राजनीति में आपराधिक छवि वाले लोगों की बढ़ती संख्या को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती रही है। इस पर रोक लगाने को लेकर राजनीतिक दलों से ही अपेक्षा की जाती रही है कि दागदार छवि वाले लोगों को वे चुनावी मैदान में उतारने से परहेज करेंगे। मगर, यह उम्मीद बेमानी साबित हुई है। हर चुनाव में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रतिनिधियों की संख्या कुछ बढ़ी हुई ही दर्ज होती है। ऐसे में एक जनहित याचिका दायर कर सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई गई कि गंभीर अपराध के आरोपियों को चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिए।
कानून के मुताबिक तब तक किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता
इस पर अदालत ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से पूछा था कि क्या ऐसा करना संभव है। सरकार ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया। अब फिर से सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को दो हफ्ते के भीतर हलफनामा दायर करने को कहा है। दरअसल, कानून के मुताबिक तब तक किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता, जब तक उसका दोष सिद्ध नहीं हो जाता। उसमें भी उन्हीं को रोका जा सकता है, जिन्हें दो साल या इससे अधिक की सजा हुई हो। लिहाजा, इसके लिए विशेष कानूनी प्रावधान की जरूरत है, जो केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के सहयोग के बिना नहीं किया जा सकता।
पिछले आम चुनाव में करीब 43% पर आपराधिक मुकदमे दर्ज थे
हालांकि राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर अंकुश लगाने के इरादे से ही प्रावधान किया गया कि हर उम्मीदवार पर्चा भरते समय अपनी आय, संपत्ति, आपराधिक मुकदमों आदि से संबंधित हलफनामा दाखिल करेगा। ऐसा इसलिए किया गया कि मतदाता को अपना प्रतिनिधि चुनते समय फैसला करने में मदद मिल सके। इसमें यह भी उम्मीद की गई थी कि लोग आपराधिक छवि के लोगों को नकारना शुरू कर देंगे और फिर ऐसे लोगों का राजनीति में प्रवेश रुक जाएगा। मगर हकीकत यह है कि यह प्रावधान भी कारगर साबित नहीं हुआ है। पिछले आम चुनाव में चुन कर आए कुल जन-प्रतिनिधियों में करीब तैंतालीस फीसद के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज थे।
यह उन्होंने खुद अपने हलफनामे में बताया था। यों राजनीतिक रूप से सक्रिय लोगों के खिलाफ कई बार किसी रंजिश के चलते या विपक्षी दलों द्वारा बदनाम या परेशान करने की नीयत से भी आपराधिक मुकदमे दर्ज करा दिए जाते हैं। ऐसे ज्यादातर राजनीतिक मुकदमे प्राय: गंभीर प्रकृति के नहीं होते। चिंता उन लोगों को लेकर है, जिनके खिलाफ अपहरण, डकैती, बलात्कार, हत्या जैसे संगीन अपराधों के मुकदमे दर्ज हैं। यह भी छिपी बात नहीं है कि समाज में बाहुबली और दबंग के रूप में पहचाने जाने वाले लोगों का राजनीति में प्रवेश बढ़ रहा है।
यह ठीक है कि जब तक किसी के खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं हो जाता, तब तक उसके नागरिक अधिकारों में बाधा नहीं डाली जा सकती। मगर, यह भी जाहिर है कि बहुत सारे आपराधिक वृत्ति के लोग राजनीति में आते ही इसलिए हैं कि वे अपने खिलाफ चल रहे मामलों को कमजोर कर सकें। अगर वे सत्तापक्ष में हैं, तो उनके खिलाफ चल रही जांचें और कानूनी कार्रवाइयां तब तक रुकी देखी जाती हैं, जब तक सरकार बदल नहीं जाती।
राजनीति किसी आपराधिक वृत्ति के व्यक्ति का सुरक्षित शरण्य नहीं हो सकती। जिन्हें खुद कानून की परवाह नहीं, उन्हें भला कानून बनाने का अधिकार क्यों दिया जाना चाहिए। जनहित याचिका में कहा गया है कि जो अपराधी पहले राजनेताओं को लाभ पहुंचाने के लिए काम करते थे, वे अब खुद अपने लाभ के लिए राजनीति में आने लगे हैं। इस पर सरकार और सभी राजनीतिक दलों को संजीदगी दिखाने की जरूरत है।