बाजार और मुद्रास्फीति के आंकड़ों में उतार-चढ़ाव के बरक्स हकीकत यह है कि खुदरा महंगाई का स्तर लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। इसे नियंत्रण में लाने के लिए मौद्रिक कवायदों से लेकर सरकार की ओर से बाजार में मांग के अनुपात में सामान की आपूर्ति को लेकर अलग से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इसमें कोई बड़ी राहत फिलहाल नहीं नजर आ रही है।
हालांकि कुछ समय के अंतराल पर थोक और खुदरा वस्तुओं की महंगाई के सूचकांक में कभी बढ़ोतरी तो कभी मामूली कमी दिखाई देती है, फिर थोड़े वक्त के बाद जरूरी वस्तुओं की कीमतें आम लोगों की पहुंच से बाहर होने लगती हैं। कई बार यह समझना मुश्किल हो जाता है कि अगर थोक महंगाई में कमी होती है तो उसी अनुपात में उसका असर खुदरा वस्तुओं पर क्यों नहीं दिखता है।
स्वाभाविक ही ये सवाल उठते हैं कि आखिर देश भर में महंगाई की समस्या जूझ रहे लोगों को राहत दिलाने के मसले पर सरकार को कोई ठोस कवायद करना जरूरी क्यों नहीं लग रहा है। जबकि इसके कारणों की पड़ताल को लेकर शायद ही कभी कोई कमी होती हो। अब केंद्रीय वित्त मंत्री ने इस मसले पर जो राय जाहिर की है, वह एक बार फिर महंगाई की वजहों की ओर ही संकेत करती है।
वित्त मंत्री का कहना है कि आपूर्ति से जुड़ी मौसमी समस्याओं के कारण महंगाई बढ़ी है और जरूरी सामान की कीमतों में नरमी लाने के प्रयासों के साथ लगातार उस पर नजर रखी जा रही है। उन्होंने ईंधन और प्राकृतिक गैस के दाम में कमी लाने के प्रयासों की भी बात की।
लेकिन सब जानते हैं कि पिछले कुछ सालों के दौरान रसोई गैस के सिलेंडर की कीमत बढ़ते-बढ़ते आज कहां पहुंच चुकी है और उससे कितने परिवारों के सामने कैसी चुनौती खड़ी हो रही है। सही है कि आमतौर पर ईंधन और प्राकृतिक गैसों का आयात किया जाता है और पहले कोरोना और उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से बाजार में इनकी कीमतों पर असर पड़ा है। निश्चित रूप से एक जटिल और विकट समस्या के रूप में महंगाई के कारणों की पहचान करना एक जरूरी और प्राथमिक पक्ष है, लेकिन सवाल है कि इसके समाधान को लेकर लंबे समय से केवल आश्वासन की स्थिति क्यों बनी हुई है?
आज हालत यह है कि ऐसे तमाम लोग हैं, जिनकी पहुंच से खाने-पीने के सामान की कीमतें दूर हो रही हैं। अर्थशास्त्र की जटिल गुत्थियों में उलझी महंगाई की वजहें बाजार में खाने-पीने की चीजों या फिर सब्जियों के दाम कई बार सिर्फ पूछने तक की हिम्मत कर पाने वाले लोगों की मुश्किलों को कम नहीं कर पाती हैं।
यह किसी से छिपा नहीं है कि महामारी और उसकी वजह से लागू की गई पूर्णबंदी के बाद बाजार के हालात सामान्य होने के बाद आज भी रोजी-रोजगार के मामले में चिंता बनी हुई है। खाने-पीने से लेकर अन्य जरूरी वस्तुओं की कीमतों के बरक्स लोगों की क्रयशक्ति आज भी कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रही है। अगर किसी भी वजह से आपूर्ति की वजह से महंगाई के मोर्चे पर खड़ी समस्या गहरा रही है तो इस रास्ते की बाधा को दूर करना या विकल्प निकालना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है।
पिछले साल दलहन, खाद्य तेल पर आयात शुल्क में कटौती करने और प्याज आदि के बफर स्टाक बना कर रखने जैसे कई कदम उठाए गए थे। संभव है कि सरकार अपनी ओर से प्रयास कर रही हो, मगर जमीनी स्तर पर आम लोगों को महंगाई के मोर्चे पर जिस स्थिति का सामना करना पड़ेगा, उन कोशिशों का आकलन उसी कसौटी पर होगा।
