इंटरनेट के फैलते दायरे के साथ-साथ इसे ठगी का जरिया बनाने वालों ने जिस तरह लोगों को अपनी कारगुजारियों का शिकार बनाना शुरू कर दिया है, उससे नई तरह की जटिलता खड़ी हो रही है। गुरुवार को आई एक खबर के मुताबिक नोएडा में पुलिस ने एक काल सेंटर का भंडाफोड़ किया और उसके उन चौदह कर्मचारियों को गिरफ्तार किया, जिन्होंने विदेशी नागरिकों से करोड़ों रुपए ठग लिए थे।
अच्छे-खासे संसाधनों और आधुनिक तकनीकों के साथ काल सेंटर के रूप में संगठित रूप से यह कारोबार चलाने वाले ये लोग दरअसल अमेरिका और अन्य देशों में रहने वाले लोगों को अपने झांसे में लेकर उनके कंप्यूटर में वायरस डाल देते थे और इसके बाद उसे ठीक करने के नाम पर उनसे मोटी रकम वसूलते थे।
माना जाता है कि इंटरनेट पर होने वाली गतिविधियां आमतौर पर पारदर्शी होती हैं और इस पर अवांछित वसूली करना मुश्किल हो सकता है। मगर इस तरह का फर्जीवाड़ा करने वाले आपराधिक तत्त्व गलत तरीके से पहले अमेरिका या अन्य देशों में रहने वाले लोगों से संबंधित ब्योरा या उनका डेटा हासिल करते हैं। फिर उन्हें आर्थिक अपराधों के जाल में फंसने का डर दिखा कर, कभी कंप्यूटर में वायरस डाल कर या फिर लुभावने आर्थिक प्रस्तावों के जरिए अपनी बातों में फंसाते हैं। इसके बाद मुश्किल से बचाने के नाम पर मोटी रकम वसूलते हैं। अकेले नोएडा में ऐसे कई मामले पकड़े जा चुके हैं।
उम्मीद यही की गई थी कि आनलाइन माध्यम से होने वाले कामकाज से पारदर्शिता आएगी और इसके सहारे आर्थिक अपराधों को रोका जा सकेगा। मगर अलग-अलग तरीके से खड़े किए गए आनलाइन कारोबार में आए दिन जिस तरह ठगी की घटनाएं सामने आ रही हैं, उससे यही लगता है कि धोखाधड़ी करने वालों ने इस माध्यम में भी अपनी घुसपैठ कर ली है और नए-नए तरीकों से धोखा देकर लोगों से आर्थिक लूट में लिप्त हो गए हैं। यों पुलिस महकमे के साइबर अपराध शाखाओं की ओर से ऐसे तत्त्वों पर लगाम कसने की कोशिश की जाती है, मगर फर्जी काल सेंटर के जरिए धोखाधड़ी के फैलते संजाल पर काबू पाना मुश्किल साबित हो रहा है।