वन्यजीव संरक्षण को लेकर सरकारें और इससे जुड़े महकमे कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा उत्तराखंड के जिम कार्बेट बाघ आरक्षित क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई और अवैध निर्माण से लगाया जा सकता है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने तत्कालीन वनमंत्री और उप-वन अधिकारी को कड़ी फटकार लगाई है।

गौरतलब है कि जिम कार्बेट में वनमंत्री रहते हरख सिंह रावत ने चिड़ियाघर से बाघ लाकर बसाने के नाम पर आरक्षित क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई कराई और अनावश्यक निर्माण शुरू करा दिए। उसमें वनमंत्री के चहेते तत्कालीन उप-वन अधिकारी और दूसरे अफसर भी शामिल थे। अदालत ने उस इलाके में सफारी यानी सैर-सपाटे पर रोक लगाते हुए सीबीआइ से तीन महीने के भीतर वहां की स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है।

वन्यजीव संरक्षण कानून के मुताबिक वन क्षेत्रों में किसी भी तरह की अवैध गतिविधि के खिलाफ कड़े दंड के प्रावधान हैं। मगर विचित्र है कि उत्तराखंड के तत्कालीन वनमंत्री ने जिम कार्बेट में सारे कानूनों को ताक पर रख दिया। हालांकि जिम कार्बेट का मामला न तो नया है, न अकेला। देश में शायद ही ऐसा कोई अभयारण्य, वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र या विशेष पशुओं के लिए आरक्षित क्षेत्र हो, जहां अतिक्रमण, व्यावसायिक गतिविधियां चलाने और पेड़ों की कटाई आदि की शिकायतें न मिलती रही हों।

दरअसल, सैलानियों को आकर्षित करने के मकसद से बहुत सारे अभयारण्यों, वन्यजीव आरक्षित क्षेत्रों पर व्यवसायियों की नजर लगी रहती है। वे सरकार से नजदीकी गांठ कर उन क्षेत्रों में रहने, ठहरने, मनोरंजन, सैर-सपाटे वगैरह के सरंजाम जुटाने का प्रयास करते देखे जाते हैं। अनेक अभयारण्यों के सुरक्षित क्षेत्रों के भीतर अतिथि गृह, मोटेल, रेस्तरां, सफारी, मनोरंजन की जगहें बना ली गई हैं।

राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम आदि के अभयारण्यों में अतिक्रमण की अनेक पुरानी शिकायतें हैं। उन पर विवाद उठते रहे हैं, अदालत में भी उन्हें हटाने की गुहार लगाई जाती रही, मगर वन अधिकारियों की कृपा से उनके कारोबार पर आंच नहीं आ पाती। जिम कार्बेट के बाहरी क्षेत्र में भी ठहरने, मनोरंजन और खानपान की ऐसी कई जगहें बना ली गई हैं।

ऐसी गतिविधियों से उन इलाकों में तेज शोर, रोशनी और वाहनों आदि की आवाजाही के चलते न केवल वन्यजीवों की स्वाभाविक दिनचर्या बाधित होती, बल्कि वे हर समय भयभीत रहते हैं। उनके खानपान, प्रजनन आदि की आदतें बदल जाती हैं। इस तरह अभयारण्य उनके लिए भयारण्य बन जाता है। इससे वन्यजीव संरक्षण का मकसद भी नहीं सध पाता।

वन्यजीव संरक्षण के लिए आरक्षित क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियां चलाने और उनमें लोगों की आवाजाही बढ़ने से वन्यजीवों का शिकार और उनके अंगों का अवैध कारोबार करने वालों की पैठ भी आसान हो जाती है। निर्माण के नाम पर पेड़ों की कटाई दरअसल, लकड़ी कारोबारियों को लाभ पहुंचाने के मकसद से कराई जाती है।

इससे वहां का पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित होता और वन्यजीवों के रहवास पर बुरा असर पड़ता है। ऐसा नहीं माना जा सकता कि जिम कार्बेट में पेड़ों की कटाई और अतार्किक निर्माण कराने से पहले इन बातों की जानकारी मंत्री महोदय और संबंधित अधिकारियों को नहीं रही होगी। मगर उन्हें अपना स्वार्थ सबसे ऊपर नजर आया। इस प्रकरण से दूसरे अभयारण्यों और वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों से जुड़े अधिकारी कितना सबक लेंगे, देखने की बात है।