कुछ साल पहले तक देश में बाघों की कम संख्या को लेकर चिंता जताना एक तरह से सिलसिला बन गया था। इसके मद्देनजर बाघों के संरक्षण के लिए भी विशेष और लक्ष्य आधारित कार्यक्रम चलाए गए। शायद व्यापक स्तर पर किए गए लगातार प्रयासों का ही यह नतीजा है कि एक ताजा रिपोर्ट में बाघों की संख्या को लेकर आए नए आंकड़े पर काफी राहत महसूस की जा रही है।

प्रधानमंत्री ने रविवार को बाघ परियोजना के पचास साल पूरे होने पर एक रिपोर्ट जारी की, जिसके मुताबिक 2022 में देश में बाघों की संख्या तीन हजार एक सौ सड़सठ दर्ज की गई है, जबकि 2018 में यह संख्या दो हजार नौ सौ सड़सठ थी। यानी चार साल के दौरान बाघों की तादाद में दो सौ की बढ़ोतरी हुई। जाहिर है, इस पशु के जीवन के सामने जिस तरह के संकट मंडरा रहे हैं, उसमें इसके संरक्षण को लेकर किए गए उपायों से अब इसकी आबादी में लगातार इजाफा हो रहा है और चिंता के बरक्स एक स्तर पर संतोषजनक कामयाबी मिली है।

यों भी सांस्कृतिक दृष्टि से देखें तो प्रकृति की रक्षा करना भारत में आम जनजीवन का हिस्सा रहा है। रिपोर्ट जारी करने के मौके पर प्रधानमंत्री ने भी इसका जिक्र किया। लेकिन पर्यावरण में होने वाले उतार-चढ़ावों के समांतर बढ़ती इंसानी आबादी के साथ रिहाइशी इलाकों के विस्तार की वजह से अनेक जंगली पशुओं के प्राकृतिक आवास का दायरा सिमटा और उनका सामान्य जीवन बाधित हुआ। मैदानी इलाकों में बाढ़ जैसी कई वजहों से भी घास के मैदानों पर आफत के साथ हिरणों की आबादी में कमी आई और इसका सीधा असर वन्यजीवों की खाद्य शृंखला पर पड़ा।

इसका मुख्य खमियाजा पहले से ही संकट में पड़े बाघों को ज्यादा भुगतना पड़ा। हालांकि बाघों के जीवन पर यह संकट भारत के अलावा दुनिया भर में चिंता का कारण बना है। इसलिए बाघों को बचाने के मामले में विश्व स्तर पर पर्यावरणविदों के बीच व्यापक सहमति बनी। इन्हीं प्रयासों के तहत ‘इंटरनेशनल बिग कैट्स अलायंस’ यानी आइबीसीए बनी, जिसमें ऐसे देश शामिल हैं, जहां इस प्रजाति के सात पशु- बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, पुमा, जगुआर और चीता पाए जाते हैं। जहां तक भारत का सवाल है तो देश में कुल तिरपन बाघ संरक्षित क्षेत्र हैं, जहां लगभग तीन चौथाई बाघों की भिन्न प्रजातियां रहती हैं।

गौरतलब है कि करीब पांच दशक पहले जब बाघ संरक्षण को लक्षित इस परियोजना की शुरुआत की गई थी, तब हालत थी कि ‘बड़ी बिल्ली’ प्रजाति में गिने जाने वाले इस पशु की संख्या इतनी कम थी कि इसके खत्म होने की आशंका जताई जाने लगी थी। लेकिन इस परियोजना पर अमल के बाद भारत ने न सिर्फ बाघों को बचाया है, बल्कि उसकी आबादी में विस्तार के लिए बेहतरीन पर्यावरण तैयार किया।

सन 2006 में तो बाघों की गिनती महज एक हजार चार सौ ग्यारह रह गई थी और तब इस मसले पर उपजी चिंता के बाद सरकार की ओर से ज्यादा गंभीर और व्यवस्थित प्रयास शुरू हुए। उसके बाद हर चार साल के अंतराल के आंकड़ों में इसकी संख्या में तेजी से सुधार होता गया। अब नए आंकड़ों में बाघों की गिनती तीन हजार से ऊपर पहुंच जाने के बाद कहा जा सकता है कि देश में इस पशु के संरक्षण के लिए लागू योजना के तहत संतोषजनक उपलब्धि हासिल की जा सकी है। मगर यह ध्यान रखने की जरूरत है कि पर्यावरण से लेकर पर्यावास तक के मामले में बाघों का जीवन जिस तरह स्थानीय परिस्थितियों से अभिन्न है, उसे संतुलित बनाए रखना जरूरी है, ताकि लंबे समय में हासिल इस राहत को कायम रखा जा सके।