिए श्रद्धालु उमड़ पड़े और देखते ही देखते अफरा-तफरी मच गई। उसके बाद मची भगदड़ में छह लोगों की जान जाने की खबर आई। तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए कारगर तैयारी की गई होती, तो इस हादसे से बचा जा सकता था। सवाल है कि इस हद तक बरती गई लापरवाही की वजह से जो हुआ, उसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा!
यह विचित्र है कि धार्मिक स्थलों पर होने वाले आयोजनों में भगदड़ मचने की स्थिति में उसमें फंसे श्रद्धालुओं को शीघ्रता से बाहर निकालने के लिए वैकल्पिक मार्ग का प्रबंध नहीं किया जाता। जबकि विशिष्ट अतिथियों को किसी भी प्रतिकूल स्थिति से बचाने के लिए उनके आने और जाने का अलग इंतजाम होता है। पिछले कुछ समय से इस तरह के आयोजनों में भीड़ के बेकाबू हो जाने की घटनाएं आए दिन सामने आ रही हैं। कई राज्यों में हुए ऐसे कई हादसों में अब तक सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है।
मगर ऐसी घटनाओं को रोकने को लेकर न तो कभी गंभीरता से विचार होता है, न कभी कोई ऐसी कार्रवाई होती है, जो आगे के आयोजनों के लिए सबक सिद्ध हो। ज्यादातर जांच रपटों में इसकी वजह भीड़ बताई जाती है, जबकि कुप्रबंधन का तथ्य आमतौर पर छिपा लिया जाता है। शायद ही कभी ऐसी भगदड़ और उसमें लोगों की मौत के लिए आयोजकों की जवाबदेही तय की जाती है और प्रशासनिक लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया जाता है। नतीजतन, ऐसे हादसे लगातार सामने आ रहे हैं।