किसी भी हादसे का एक स्वाभाविक सबक यह होना चाहिए कि भविष्य में उससे बचने के इंतजाम किए जाएं। लेकिन खासतौर पर जिन समस्याओं को दूर करना या उनसे बचाव के इंतजाम करना सरकार की जिम्मेदारी है, उसमें लापरवाही के नतीजे अक्सर सामने आते रहे हैं। अमूमन हर साल बरसात के मौसम में दिल्ली की स्थिति छिपी नहीं रही है। आधे या एक घंटे की मूसलाधार बारिश के बाद कई इलाकों और वहां की सड़कों की हालत किसी बाढ़ग्रस्त क्षेत्र की तरह हो जाती है। ऐसे में न केवल रास्ते रुक जाते हैं, बल्कि अक्सर बड़े हादसों की आशंका बनी रहती है।

रविवार की सुबह घनघोर बारिश के बाद दिल्ली के कई इलाकों में ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई। दिल्ली में कनाट प्लेस से सटे मिंटो ब्रिज के नीचे बारिश का पानी इस तरह जमा हो गया कि उसमें एक टेम्पो चालक फंस गया और आखिरकार डूबने से उसकी जान चली गई। दिल्ली के केंद्रीय इलाके में इस तरह की घटना सरकार और संबंधित महकमों की व्यापक लापरवाही को ही दर्शाती है।

सही है कि बारिश पर किसी का नियंत्रण नहीं है, लेकिन उससे बचाव के उपाय करके बड़े नुकसान से कम जरूर किया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि मिंटो ब्रिज के नीचे पानी जमा होने की स्थिति में उसे निकालने की कोई व्यवस्था नहीं है। यह क्षेत्र दिल्ली सरकार के लोक निर्माण विभाग के तहत आता है। वहां पंप से पानी निकाल कर दिल्ली जल बोर्ड के लाइन में डाला जाता है। लेकिन खबरों के मुताबिक उस लाइन की सफाई नहीं हुई थी और पानी की निकासी का रास्ता जाम था। इसकी वजह से वहां जलभराव हो गया और नाहक ही एक व्यक्ति की जान चली गई।

सवाल है कि समय पर नालों की सफाई से लेकर जलभराव की स्थिति में पंप चला कर पानी निकालने की जरूरत क्यों नहीं समझी गई! अगर किन्हीं अनिवार्य वजहों से फिलहाल काम करना संभव नहीं हो पा रहा हो तो वहां चेतावनी के संदेश लगाना या खतरनाक जगहों के आसपास लोगों को जाने से मनाही के लिए किसी को ड्यूटी पर तैनात करना किसकी जिम्मेदारी है!

बरसात की वजह से हादसे में किसी मौत का यह कोई अकेला मामला नहीं है। मिंटो ब्रिज की घटना के अलावा इसी दिन दिल्ली के अलग-अलग इलाकों से एक बच्चे और एक युवक की जलभराव की वजह से डूब कर मौत हो गई।

दरअसल, दिल्ली में ऐसी तमाम जगहें हैं, जहां बरसात के मौसम में अक्सर पानी भर जाता है और रास्ता पूरी तरह बंद हो जाता है। कई जगहों पर खुले नालों या फिर गड्ढों में भरा पानी जानलेवा स्तर तक खतरनाक हो जाता है।

अमूमन हर साल बरसात में इस तरह की हालत सामने आती है और हर बार सरकार की ओर यही सफाई पेश की जाती है कि आगे वह समय पर नालों की सफाई का ध्यान रखेगी। लेकिन जैसे ही मौसम के मुताबिक भारी बारिश होती है, शहर में चारों तरफ जाम की स्थिति से लेकर बहुत सारी जगहों पर बाढ़ जैसे दृश्य सरकार की सक्रियता की पोल खोल देते हैं। जबकि इस स्थिति से बचाव के लिए सिर्फ इतनी कवायद काफी हो सकती है कि बरसात के मौसम के पहले ही सभी नाले-नालियों और पानी की निकासी के सभी रास्तों की सफाई करा दी जाए। जहां जलभराव हो जाता है, वहां नए विकल्प निकाले जाएं।

मुश्किल यह है कि जब कोई हादसा हो जाता है और उसमें लोगों की नाहक ही जान चली जाती है, तब औपचारिकता पूरी करने के लिए सरकार की नींद कुछ देर के लिए खुल जाती है। इस तरह की तात्कालिक सक्रियता किसी भी समस्या का दीर्घकालिक या स्थायी समाधान नहीं हो सकती।