इसी के मद्देनजर व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम बनाया गया था। मगर उसमें खामियां होने की वजह से बड़े पैमाने पर लोगों और व्यावसायिक संगठनों ने एतराज जताया था। इसलिए सरकार ने उस अधिनियम को वापस ले लिया था।

पिछले साल इसमें संशोधन करके लोगों की राय लेने का प्रयास किया गया और उसी के आधार पर अब इसे अंतिम रूप दे दिया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2023 को मंजूरी दे दी है और इसके मानसून सत्र में कानूनी रूप पा जाने की उम्मीद है। इस विधेयक में व्यक्तिगत डेटा का दुरुपयोग करने वालों पर भारी जुर्माने और आम लोगों को मुआवजे का दावा करने का प्रावधान किया गया है।

इसमें अलग-अलग पांच प्रकार के दंड निर्धारित किए गए हैं। माना जा रहा है कि अब इस विधेयक पर एतराज की गुंजाइश नहीं रह गई है। मगर देखना है कि इस विधेयक को कितने पारदर्शी और व्यावहारिक ढंग से लागू किया जा पाता है, ताकि लोगों के व्यक्तिगत डेटा में सेंध लगाने वालों पर नकेल कसी जा सके।

दरअसल, डिजिटल उपकरणों के बढ़ते उपयोग के बीच बहुत सारी कंपनियां और डेटा चोरी करने वाले लोगों के व्यक्तिगत ब्योरों की चोरी करते देखे गए हैं। इसके चलते बहुत सारे लोगों के साथ धोखाधड़ी भी होती है। बैंकों से पैसे निकाल लेने, ठगी करने की अनेक शिकायतें आती रहती हैं। बहुत सारी कंपनियां, संस्थान खुद लोगों से जो व्यक्तिगत विवरण मांगते हैं, उन्हें दूसरी व्यावसायिक कंपनियों को मामूली पैसे पर बेच देते हैं।

ऐसे में लोगों की अपने व्यक्तिगत विवरणों की सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई थी। इसी चिंता को दूर करने के लिए नया विधेयक लाया जा रहा है। हालांकि व्यावसायिक कंपनियों को एतराज था कि चूंकि वे लोगों के व्यक्तिगत डेटा अपने उपयोग के लिए जमा करती हैं, इसलिए अगर उनके व्यावसायिक उपयोग पर रोक लगेगी तो उनके कारोबार पर असर पड़ेगा।

मगर सरकार ने उनके एतराज को नजरअंदाज कर दिया है। यहां तक कि सरकारी संस्थानों को भी इसके दायरे से बाहर नहीं रखा है। जाहिर है, इस विधेयक के कानूनी रूप में लागू हो जाने के बाद कंपनियों के मनमाने तरीके से लोगों के व्यक्तिगत डेटा के उपयोग पर अंकुश लगेगा। वे नाहक लोगों को फोन करके परेशान करने से भी बचेंगी।

सबसे चिंता की बात लोगों के मोबाइल फोन, मेल, कंप्यूटर आदि से उनका व्यक्तिगत डेटा चोरी करके उनके बैंक जमा खाते या दूसरी तरह की जमाओं में सेंधमारी करने वालों पर नकेल कसना है। पिछले दिनों जब फोन पर संदेश आदि के जरिए इस तरह की सेंधमारी करने वालों पर नकेल कसने की कोशिश की गई तो उन्होंने वाट्सऐप के जरिए यह धंधा शुरू कर दिया।

इस तरह इसमें उन सेवा प्रदाता कंपनियों की भी जवाबदेही बनती है, जो अपने ग्राहकों को मोबाइल, इंटरनेट आदि सेवाएं प्रदान करती हैं। जो लोग तकनीकी धोखाधड़ी के तरीकों से वाकिफ हैं, वे तो अपने व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा खुद भी करने का प्रयास करते हैं, मगर करोड़ों ऐसे लोग हैं, जो इस तरह की तकनीक से परिचित नहीं हैं, वे अक्सर सेंधमारों के चंगुल में फंस जाते हैं। इसलिए केवल डेटा की चोरी करने या उसे बेचने वालों पर अंकुश लगाने की नहीं, बल्कि सेवा प्रदाता कंपनियों की भी जवाबदेही तय करने की जरूरत है।