बढ़ती जरूरतों और सीमित संसाधनों के बीच प्राथमिकताओं का निर्धारण वक्त का तकाजा है, ताकि दुनिया में आम जीवन को लेकर एक संतुलन कायम रहे। मुश्किल तब आती है जब किसी मामले में निर्भरता की वजह से कई तरह की समस्याएं खड़ी होने लगती हैं। इस संदर्भ में देश की ऊर्जा जरूरतों और उपलब्ध संसाधनों पर गौर किया जा सकता है कि किस तरह पेट्रोलियम उत्पाद, कोयला, गैस आदि आज ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं।

मगर यह छिपा नहीं है कि इनकी लगातार घटती उपलब्धता और बढ़ती कीमत की वजह से आज इस मामले में भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं और विकल्प की राह निकाली जा रही है। इसी क्रम में सोमवार को प्रधानमंत्री ने एक नई योजना की घोषणा की, जिसके तहत केंद्र सरकार देश भर में एक करोड़ घरों की छतों पर सौर पैनल लगवाएगी। ‘प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना’ का लक्ष्य अगर जमीन पर उतरा तो इससे गरीब और मध्यवर्ग के बिजली खर्च में उल्लेखनीय बचत होगी। साथ ही एक बड़ा बदलाव देश की ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति में आएगा और भारत के लिए इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की राह खुलेगी।

दरअसल, प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों की आसान उपलब्धता के बावजूद इस मामले में ज्यादा प्रगति इसलिए नहीं हो पाई कि लोगों के बीच सौर पैनल या ऐसे अन्य संसाधनों को लेकर पर्याप्त जागरूकता का अभाव रहा है। इस वजह से लोग कई स्तरों पर अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को आसान बनाने के लिए या तो ऊर्जा की कमी या मुश्किल का सामना करते हैं या फिर उनके लिए ऊंची कीमत चुकाते हैं।

जबकि भारत में धूप और रोशनी की असीमित उपलब्धता में अगर सौर ऊर्जा जैसे विकल्प आजमाए जाएं तो इस क्षेत्र में बड़ा बदलाव हो सकता है। आमतौर पर जो विकल्प सामने होते हैं, लोग उसी दायरे में अपना जीवन-बसर करते रहते हैं, भले ही खोजने पर उससे आसान और सस्ते संसाधन मिल जाएं। पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के मुकाबले सौर ऊर्जा को लेकर भी यही स्थिति है। कम या मामूली खर्च में बिजली मिलने का विकल्प होने के बावजूद इस तक आम लोगों की पहुंच आमतौर पर नहीं हो पाती है। इसलिए ‘प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना’ के लक्ष्य की अहमियत समझी जा सकती है।

मौजूदा दुनिया में ऊर्जा की बढ़ती खपत और उपलब्धता की सीमा के लिहाज से देखा जाए तो सौर ऊर्जा आने वाले वक्त में इस क्षेत्र में एक अनिवार्य विकल्प होगा। जहां तक भारत का सवाल है, अगले एक दशक में यहां ऊर्जा की मांग में भारी बढ़ोतरी हो सकती है और इसकी पूर्ति में सौर ऊर्जा की बड़ी भूमिका होगी। फिलहाल देश में तापीय ऊर्जा ही मुख्य स्रोत है, जिसकी निर्भरता जीवाश्म ईंधन पर है।

ऐसे अनेक आकलन सामने आ चुके हैं, जिनके मुताबिक दुनिया में बढ़ते तापमान और जलवायु संकट के लिए जिम्मेदार कार्बन डाइआक्साइड और अन्य दूषित तत्त्व का मुख्य स्रोत जीवाश्म ईंधन हैं। यों सरकारें सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कई प्रोत्साहन कार्यक्रम चलाती रही हैं। मगर जरूरत इस बात की है कि आम लोगों के बीच अक्षय ऊर्जा स्रोतों को लेकर जागरूकता पैदा हो और इसकी उपलब्धता को आसान और रियायती बनाया जाए।

यह जगजाहिर है कि विकास की होड़ में प्राकृतिक संसाधनों की कैसी बर्बादी हुई है और इसका असर पृथ्वी और समूचे जलवायु पर क्या पड़ रहा है। इस लिहाज से भी अगर सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाता है, तो इसे भविष्य की तैयारी के तौर पर देखा जा सकता है।