गूगल के सीइओ यानी मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में सुंदर पिचाई की नियुक्ति निश्चित रूप से भारतीय प्रतिभाओं की कामयाबी का एक और महत्त्वपूर्ण अध्याय है।
गूगल चूंकि एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है, इसलिए उसके पास इस पद के लिए योग्य प्रतिभाओं की कमी नहीं रही होगी। मगर अपने ढांचे में बदलाव के फैसले के बाद सुंदर पिचाई को इस पद के लिए सबसे काबिल माना गया तो इसकी वजहें भी होंगी। दरअसल, आइआइटी खड़गपुर से बीटेक करने के बाद सुंदर ने तकरीबन ग्यारह साल पहले गूगल में काम शुरू किया था और तब से उन्होंने लगातार इस कंपनी के हर नए प्रयोग के दौरान अपनी क्षमता और योग्यता साबित की।
आज इंटरनेट की दुनिया में जिस गूगल के सर्च, ब्राउजर क्रोम, जी-मेल और गूगल मैप के ऐप्स पर बड़ी तादाद में लोगों की निर्भरता है, उनमें सुंदर की सबसे अहम भूमिका रही है। खासकर गूगल के ब्राउजर क्रोम और इससे जुड़ी कई सुविधाओं की लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दुनिया के लगभग एक तिहाई कंप्यूटर इसी आॅपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं।
हालांकि क्रोम से पहले सुंदर ने टूलबार, गूगल गीयर्स और गूगल पैक जैसी अन्य सुविधाओं पर काम किया था। इसके अलावा, करीब दो साल पहले आज मोबाइल की दुनिया में सबसे लोकप्रिय एंड्रॉयड तैयार करने की जिम्मेदारी सुंदर को सौंपी गई थी। जाहिर है, मौजूदा ऊंचाई पर पहुंचने के पहले सुंदर ने डिजिटल दुनिया के सबसे बड़े संस्थान में कई पायदान का कामयाब सफर पूरा किया है।
PHOTOS: चेन्नई के सुंदर पिचाई संभालेंगे Google का संसार
सुंदर की ताजा उपलब्धि न सिर्फ भारतीय प्रतिभाओं की दुनिया में बढ़ती स्वीकार्यता, बल्कि सूचना तकनीक के क्षेत्र में भारत के मजबूत दखल का भी उदाहरण है। इससे पहले सत्य नाडेला माइक्रोसॉफ्ट के सीइओ बन चुके हैं। सूचना तकनीक की पढ़ाई करने वाले हजारों विद्यार्थी आज देश और दुनिया की बड़ी कंपनियों में अपनी जगह बना रहे हैं, पर सवाल है कि ऐसा क्यों हो रहा है कि देश में तैयार प्रतिभाओं को यहां उतनी बेहतर स्वीकार्यता और जगह नहीं मिल पाती, जो उन्हें विदेशी कंपनियां एक झटके में दे देती हैं!
आखिर क्या वजह है कि हमारी प्रतिभाएं दूसरे देशों की तकनीकी और विकास के अन्य आयामों में बेहतर योगदान दे रही हैं, लेकिन जरूरत होने के बावजूद हम उनका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं? भारत के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि अपने यहां तैयार होने वाली बेहतरीन प्रतिभाओं का इस्तेमाल वह कैसे कर पाता है, ताकि जिनके बूते दूसरे देश और वहां की कंपनियां अपनी शानदार उपलब्धि पर खुश होती हैं, वे हमारे हिस्से में आ सकें। प्रतिभा पलायन रोकने के तमाम प्रयासों के बावजूद क्यों इस दिशा में कामयाबी नहीं मिल पा रही।
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